जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है?

आपने शेयर मार्केट के उतार चढ़ाव को तो देखा ही होगा। जिसमें गिरावट और बढ़त जैसे खबरें आम होती हैं। तो जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, यह सवाल आपके मन में भी जरूर आया होगा। आखिर कहां जाता है, आपका पैसा गंवाने के बाद।

तो चलिए आज मैं आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताऊंगा कि आखिर जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है। क्या किसी के नुकसान होने पर किसी दूसरे निवेशक को फायदा होता है? आइए जानते हैं।

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है–

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, इसको समझने से पहले आपका यह समझना जरूरी है, कि जब भी कंपनी शेयर बाजार में लिस्टेड होती है, तो कंपनियों के शेयर में इंवेस्टर निवेश करते हैं। और जो कंपनी जितना अच्छा परफॉर्मेंस करती है, उस कंपनी के शेयर उतने ही बढ़ते जाते हैं। और कंपनी की डिमांड भी बड़ जाती है।

जब शेयर मार्केट गिरता है,

इसके साथ साथ जिन कंपनियों का खराब परफॉर्मेंस होता है, उन कंपनियों के शेयर प्राइस उतने ही कम होते चले जाते हैं। इसका मतलब यह है, कि कंपनी के अच्छा परफॉर्मेंस करने पर कंपनी में इंवेस्टर इन्वेस्ट करते हैं। और खराब प्रदर्शन होने पर इंवेस्टर अपनी इन्वेस्टमेंट को निकाल लेते हैं।

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, तो इसका जवाब है, की आपका पैसा इंवेस्टर के पास ही जाता है। क्योंकि शेयर मार्केट एक सप्लाई और डिमांड के फॉर्मूले पर काम करता है। हर किसी इंवेस्टर को अपना फैसला सही ही लगता है। शेयर बेचने वाला सोचता है, की वह बेच कर एक अच्छा डिसीजन ले रहा है, वहीं खरीदने वाला सोचता है, कि वह इस समय शेयर को खरीद कर अच्छा फैसला ले रहा है।

माना किसी कंपनी के शेयर का प्राइस अभी 80 रुपए चल रहा है, और वह शेयर किसी A इंवेस्टर के आस पहले से मौजूद है, और उसको लगता है, की वह शेयर का प्राइस अब 80 से उप्पर न बढ़कर अब नीचे जा सकता है। वह उसको बेचना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ B इंवेस्टर सोचता है, की इस कंपनी के शेयर प्राइस अभी और बढ़ सकता है। तो वह उस शेयर को खरीदना चाहता है।

दोनों ही इंवेस्टर A और B को लगता है, की वह दोनों अपना फैसला सही ले रहे हैं। लेकिन आपको बता दें, की जिस तरफ शेयर में बायर की संख्या अधिक होगी तो शेयर का प्राइस उप्पर और यदि सेलर की संख्या ज्यादा होगी तो शेयर का प्राइस नीचे की ओर चलने लगेगा।

और मार्केट में जिधर भी बायर या फिर सेलर का प्रेशर अधिक होगा, मार्केट उधर ही अपनी movement करेगा। किसी का पैसा डूब जाने पर वह पैसा किसी दूसरे इंवेस्टर के पास ही जाता है। मतलब की यदि यहां किसी इंवेस्टर का नुकसान हुआ है, तो उतना ही फायदा किसी दूसरे इंवेस्टर को हुआ होगा।

शेयर मार्केट कैसे चलता है

जब कोई भी व्यक्ति अपना बिजनेस स्टार्ट करता है, और उसको फंडिंग की जरूरत होती है। फंडिंग के ना मिलने पर वह व्यक्ति कंपनी बनाता है, और उस कंपनी को SEBI की मदद से स्टॉक मार्केट में उतारने का प्रयास करता है। सेबी के रूल और रेगुलेशन को पूरा करता है। और सेबी की मंजूरी मिलने पर वह स्टॉक मार्केट में लिस्टेड करते हैं।

शेयर बाजार में लिस्ट करने के लिए नई कंपनी का होना जरूरी नहीं है, पुरानी कंपनी भी शेयर मार्केट में लिस्टेड होती हैं। और जो कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड हो जाती है, उसमे इंवेस्टर इन्वेस्ट कर सकते हैं। और उस कंपनी का हिस्सेदार बन सकते हैं।

आपको बता दें, कि स्टॉक मार्केट में आने के लिए आपको BSE, या फिर NSE में रसिस्टर करवाना होता है। और जिस किसी भी कंपनी में निवेशक निवेश करता है, वह उस कंपनी का हिस्सेदार बन जाता है। यह हिस्सेदारी खरीदे गए शेयर की संख्या पर निर्भर करता है। शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर करता है। मार्केट में कंपनी और शेयर धारक के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर ही करते हैं।

स्टॉक मार्केट ऑपरेटर (Stock market operator)

दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे, Stock market operator के बारे में। आपने बहुत बार लोगों के मुंह से यह जरूर सुना होगा कि इस स्टॉक में आज इतनी प्वाइंट की रैली देखने को मिली। या फिर इस स्टॉक का वॉल्यूम आज अन्य दिनों के मुकाबले बहुत अधिक है। तो इसमें पक्का Stock Market operator घुसा होगा।

तो चलिए दोस्तों आज की यह पोस्ट Stock market operator के नाम। आज हम Stock market Operator के बारे में विस्तार से जानेंगे। कि आखिर ये होते कौन हैं, और इनके पसंदीदा स्टॉक कौन से होते हैं।

स्टॉक मार्केट ऑपरेटर (Stock Market operator)

विवरण – जितने भी रिटेल इंवेस्टर होते हैं, उनका सबसे बड़ा नुकसान उनके डर से होता है। और इस कमजोरी का ही फायदा Stock market Operator द्वारा उठाया जाता है।

