
What is Bond –(बॉन्ड क्या होता है)
बहुत से लोगों को मार्केट का उतार चढ़ाव पसंद नहीं होता है, यह वह इन्वेस्टर होते हैं, जिन्हे की मार्केट से महीने की इनकम चाहिए होती है। और दूसरी तरफ वे इन्वेस्टर्स होते हैं, जिन्हे की एक ही स्टॉक्स में इनवेस्ट करना पसंद नहीं होता है, और वह बहुत से स्टॉक्स में इनवेस्ट करना ही सही मानते हैं। और यह कहीं न कहीं सही भी है।
अब जिन्हे स्टॉक्स में पैसे नहीं डालने तो उनके लिए दूसरा ऑप्शन एफ.डी. या फिर म्यूचुअल फंड का हो जाता है।म्यूचुअल फंड में भी अधिकतर इक्विटी में ही इनवेस्ट किया जाता है, तो हम इसे भी स्टॉक्स में ही ले लेंगे। और एफ.डी. में भी रिटर्न्स कुछ ज्यादा अच्छे नहीं मिलते हैं।
अब इन दोनों के बीच का एक अच्छा इन्वेस्टमेंट ऑप्शन आता है, जिसे की Bond कहते हैं। जिसमें की एफ.डी. से अच्छा रिटर्न्स मिलता है, साथ ही मार्केट में हमारा रिस्क भी कम हो जाता है। अमेरिका में बॉन्ड्स की बात करें तो यहां बॉन्ड्स मार्केट स्टॉक्स मार्केट से ज्यादा ट्रेड होता है।
इसके साथ साथ चीन में भी Bond market लगभग स्टॉक्स मार्केट के बराबर ही ट्रेड किया जाता है। बाकी अन्य सभी देशों में भी या फिर Bond market ज्यादा या फिर उसी के बराबर ट्रेड किया जाता है। परंतु इंडिया में यह एक्सचेंज में सबसे कम ट्रेड होता है।
Bond क्या हैं –
जब भी कभी कंपनी को पैसों की जरूरत होती है, उस समय या तो कंपनी स्टॉक मार्केट में अपना आईपीओ लाती है। तो इस स्थिति में कंपनी शेयर मार्केट ( Share market ) में डाइल्यूट होती है, जिससे की इक्विटी के शेयर्स कम होते हैं। मतलब की कंपनी के शेयर को पब्लिकली शेयर होल्डर बनाना पड़ता है, जो की कंपनी चाहेगी नहीं।
इसी के साथ साथ कम्पनी के पास दूसरा ऑप्शन बैंक से लोन लेने का है। परंतु बैंक से लोन लेने पर कंपनी को इंटरेस्ट रेट ज्यादा देना पड़ेगा। तो इसी वजह से कंपनी को Bond issue करवाने पड़ते हैं। जिनसे कंपनी को कम इंटरेस्ट रेट में पैसा प्राप्त हो जाता है।
Bond को गवर्मेंट या फिर प्राइवेट कंपनी भी इश्यू करवाती है। अब इसको एक एग्जांपल से समझते हैं, माना कि गवरमेंट ने अपना एक Bond इश्यू किया। जिसका साइज 10 हजार करोड़ का है। और उसकी मैच्योरिटी डेट 5 साल की है, तो यदि आप इस Bond को खरीदते हो तो आपको महीने में लगभग 8% तक का रिटर्न्स मिलता है, और यदि आप सालों तक इसे रखते हो, तो इसमें पावर ऑफ कंपाउंडिंग प्रयोग होने लगती है।
इसका मतलब यह हुआ की व्याज के उप्पर भी व्याज मिलता रहेगा। जिससे की हमें एक अच्छा रिटर्न्स देखने को मिलेगा। प्राइवेट कंपनी द्वारा बॉन्ड्स निकाले जाने पर इसे कॉरपोरेट बॉन्ड भी कहा जाता है।
स्टॉक्स में हमको हाई रिस्क के साथ साथ हाई रिटर्न्स भी मिलते हैं। दूसरी तरफ हमको एफडी में रिस्क तो कम होता है, परंतु इसके साथ साथ रिटर्न्स भी कम ही देखने को मिलता है। स्टॉक्स और एफडी के बीच में तीसरा ऑप्शन बॉन्ड्स का आता है, जिसमे की मॉडरेट रिस्क के साथ साथ मॉडरेट रिटर्न्स भी होते हैं।
Bond के फायदे–
(i)– Bond का पहला फायदा तो यह होता है, कि इसमें रेगुलर इंटरेस्ट इनकम होता है, जोकि फिक्स्ड इनकम होती है।
(ii)– बॉन्ड्स में आपकी इनकम डाइवर्सिफाई भी हो जाती है।
(iii)– काफी Bond को प्लेज के फॉर्म में भी प्रयोग किया जाता है।
बॉन्ड्स और डिवेंचर –
Bond जो होते हैं, वह मुख्य सेफ होते हैं, याने की कोई न कोई बॉन्ड सिक्योरिटी रखा जाता है। डिवेंचर की बात करें तो इसमें बॉन्ड्स सिक्योर्ड और अनसिक्योर्ड दोनों हो सकते हैं। इसलिए हमें जब डिवेंचर लेना होता है, तो एक बार यह जरूर चेक कर लेना चाहिए की यह कहीं अनसिक्योर्ड तो नहीं है।