Stock market Operator

Stock market Operator के पास बहुत अधिक मात्रा में पैसा होता है। जिससे की वह किसी भी शेयर को अधिक क्वांटिटी में खरीद करके उस शेयर को आसानी से मैन्युकुलेट कर लेते हैं। और रिटेल निवेशक सस्ते के चक्कर में इन स्टॉक में फंस कर रह जाते हैं।

स्टॉक मार्केट ऑपरेटर कैसे काम करता है–

Stock market Operator के द्वारा कुछ इस तरह से स्टॉक के साथ खेल किया करते हैं, जिससे रिटेल निवेशकों को फंसाया जा सके। उनके द्वारा ऐसे स्टॉक में काफी अधिक मात्रा में पैसे लगाए जाते हैं, जिनका कोई भी फ्यूचर नही होता है। और यह ऐसे स्टॉक होते हैं, जो हर किसी को सस्ते दाम में मिल रहे होते है, ताकि हर कोई रिटेल निवेशक इन्हें लेने में सक्षम हो।

जो भी नए निवेशक होते हैं, वह हमेशा सस्ते शेयर में ही अपना फ्यूचर समझते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है, कि कम प्राइस में ज्यादा शेयर उनको मिल जाएंगे। लेकिन stock market operator द्वारा इन शेयर को ऑपरेट किया जाता है। और जैसे ही इन शेयर में ऑपरेटर को अच्छा पैसा दिखने लगता है, वैसे ही वह इन सब शेयर को एक साथ बेच देते हैं। और रिटेल निवेशक को भारी नुकसान देखने को मिलता है।

ऑपरेटर छोटे निवेशकों को क्यों फंसाते हैं–

ऑपरेटर को यह बात अच्छे से पता होती है, कि छोटे निवेशक बड़ी आसानी से लालच में फंस जाते हैं। इसके साथ साथ जो नए निवेशक होते हैं, उनके पास डर काफी अधिक होता है, जिस वजह से वह महंगे शेयर लेने की जगह बेकार के सस्ते शेयर खरीदना चाहते हैं। इसके साथ साथ वह पैनी स्टॉक में पैसे काफी अधिक लगाते हैं। इसके साथ साथ वह news based stocks में पैसा लगाते हैं।

ऑपरेटर से कैसे बचें–

नए निवेशक को हमेशा ही फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग शेयर को ही चुनना चाहिए। इसमें यदि नए निवेशक अपना निवेश करते हैं, तो छोटी अवधि में उन्हें नुकसान देखना पड़ सकता है। लेकिन लंबी अवधि के अंतर्गत उन्हे एक अच्छा रिटर्न्स ही देखने को मिलेगा।

असल मायने में ऑपरेटर वह होते हैं, जिनके पास बहुत अधिक पैसा होता है, ये आपके ब्रोकर भी हो सकते हैं, या फिर म्यूचुअल फंड हाउस भी हो सकते हैं, या फिर कोई बड़े इंस्टीट्यूशन भी हो सकते हैं। लेकिन हमें इनसे बच कर रहना है, इससे बचने के लिए हमें अच्छे फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग शेयर में ही अपना निवेश करना चाहिए।

जिन कंपनियों का मार्केट कैप बहुत बड़ा होता है। उन कंपनियो में ऑपरेटर के पैसों का अधिक असर नहीं पड़ता है। और वह कंपनियां 1 से 2 प्वाइंट भी मुश्किल से बढ़ पाती है। इसलिए आप उन कंपनियो में भी अपना निवेश कर सकते हैं, जिनका मार्केट कैप काफी बड़ा होता है।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए

शेयर मार्केट में कब इन्वेस्ट करना चाहिए, या फिर शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए, मार्केट में सबसे अच्छा समय कौन सा रहेगा जब हमको इन्वेस्ट करना चाहिए, ताकि हम एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकें, ये सवाल हर किसी निवेशक के मन में घूमते रहते हैं।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा कि शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए। ताकि आपको एक अच्छा रिटर्न्स मिल सके।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए ?

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए

स्टॉक मार्केट (Stock market) में सबसे अच्छा समय इन्वेस्ट करने का वह होता है, जब पूरा मार्केट गिरा हुआ होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, क्योंकि मार्केट के गिरने के दौरान पूरा बाजार डरा होता है, और इंवेस्टर अपने शेयर को बेचने लगते हैं। जिस वजह से हमको शेयर बड़े सस्ते दाम में मिल जाते हैं। अतः आपको शेयर बाजार में पैसा गिरावट के समय ही लगाना चाहिए। यह बात तो हो गई, शॉर्ट टर्म के लिए। लेकिन क्या इतना ही सब काफी है, इन्वेस्टमेट के लिए, तो उत्तर है, नहीं। तो आइए जानते हैं, उन महत्वपूर्ण बातों को जिन्हें शेयर खरीदते समय ध्यान में रखना चाहिए।

  • कभी भी लोगों की बातों में विश्वास कर के पैनी स्टॉक में पैसा नहीं लगना चाहिए, हमको अपनी खुद की रिसर्च भी कर लेनी चाहिए। और तब पैसा इन्वेस्ट करना चाहिए।
  • दूसरों की टिप्स लेने से अच्छा आप खुद की रिसर्च करें, ताकि आप अच्छे से सीख भी सकें, और आपको अच्छा रिटर्न्स भी मिल सकें। वरना आप सिर्फ लास्ट में अपना पैसा ही गंवाएंगे।
  • स्टॉक मार्केट कोई जुए की तरह नहीं है, कि आप रात ही रात इससे अमीर बन जाओगे, इसमें यदि आपको इन्वेस्ट करना है, तो आपको स्टॉक मार्केट का बेसिक नॉलेज होनी चाहिए। यदि आप बिना सीखें ही इन्वेस्ट करेंगे, और आपको नुकसान होगा तो आप इसे जुआ कह कर छोड़ देंगे।
  • आप केवल उन ही शेयर में इन्वेस्ट करें जिनके फंडामेंटल अच्छे होंगे, ताकि आपको नुकसान कम से कम नुकसान हों सके। और फंडामेंटल अच्छी कंपनियां आपको तब ही मिलेगी, जब आप किसी शेयर में अच्छे से रिसर्च करेंगे।
  • हर समझदार निवेशक अपनी कैपिटल को तब ही निवेश करता है, जब वह अच्छे से किसी शेयर में रिसर्च करता है, और उसे लगता है, कि कंपनी में सही में ही काफी दम है। और वह कंपनी उसे एक अच्छा रिटर्न्स कमा कर दे सकती है।

शेयर मार्केट में पैसे लगाने का एक बेहतर समय।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए की यदि हम बात करें तो आपको बता दूं, कि मार्केट ओपन होते ही कभी भी सीधे ट्रेड में नहीं घुसना चाहिए। बल्कि आपको थोड़ी देर इंतजार करने के बाद उसका वॉल्यूम और ट्रेड देखने के बाद ही इन्वेस्ट करना चाहिए।

आपको मार्केट में कुछ घंटे इंतजार करने के बाद दिखेगा कि मार्केट में अब एक अच्छा खासा वॉल्यूम दिखने को मिल जाएगा। और आप फिर इस चीज का डिसीजन ले सकते हैं, कि आपको ट्रेड करना चाहिए, या फिर नहीं। वॉल्यूम का मतलब होता है, कि इंवेस्टर या फिर ट्रेडर अपने कितने शेयर को खरीद और बेच रहे हैं।

यदि इंवेस्टर अपने शेयर को बहुत ज्यादा खरीद और बेच रहे हैं, और आपको इंट्राडे ट्रेड करना है, तो आप इस स्तिथि में शॉर्ट सेल कर के उससे एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दे, कि इंट्राडे में काफी अधिक रिस्क होता है। जिससे आपके पैसे डूबने के चांसेस भी अधिक हो जाता है। इसी लिए यह सलाह दी जाती है, कि आपको हमेशा स्टॉप लॉस को लगा कर ही ट्रेड करना चाहिए।

मेरी सलाह तो आपको यही रहेगी की यदि आपको टेक्निकल एनालिसिस की अच्छी खासी नॉलेज है, तो ही आप यह करें, वरना आप शुरुआत में इन चीजों से दूर ही रहें, तो ही ज्यादा सही रहेगा।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए ― आपको बाजार में पैसा लगाने से पहले इस चीज की जानकारी होनी चाहिए, कि आखिर किसी भी शेयर का प्राइस उप्पर या फिर नीचे क्यों जाता है।
यह सवाल जानने की जरूरत आपको इस लिए है, क्युकी जब कभी भी वह शेयर डाउन जाने लगे जिसमे की आपने पैसे लगाएं हैं, तो आप पैनिक में आ कर के उस शेयर को बेचने लगेंगे। और यह अक्सर वे लोग होते हैं, जो अधिकांशत एक्सपर्ट की बातों में यकीन या फिर टीवी चैनल में देख कर के इन्वेस्ट करते हैं।
लेकिन आपको बता दें, की यह समय ही सबसे अच्छा समय होता है, जिस समय आप अपना पैसा मार्केट में लगा सकते हैं। यदि आपने एक फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग कंपनी को चुना है, तो आपको किसी कंपनी के शेयर के घटने या फिर बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता चाहिए, क्योंकि यह कुछ ही समय तक दिखने वाली गिरावट होती है, लॉन्ग टर्म में यह एक अच्छा रिटर्न कमा कर ही देते हैं।

और सबसे मुख्य बात की किसी भी शेयर में हमें पैसे तब लगाना चाहिए, जब वह शेयर अपनी इंट्रांसिक वैल्यू (Intrinsic value) से कम प्राइस पर ट्रेड कर रहा हो। दुनिया के जाने माने निवेशक वारेन बफेट भी इसी तरीके से वैल्यू इन्वेस्टिंग कर के अपने लिए मजबूत शेयर को चुनते हैं।

Penny Stock

जब भी आपने बाजार में निवेश किया होगा, तो काफी बार आपको यह सुनने को मिलता होगा कि यदि आपने इस पैनी स्टॉक (Penny Stock) में उस समय में इतना पैसा लगाया होता, तो आप अभी तक इतने रुपयों के मालिक होते। उस समय आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा, आखिर Penny Stock क्या होता है।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा कि Penny Stock क्या होता है। हमे इन्हे खरीदना चाहिए, या नहीं। और भी बहुत से महत्वपूर्ण जानकारी आपको इस आर्टिकल के मदद से मिल पाएगा।

पैनी स्टॉक (Penny Stock)

पैनी स्टॉक (Penny Stock) उन शेयर को कहा जाता है, जोकि स्टॉक मार्केट (Stock market) में काफी कम प्राइस में चल रहे होते हैं, या फिर कम प्राइस में ट्रेड हो रहे होते हैं। कम प्राइस से मतलब 20 या फिर उससे नीचे वाले शेयर जो इस प्राइस में मार्केट में ट्रेड होते हैं। Penny Stock का तात्पर्य ही सस्ते शेयर, या फिर छोटे शेयर से है। जिसमें की कम प्राइस में हम स्टॉक को Buy कर सकें।

Penny Stock

यदि इसे दूसरे शब्दों में समझें तो स्मॉल कैप कंपनियां या फिर मिड कैप कंपनियों के वे स्टॉक जोकि स्टॉक मार्केट में कम प्राइस में भी खरीदे जा सकते हैं। ऐसे स्टॉक्स में आपको जितना अधिक प्रॉफिट देखने को मिलेगा उतना ही अधिक इसमें रिस्क भी होता है। अधिकतर नए निवेशक ही Penny Stock की और अधिक आकर्षित होते हैं। क्योंकि वह जल्दी पैसे कमाना चाहते हैं।