Bond के प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट –
जब भी कोई बॉन्ड नया आता है, या फिर उसका आईपीओ निकलता है, तो उस समय हमारे द्वारा जो इनवेस्ट किया जाता है। तो प्राइमरी मार्केट समझ सकते हैं। माना यदि गवर्मेंट ने बॉन्ड इश्यू करें, जिसकी मैच्योरिटी डेट 5 साल तक की है। और हमने खरीदे हुए हैं, और उसका 5 साल तक मैच्योरिटी डेट है, उस समय जो इनवेस्ट किया जाता है, उसे प्राइमरी मार्केट कहा जाता है। यदि इनको 5 साल से पहले ही बेच दिया जाता है, तो फिर हमें सेकेंडरी मार्केट में जाना होगा।
स्टॉक मार्केट या फिर एक्सचेंज में जितने भी बॉन्ड्स लिस्टेड होते हैं, उनमें लिक्विडिटी बहुत कम होती है। इसकी वजह यह भी है, की बहुत से लोग इसको बीच में तोड़ना पसंद नहीं करते हैं, और मैच्योरिटी डेट आने का इंतजार करते हैं। और मार्केट में जब कोई बेचेगा ही नहीं तो फिर इसको बाय कौन करेगा।
बॉन्ड्स कहां ट्रेड होंगे –
आज की बात करें तो बॉन्ड्स की ट्रेडिंग डेली बेसिस पर 20 से 30 करोड़ से ज्यादा नहीं होती है। स्टॉक एक्सचेंज पर यह 1% से भी कम है। लेकिन बाकी की मार्केट ओटीसी मार्केट में रहती है, और यह 99% तक का मार्केट होता है। जिसमे की बहुत ज्यादा लिक्विडिटी होती है। जिसमे की करीबन 8 से 10 हजार करोड़ रोज ट्रेड होते हैं। अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर यह ट्रेड कौन करता है, तो आपको बता दूं कि यह ट्रेड म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस, और एचएनआईस के द्वारा की जाती है।
कूपन रेट ऑफ़ बॉन्ड्स –
जब भी कोई नया बॉन्ड आता है तो उस टाइम पर जो इंटरेस्ट रेट प्रोमिस होता है, उसे कूपन रेट ऑफ़ बॉन्ड्स कहते हैं।
मिनिमम इनवेस्ट कितना से शुरू –
बहुत बार एक–एक बॉन्ड्स की वैल्यू 10 लाख रूपए तक भी हो जाती है, तो उस हिसाब से आप वैल्यू को फिल्टर कर सकते हैं। गोल्डन पाई नाम का एक एप्लीकेशन होता है, जोकि बॉन्ड्स को खरीदने का बेस्ट प्लेटफार्म है। आप इस ऐप की सहायता से यह फिल्टर प्रयोग में ला सकते हैं। वैसे 10 हजार से इसके रेट स्टार्ट हो जाते हैं।
और जाने : बॉन्ड के साथ साथ डिबेंचर को भी समझें ( Bonds or Debenture )
टैक्स फ्री बॉन्ड इन्वेस्टमेंट –
टैक्स फ्री बॉन्ड्स सामान्यता पीएसयू इश्यू करवाते हैं। जैसे की एनएचआईस, आरईसी, पीएफसी, आदि। इन बॉन्ड्स का इंटरेस्ट रेट बहुत कम होता है। यह लगभग एफडी के बराबर ही रिटर्न्स देता है, परंतु इसमें एक चीज यह स्पेशल है, कि इसमें कोई भी टैक्सेशन नहीं देना होता है। साथ ही यह बॉन्ड्स 10 हजार से शुरू भी हो जाते हैं। और बॉन्ड्स के आईपीओ में भी इन्वेस्टमेंट मिनिमम 10 हजार से शुरू हो जाती है। जबकि अन्य बॉन्ड्स की बात करें तो उसमे इन्वेस्टमेंट 2 लाख से शुरू होती है।
टैक्सेशन –
यदि बॉन्ड्स एक्सचेंज में लिस्टेड है तो उसे लिस्टेड बॉन्ड्स कहेंगे। और जो इनमे लिस्टेड नहीं हैं, उनको अनलिस्टेड बॉन्ड्स कहेंगे। इसमें लिस्टेड बॉन्ड्स की होल्डिंग यदि आपने 12 महीने से पहले ही तोड़ दी तो इसमें शॉर्ट टर्म टैक्स लगेगा, और यह आपका टैक्स स्लैब के हिसाब से देना होगा। और यदि आप मैच्योरिटी डेट तक इंतजार करते हैं तो आपका यह लॉन्ग टर्म हो जाता है, जिसमे की आपको 10% तक टैक्स देना होता है।
यदि अनलिस्टेड बॉन्ड्स हैं तो उसमे 36 महीने से पहले तोड़ने से यह शॉर्ट टर्म के अंदर देखा जायेगा। और यदि आपका 36 महीने तक रहता है तो फिर आपका लॉन्ग टर्म के अंदर आ जाता है। लॉन्ग टर्म में आपका टैक्स 10% तक लगेगा। और शॉर्ट टर्म में आपका यह टैक्स आपकी इनकम स्लैब के हिसाब से लगेगा।