Penny Stock की असल में सच्चाई यह होती है, कि यह कंपनी या तो पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी होती है, या फिर उनका बिसनेस पूरी तरह से खत्म हो चुका होता है। अब सवाल यह आता है, कि आखिर Penny Stock में लोग इन्वेस्ट क्यों करते हैं। सस्ते के चक्कर में या फिर इनमे स्कॉप भी रहता है।

पैनी स्टॉक में निवेश करने के कारण–

पैनी स्टॉक में इन्वेस्ट करने के बहुत से कारण हो सकते हैं, जिस वजह से इंवेस्टर इनमे लुभा जाते हैं। Penny Stock को खरीदने के लिए क्यों निवेशक अधिक आकर्षित होते हैं।

  • कम प्राइस को देखते हुए अधिकतर नए निवेशक अधिक आकर्षित होते हैं, वह सोचते हैं, कि कम प्राइस में अधिक शेयर लेने पर यदि वह शेयर एक भी रुपए बढ़ गया तो उसे एक अच्छा प्रॉफिट देखने को मिल जायेगा। लेकिन यदि वह महंगा शेयर खरीदेगा तो उसको कम ही शेयर मिल पाएंगे। लेकिन आपको बता दें, की जितना सस्ता शेयर उसकी वैल्यू उतनी कम और उतने ही डूबने के उसके चांसेज होते हैं।
  • कम कीमत वाले शेयर के बढ़ने के चांसेस ज्यादा होते हैं, क्योंकि उन कंपनियां का बिजनेस बहुत छोटे स्केल से हो रहा होता है। इसमें जितना अधिक रिटर्न की संभावनाएं होती है, उसमें उतना ही अधिक रिस्क भी होता है। लोग पैनी स्टॉक को अगला एचडीएफसी बैंक कंपनी समझ कर उसमे इन्वेस्ट करने की सोचते हैं। क्योंकि एचडीएफसी का शेयर भी एक पैनी स्टॉक था और उसने आज सभी निवेशकों को एक अच्छा प्रॉफिट कमा कर भी दिया।

इन्हीं वजह से छोटे रिटेल निवेशक से लेकर के बड़े बड़े इंस्टीट्यूशन इन्वेस्टर्स भी इसकी और आकर्षित होते हैं। जिसमे की अच्छा मल्टीबेगर रिटर्न्स की आशा हर कोई इंवेस्टर लगाए फिरता है।

पैनी स्टॉक क्यो इतने रिस्की–

पैनी स्टॉक जो होते हैं, वह लार्ज कैप की तुलना में काफी अधिक रिस्की होते हैं। इसमें सोचने वाली बात यह है, कि क्यों वह शेयर पैनी स्टॉक बना है, क्या उस कंपनी के पास कर्जा है, या फिर उस कंपनी की तरह दूसरी कंपनी बन गई जो की लोगों को अच्छी सर्विस देने लगी है। या फिर उस कंपनियों का बिजनेस ही चौपट हो गया है। या फिर कंपनी प्रॉफिट जेनरेट नहीं कर पा रही है।

आपको इस बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए, कि कोई भी कंपनी हो उसका एक बिजनेस होता है, और हर एक शेयर के पीछे कोई न कोई कंपनी जरूर जुड़ी होती है, इसलिए आप जब भी आप किसी शेयर में पैसा लगा रहे हैं, तो आप उस कंपनी के बिजनेस में पैसा लगाते हैं। आपको हमेशा यह याद रखना है, कि जितना सस्ते में पैनी स्टॉक आपको मिल रही है। वह शेयर आपको उतना ही महंगा भी पड़ सकता है।

पैनी स्टॉक के रिस्की होने के कुछ कारण हर निवेशक को पता होने चाहिएं

  • जानकारी का अभाव होना।
  • ज्यादा वोलेटिलिटी का होना।
  • कम लिक्विडिटी का होना।
  • ऑपरेटर के द्वारा दाम का घटना और बढ़ना।
  • उप्पर नीचे चल रहे स्टॉक को देख कर अधिक आकर्षित होना।

पैनी स्टॉक के फायदे

  • पैनी स्टॉक में निवेश करने वाले लोगों को कम पैसे लगा कर अधिक प्रॉफिट कमाने का मौका मिल जाता है।
  • कम प्राइस में अधिक शेयर खरीदने को मिल जाता है।
  • छोटी कम्पनियां होने के कारण इनमे ग्रोथ अच्छी होती है।
  • वोलेटाइल होने की वजह से इसमें कम समय में अधिक रिटर्न भी देखने को मिल जाते हैं। जिस वजह से यह इंवेस्टर की पहली पसंद बने रहते हैं।

पैनी स्टॉक के नुकसान

  • छोटी कंपनी होने की वजह से इसके डूबने के चांस भी उतने ही बन जाते हैं। क्योंकि यह एक स्मॉल कैप कंपनियां होती है।
  • इन स्टॉक में लगातार अपर सर्किट और लोअर सर्किट लगता रहता है।
  • इन शेयर में ट्रेडिंग करना काफी मुश्किल होता है। इसमें बाय और सेल करने में भी काफी दिक्कत होती है।
  • इनमें लिक्विडेशन काफी कम होता है, जिस वजह से कोई भी ऑपरेटर इसे आसानी से ऑपरेट कर लेता है।
  • इन स्टॉक्स में पंप एंड डंप देखने को मिलता है।

Types of life insurance

यदि किसी भी घर–परिवार में कोई एक ही सदस्य है, जो की कमाने वाला हो। और उस पर घर के सभी सदस्य डीपेंड रहते हों। तो उसके जाने के बाद जीवन बीमा (life insurance) उस पर निर्भर लोगों को कुछ हद तक फाइनेंशियल तौर पर मदद देता है। लेकिन यह केवल एक ही प्रकार का नही होता है। बल्कि इंश्योरेंस के बहुत से प्रकार (Types of life insurance) होते हैं।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको इंश्योरेंस के विभिन्न प्रकार (Types of life insurance) के बारे में बताऊंगा।

Types of life insurance

इंश्योरेंस के प्रकार (Types of insurance)

वैसे तो लाइफ इंश्योरेंस के बहुत से प्रकार (Types of life insurance) होते हैं। लेकिन भारत में लाइफ इंश्योरेंस मुख्य रूप से 8 प्रकार की होती है। फिर इंश्योरेंस कराने वाला पॉलिसीधारक अपने मन मुताबिक कोई भी बीमा पॉलिसी का चुनाव कर सकता है। आइए जानते हैं, लाइफ इंश्योरेंस के प्रकार (Types of life insurance)

1. टर्म इंश्योरेन्स

टर्म इंश्योरेन्स प्लान एक सुनिश्चित समय याने की 10, 20, या फिर 30 साल के लिए खरीदा जा सकता है। इसमें दिए गए समय के लिए आपको कवरेज मिलता है। ऐसी जो लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी होती हैं, उनमें मेच्योरिटी बेनिफिट नही मिलता है। यह सेविंग या फिर प्रॉफिट कंपोनेंट के बिना ही लाइफ कवर आपको प्रदान करवाती हैं। टर्म इंश्योरेन्स में पॉलिसीधारक की मौत हो जाने पर एक तय रकम बेनिफिशियरी या नॉमिनी को दी जाती है। यह अन्य इंश्योरेंस की तुलना में काफी सस्ता प्लान है।

2. मनीबैक इंश्योरेंस

मनीबैक इंश्योरेंस पॉलिसी में इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस का मिलाप होता है, इस पॉलिसी में अंतर सिर्फ इतना है, कि इस लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ एस्योर्ड सम पॉलिसी के दौरान ही यह किस्तों में वापस किया जाता है। और इसमें जो आखिरी किस्त पॉलिसी है, वह खत्म होने पर ही मिलती है।

यदि पॉलिसी लेने वाले व्यक्ति की किसी वजह मृत्यु हो जाती है, तो उसका पूरा अमाउंट नॉमिनी को दे दिया जाता है। हालांकि आपको बता दें, कि इस पॉलिसी का प्राइस सबसे अधिक होता है।

3. एंडोमेंट पॉलिसी

एडोमेंट पॉलिसी में इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट दोनो होते हैं। ये जो इंश्योरेंस होते हैं, उनमें एक निश्चित समय के लिए हो रिस्क कवर होता है। और यदि वह अवधि खत्म हो जाती है, तो उसके बाद पॉलिसीधारक को बोनस के साथ उसका सारा अमाउंट वापस कर दिया जाता है। इनमें कुछ पॉलिसी ऐसी भी होती हैं, जो खतरनाक बीमारी होने पर भी आपको भुगतान करती है।

4. सेविंग्स एंड इन्वेस्टमेंट प्लान

सेविंग्स एंड इन्वेस्टमेंट प्लान पॉलिसीधारक को और उसके परिवार वालों को फ्यूचर के खर्चों के लिए एकमुश्त फंड दिलाता है। आपको बता दें, की ऐसे इंश्योरेंस प्लान आपको वित्तीय मामले में मजबूत तो कराती ही हैं, इसके साथ साथ यह आपको और आपके परिवार को वित्तीय सुरक्षा भी प्रदान करता है।

5. यूलिप

यूलिप में भी आपका इन्वेस्टमेंट और सुरक्षा दोनो होती है। आपको बता दें, कि एंडोमेंट इंश्योरेंस पॉलिसी और मनीबेक पॉलिसी में मिलने वाला रिटर्न लगभग पक्का होता है। वहीं यदि यूलिप की बात करें तो उसमे ऐसी कोई भी गारंटी नहीं होती है। क्योंकि यूलिप में इन्वेस्टमेंट को बॉन्ड और स्टॉक में लगाया जाता है। और म्यूचुअल फंड की तरह आपको यूनिट मिल जाती है। इसमें आप यह तय कर सकते हैं, कि आपका कितना पैसा शेयर में लगना चाहिए, और कितना बॉन्ड में लगना चाहिए।

6. आजीवन लाइफ इंश्योरेंस–

लाइफ टाइम इंश्योरेंस में आपको पूरी जिंदगी भर का प्रोटेक्शन दिया जाता है। इसमें पॉलिसी का कोई भी टर्म नही होता है। यदि इंश्योरेंस धारक की मृत्यु हो जाती है, तो उसके द्वारा बनाए नॉमिनी को बीमा का क्लेम मिल जाता है। यदि मैं बाकी इंश्योरेंस पॉलिसी की बात करूं तो उसमें एक फिक्स टाइम लिमिट होती है। और उस डेट के बाद नॉमिनी को डेथ क्लेम नहीं मिलता है। लेकिन इस इंश्योरेंस पॉलिसी का प्राइस भी उतना ही अधिक होता है। इसमें पॉलिसी धारक पैसे को लोन पर भी ले सकता है।

7. चाइल्ड इंश्योरेंस पॉलिसी

चाइल्ड इंश्योरेंस पॉलिसी बच्चों की पढ़ाई लिखाई के खर्चे को और उनकी बाकी की जरूरतों को देखते हुए बनाई गई है। इस इंश्योरेंस में पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाने पर नॉमिनी को भुगतान कर दिया जाता है। और पॉलिसी भी चालू रहती है। और इंश्योरेंस कंपनी पॉलिसी को लेने वाले की तरफ से इन्वेस्टमेंट को जारी रखता है। और बच्चों को एक निश्चित अवधि तक पैसा मिलता रहता है।

8. रिटायरमेंट प्लान

इस इंश्योरेंस प्लान के हिसाब से आपको इसमें रिटायरमेंट प्लान तो मिलता है, लेकिन इसमें आपको लाइफ इंश्योरेंस कवर नहीं होता है। इसमें आप अपने रिटायरमेंट को देखते हुए एक फंड बना सकते हैं। और जितनी अवधि आपने तय की होती है, उस अवधि के पूरे होने पर आपको एक निश्चित रकम का भुगतान किया जाता है।

उम्मीद करता हूं, की आपको Types of life insurance के बारे में अच्छे से समझ आ गया होगा। यदि कोई भी डाउट होगा, तो आप कॉमेंट में पूछ सकते हैं।

Tax saving tips

आज कल की महंगाई से सभी लोगों की जेब ढ़ीली होती दिख रही है। वहीं जिन लोगों की सालाना कमाई 5 लाख से थोड़ा ही ज्यादा है, तो उनको इस बात की टेंशन हुई रहती है, कि पहले ही इतने खर्चे हैं, और ऊपर से उनको टैक्स भी चुकाना पड़ता है। उन लोगों को Tax saving tips के बारे में कुछ भी नॉलेज नही रहता जिस वजह से वह अपने आप को कोश्ते रहते हैं।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको उन Tax saving tips के बारे में बताऊंगा जिनकी मदद से की आप कम टैक्स देकर के अपनी मनी की सेविंग कर सकते हैं।

टैक्स सेविंग टिप्स (Tax Saving Tips)

टैक्स सेविंग टिप्स (Tax saving tips) को जानने से पहले आपको टैक्स रूल के बारे में सामान्य जानकारी दे देता हूं।

Tax Saving Tips

टैक्स नियम के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की सालाना कमाई ढाई लाख (2.5 लाख) तक की है, तो उस व्यक्ति को कोई भी टैक्स पे नहीं करना होता है। यदि 2.5 लाख रुपए से और 5 लाख तक के बीच में है, तो उस व्यक्ति को 5% तक का टैक्स देना पड़ता है। और यदि उस व्यक्ति की सालाना इनकम 5 से 10 लाख रुपए तक है, तो उसको 20% टैक्स और यदि 10 लाख से ऊपर की इनकम है, तो उसे 30% टैक्स देना होता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि टैक्स के स्लैब प्रत्येक साल वित्तीय वर्ष में चेंज किए जाते हैं। कभी कभी सरकार इसमें कोई बदलाव भी नही करती है।

तो चलिए जानते हैं, Tax saving tips को जिनकी मदद से आप अपने कैपिटल inco को सेफ कर सकते हो।

1.स्टैंडर्ड डिड्क्शन (Standard Deduction)

Tax Saving Tips में आपका सबसे पहले स्टैंडर्ड डिडक्सन आ जाएगा। जिसके तहत की आपको अपनी इनकम में 50,000 रुपए तक की छूट मिलती है।

2. सेक्शन 80C धारा

सेक्शन 80C धारा के तहत आप अपने लगभग डेढ़ लाख रुपए तक बचा सकते हैं। इसके लिए आपका निवेश PPF, ELSS, NSC, EPF आदि में निवेश करना होता है। इसके अलावा यदि आपके बच्चे हैं, तो आप उनकी शिक्षा के लिए 1.5 लाख रुपए तक की इनकम पर इनकम टैक्स (Income tax) छूट का लाभ ले सकते हैं।

3. नेशनल पेंशन स्कीम (NPS)

यदि आप नेशनल पेंशन स्कीम में सालाना 50,000 रुपए तक इन्वेस्ट करते हैं, तो सेक्शन 80 CCD के तहत आप अपनी इनकम में 50 हजार रुपए तक बचा सकते हैं। जोकि आपको इनकम टैक्स देने से बचा सकते हैं।

4. होम लोन (Home Loan)

यदि आपने बैंक से अपने लिए होम लोन लिया हुआ है, तो आप अपने अतिरिक्त 2 लाख रुपए तक की सेविंग कर सकते हो। इनकम टैक्स के सेक्शन 24 B के तहत 2 लाख रुपए तक के ब्याज पर आप टैक्स छूट का लाभ उठा सकते हो। जिसे की आप अपनी सालाना आय से घटा सकते हो।

5. सेक्शन 80D की धारा

सेक्शन 80D की धारा के तहत आप मेडिकल पॉलिसी को ले सकते हैं। इस हेल्थ इंश्योरेंस में आपका, आपकी पत्नी और बच्चों का नाम भी होना चाहिए। इसमें आप प्राइवेंटिव हेल्थकेयर चेकअप की लागत के साथ साथ हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम के लिए 25 हजार रुपए तक का क्लेम कर सकते हैं।

इसके अलावा यदि आपके माता–पिता सीनियर सिटीजन के हैं, तो फिर आप उनके नाम पर भी हेल्थ इंश्योरेंस को खरीदकर 50 हजार रुपए तक का अतिरिक्त क्लेम ले सकते हैं।

6. सेक्शन 80G की धारा

इनकम टैक्स के इस सेक्शन के अंदर आप 25 हजार तक का टैक्स डेडक्शन दान या फिर चंदा देकर के माफ कर सकते हैं। लेकिन यह तब ही मान्य होगा जब आप दान या फिर चंदा की मुहर लगी हुई रसीद को जमा करेंगे। इनकम टैक्स के सेक्शन 80G के तहत आपको 25 हजार तक के अमाउंट में छूट मिल सकती है। यह भी एक tax saving Tips है, जोकि बहुत से लोगो को पता नहीं होती है।

7. सेक्शन 87A की धारा

इनकम टैक्स के अनुसार यदि आप 5 लाख रुपए की कमाई सालाना करते हैं, तो आप पर टैक्स 12,500 रुपए याने की ढाई लाख का 5% बनता है। ऐसे स्तिथि में सेक्शन 87A के तहत साढ़े 12 हजार रुपए तक का डिबेट मिल जाता है। और आपको कोई भी टैक्स नहीं देना होता है।

उम्मीद करता हूं कि आपको आज का टॉपिक Tax Saving Tips के बारे में अच्छे से समझ आ गया होगा।

Fundamental analysis

बहुत से लोगों को Fundamental analysis के नाम से ही डर लगने लगता है, लेकिन यदि शेयर मार्केट (Stock market) में किसी कंपनी में इन्वेस्ट करना है, तो Fundamental analysis सबसे जरूरी होती है। जिसका मतलब होता है, कि किसी भी कंपनी की पूरी डिटेल्स को निकालना। स्टॉक मार्केट में कंपनी का दो तरीके से एनालिसिस किया जाता है। पहला Technical analysis और दूसरा Fundamental analysis,

तो चलिए दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा की Fundamental analysis क्या होता है।

फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental analysis)

फंडामेंटल एनालिसिस वह प्रोसेस होती है, जिसमें की निवेशकों को किसी स्टॉक्स के चयन के लिए उसकी पुरानी हिस्ट्री जाननी होती है, जिससे की निवेशक उसके पुराने सारे रिकॉर्ड्स को अच्छे से जान कर उसमें इन्वेस्ट कर सकें।

Fundamental analysis

किसी भी कंपनी के पिछले रिकॉर्ड्स निकालने से मतलब उस कंपनी के प्रॉफिट–लॉस, रेवेन्यू, कंपनी का मैनेजमेंट, कंपनी क्या प्रोडक्ट बनाती है, उस प्रोडक्ट की डिमांड कितनी है, आदि चीजों से है। कोई भी कंपनी हो यदि उसमें स्मार्ट इंवेस्टर इन्वेस्ट करे तो वह कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental analysis) जरूर करेगा।

फंडामेटल एनालिसिस को देखने से हमें कंपनी की ग्रोथ का यह पता भी लग जाता है, कि कंपनी प्रॉफिट कर रही है, या फिर लॉस। क्योंकि इसमें कंपनी का बहुत ही बारीकी से विश्लेषण किया जाता है। Fundamental analysis में यह देखा जाता है, कि वह कंपनी आर्थिक रूप से कितनी मजबूत है, क्या यह कंपनी हमें लॉन्ग टर्म में एक अच्छा रिटर्न्स दे सकती है।

अधिकतर लॉन्ग टर्म इंवेस्टर (Long term investing) जो होते हैं, वह कंपनी में इन्वेस्ट उस कंपनी के फंडामेंटल को देख कर ही किया करते हैं। Fundamental analysis भी दो प्रकार के होते हैं।

  • Qualitative Analysis
  • Quantitative Analysis
Qualitative Analysis

Quanlitative Analysis में किसी भी कंपनी के एनालिसिस को हम नंबर के फॉर्म में नहीं देख सकते हैं। इसमें हम नंबर को देखने की जगह कंपनी की ब्रांड वैल्यू को देखते हैं। और कंपनी के जो भी कंपीटीटर होते हैं, उनसे आपस में तुलना करते हैं। इस तरीके से हमको किसी भी कंपनी की जानकारी मिलती है। यह प्रत्येक इंसान के लिए अलग अलग हो सकती है। किसी भी कोई प्रोडक्ट अच्छा लगता है, तो किसी को कोई और प्रोडक्ट अच्छे लगते हैं।

Quantitative analysis

Quantitative analysis में हम किसी भी कंपनी के बारे में नंबर में जान सकते हैं। इसमें कंपनी की बैलेंस शीट को देखा जाता है, जिसमें की कंपनी का PE Ratio, Earning, EPS Ratio, Dividend, Cash Flow आदि चीजों के आधार पर इन्वेस्ट किया जाता है। यदि ये सब चीजें कंपनी की खराब रहती है, तो कंपनी को कमजोर समझा जा सकता है।

कंपनी का फंडामेटल एनालिसिस कैसे करें

किसी भी किसी कंपनी का जब हमें Fundamental analysis करना होता है, तो हम सबसे पहले उस कंपनी का बैलेंस शीट देखेंगे। इससे हमें कंपनी की पूरी जानकारी मिल जाती है। यदि हमें कंपनी का फंडामेंटल चेक करना है, तो हम गूगल में जा कर के NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) की वेबसाइट में VISIT कर सकते हैं। जोकि एक सेबी रजिस्टर्ड वेबसाइट है। इसमें हमें किसी एक्सपर्ट की भी जरूरत नहीं पड़ती है। और कंपनी के बारे में अच्छे से जानकारी भी मिल जाती है। और फिर हम एक अच्छी कंपनी में इन्वेस्ट भी कर सकते हैं।

फंडामेंटल एनालिसिस कैसे उपयोगी है–

जो भी इंवेस्टर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग करते हैं, उनके लिए फंडामेंटल एनालिसिस करना बहुत जरूरी होता है, एनालिसिस करने से उनको वे स्टॉक्स बड़ी आसानी से मिल जाते हैं, जिनसे की उन्हें आने वाले समय में एक अच्छा रिटर्न्स मिल सकता है। साथ ही अच्छे बिसनेस वाली कंपनियां भी आसानी से मिल जाती है। फंडामेंटल एनालिसिस का उपयोग हमेशा लंबे समय के लिए इन्वेस्ट के लिए किया जाता है। इसमें जल्दी पैसा कमाने का टारगेट नही रखा जाता है। बल्कि इन्वेस्ट किए गए शेयर में सही रेट ऑफ रिटर्न्स पर कंपाउंडिंग करने में ध्यान दिया जाता है।

फंडामेंटल एनालिसिस के लिए मुख्य बिंदु

  • Balance sheet
  • Profit or loss
  • Annual report
  • Cash Flow
  • EPS (Earning per share)
  • Book value
  • Sales
  • Growth
  • Opponent company
  • Debt
  • Company Managemet Ect

Blue Chip fund

देश की आर्थिक हालात खराब हो रही है। लोग अपने जोखिम को कम से कम करना चाहते है, या फिर यह समझें की लोग जोखिम लेने से बच रहे हैं। इस बीच म्‍यूचुअल फंडों के इंवेस्टर ब्‍लूचिप फंडों (Blue chip fund) के बारे में जानना चाहते हैं, कि ‍क्या सही में ही Blue chip fund म्‍यूचुअल फंड की कोई कैटेगरी है?

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा की Blue Chip fund आखिर क्या होते हैं। यह किस प्रकार से काम करता है। साथ ही Blue Chip fund के लाभ और जोखिम क्या हैं?

ब्लू चिप फंड (Blue Chip Fund)

ब्लू चिप फंड (Blue Chip Fund) एक ऐसा इक्विटी प्लान है, जिसका उद्देश्य इंवेस्टर के फाइनेंशियल उद्देश्यों को पूरा करने में मदद के जरिए उन्हें एसेट अर्न (Asset Earn) की संभावनाएं उपलब्ध करवाना होता है।

Blue Chip Fund

ब्लू चिप फंड (Blue Chip Fund) में लोकप्रिय वस्तुएं और सेवाएं जो होती हैं, और इनका आउटपुट जो निकलता है, वह विक्री, लाभप्रद्धता और लाभांश परिणाम को दर्शाता है। ये MMC (एमएमसी) की पेशकश करने वाले ब्लू चिप फंड होते हैं। जोकि विख्यात ब्रांड होते हैं।

आपको बता दें, चाहे कोई भी ब्लू चिप कंपनी का स्टॉक हो, वह सबसे सुरक्षित और भरोसेमंद निवेश करता है। और यही वजह है, कि ब्लू चिप फंड (Blue chip fund) के अधिकतर स्टॉक्स छोटे स्मॉल कैप कंपनियों की तुलना में कम उतार चढ़ाव वाले होते हैं। और इसी स्थिरता की वजह से इंवेस्टर इन्हें ज्यादा पसंद करते हैं।

क्या ब्लू चिप फंड म्यूचुअल फंड की कैटेगरी है?

लोग अधिक से अधिक जोखिम लेने से बच रहे हैं, इसी बीच म्यूचुअल फंड के इंवेस्टर ब्लू चिप फंड (Blue chip fund) के बारे में जानना चाहते हैं, कि क्या यह सच में म्यूचुअल फंड का ही कोई हिस्सा है। तो इसका उत्तर है, नहीं।

बाजार में रखे हुए नजर जोकि इंवेस्टर के हित के लिए बनाई गई है, SEBI ने इस तरह की किसी भी कैटेगरी को आधिकारिक मंजूरी नहीं दी है। SEBI के नियम के अनुसार, Blue chip fund, म्यूचुअल फंड की कोई भी कैटेगरी नहीं है। बहुत से एडवाइजर और बहुत सी कंपनियां लार्ज कैप फंड को ही Blue chip fund के तौर पर ही प्रयोग करते हैं।

आपको बता दें, कि Blue chip fund की सलाह उन इन्वेस्टरों को दी जाती है, जो मार्केट में ज्यादा जोखिम नहीं ले सकते हैं। इन स्कीम में आपको कम से कम 5 सालों को ध्यान में रखकर ही निवेश करना चाहिए।

ब्लू चिप फंड कैसे काम करता है

ब्लू चिप फंड सामान्य तौर पर बीएसई 100 इंडेक्स की छोटी कंपनियों को जिनका कि मार्केट कैपिटलाइजेशन भी काफी कम होता है, वाले स्टॉक्स को विभाजित करती हैं, और उन इक्विटी स्टॉक्स में रिसोर्सेज को डायवर्सिफाई करके एक बेहतर लाभ हासिल करते हैं।

ब्लू चिप फंड के लाभ

  • भविष्य के लिए अच्छी मात्रा में धन को एकत्रित करना।
  • इक्विटी प्लान होने की वजह से Blue chip fund पैसों को बनाने में और अधिक सुलभता प्रदान करता है।
  • इस स्कीम में मनी मार्केट टूल में इन्वेस्ट करने का विकल्प है, जिससे रिक्रेन्ट रेवेन्यू मिलता है, और इससे वित्तीय स्थिरता बनी रहती है।
  • ब्लू चिप फंड में निवेश करके हम अपने रिटायरमेंट प्लानिंग, बच्चों की अच्छी शिक्षा उनका भविष्य आदि इन्वेस्टमेंट लक्ष्यों को भी पूरा कर सकते हैं।
  • यह एक ओपन एंडेड स्कीम है, जिसमे आप अपनी जरूरत के अनुसार कभी भी मनी को विड्रावल और रिडीम कर सकते हैं। और उस स्थिति में लोन लेने से बच सकते हैं।
  • यह एक सेफ इन्वेस्टमेंट है।

ब्लू चिप फंड में कितना जोखिम है–

  • जिन निवेशकों को हाई वोलेटिलिटी पसंद आती है, उनके लिए यह फंड बिल्कुल भी सही नही रहेगा, क्योंकि ब्लू चिप फंड की कंपनियों में उतार चढ़ाव कम देखने को मिलता है।
  • उतार चढ़ाव कम होने की वजह से इसके रिटर्न्स भी सीमित मिलता हैं।
  • इसमें निवेशकों से जुटाई गई रकम का कम से कम 80 परसेंट टॉप 100 कंपनियों में निवेश करना जरूरी होता है।
  • बड़े बड़े सलाहकार इसकी सलाह उन निवेशकों को देते हैं, जो अधिक रिस्क नहीं ले सकते हैं।
  • सलाहकार द्वारा इन स्कीमों को कम से कम 5 से 7 साल तक के टाइम पीरियड को ध्यान में रख कर इन्वेस्ट करना चाहिए।