Types of Trading

आप यदि स्टॉक मार्केट में इंटरेस्ट रखते होंगे, तो आपको ट्रेडिंग के बारे में अवश्य ही पता होगा। लेकिन काफी लोगों के मन में यह सवाल भी जरूर आता है, कि ट्रेडिंग आखिर कितने प्रकार (Types of Trading) की होती है।

तो चलिए आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे की ट्रेडिंग के प्रकार (Types of Trading) कितने होते हैं।

ट्रेडिंग के प्रकार (Types of Trading)

स्टॉक मार्केट (Stock Market) में ट्रेडिंग के मुख्यत चार प्रकार होते हैं। तो चलिए जानते हैं, – Types of Trading के बारे में।

Types of Trading
  • इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday trading)
  • स्विंग ट्रेडिंग (Swing trading)
  • शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग (Short term trading)
  • लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग (Long term trading)

1. इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday trading)

इंट्राडे ट्रेडिंग के अंतर्गत आपको अपने द्वारा लिए गए ट्रेड को एक ही दिन की अंदर लेना भी होता है, साथ ही उसी दिन बेचना भी होता है। यदि आप अपने शेयर या फिर ट्रेड को किसी भी वजह से बेचना नही चाहते हो, तो आपका वह शेयर ऑटोमैटिक मार्केट बंद होने पर खुद का खुद सेल हो जायेगा। भारतीय स्टॉक मार्केट का समय सुबह 9:15AM से शाम के 3:30PM तक होता है।

इंट्राडे ट्रेडिंग के फायदे

इंट्राडे ट्रेडिंग का सबसे मुख्य फायदा यह है, कि यदि आपके पास स्टॉक को लेने लायक कैपिटल नहीं भी हो, तभी भी आपको वह स्टॉक एक सस्ते प्राइस पर मिल जाता है। मतलब की इसमें आपको ब्रोकर की तरफ से एक अच्छा खासा मार्जिन देखने को मिल जाता है।

इंट्राडे ट्रेडिंग के नुकसान

इंट्राडे ट्रेडिंग का नुकसान यह है, कि आपको उसी दिन ट्रेड को लेना भी होता है, और बंद भी करना होता है। अब चाहे आप फायदे में हो या फिर नुकसान में। इसमें रिस्क भी काफी अधिक होता है। यदि आपको स्टॉक मार्केट के बारे में अधिक नॉलेज नही है, तो फिर आपको इससे दूर रहना चाहिए, क्योंकि शुरुआती दौर में सभी लोग इंट्राडे ट्रेडिंग को काफी पसंद करते हैं। और आखिरी में उनको असफलता ही देखने को मिलती है।

2. स्विंग ट्रेडिंग (Swing Trading)

स्विंग ट्रेडिंग में आपके द्वारा लिए गए ट्रेड को कुछ दिनों या फिर कुछ हप्तों तक होल्ड करने के बाद बेच सकते हो। जिसे स्विंग ट्रेडिंग कहा जाता है। यह ट्रेडिंग आपकी इंट्राडे ट्रेडिंग से बिल्कुल अलग होती है। इसमें आप अपना लॉस और प्रॉफिट को आसानी से झेल सकते हैं।

स्विंग ट्रेडिंग के फायदे

यदि आप ट्रेडिंग के फील्ड में नए उतरे हैं, तो आपके लिए स्विंग ट्रेडिंग एक अच्छी ऑपोच्युनिटी हो सकती है। इसके बाद आप अच्छे स्टॉक्स को भी सेलेक्ट कर सकोगे। साथ ही आप स्टॉक मार्केट के उतार चढ़ाव को भी आसानी से समझ पाओगे।

स्विंग ट्रेडिंग के नुकसान

स्विंग ट्रेडिंग में यदि आपके द्वारा अच्छे स्टॉक्स को नहीं चुना गया तो आप नुकसान में जाओगे। इस ट्रेडिंग में आपके द्वारा अच्छे स्टॉक्स को चुनना बहुत जरूरी है, ताकि आप स्टॉक में काफी दिनों तक इन्वेस्ट रख सके।

3. शॉर्ट टर्म इन्वेस्टिंग (Short term investing)

ट्रेडिंग में कुछ ट्रेड ऐसे भी होते हैं, जोकि लोग कुछ हप्तों से लेकर के महीनों तक भी होल्ड करके रखते हैं। उसे शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग कहा जा सकता है। शॉर्ट टर्म इन्वेस्टिंग में एक एक्टिव ट्रेड इन्वेस्टमेंट होती है, जिसमे की आपको नजर रखनी होती है, तभी जाकर के आप अपने स्टॉक को मिनिमाइज कर सकते हो।

शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे

शॉर्ट टर्म में यदि आप अपनी पूरी रिसर्च के साथ स्टॉक्स को सेलेक्ट करते हो, तो आप अपने लॉस को मिनिमाइज कर सकते हो। और प्रॉफिट में रह सकते हो।

शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के नुकसान

शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग में आप नुकसान में तब जा सकते हो, यदि आप दूसरों की राय लेकर के स्टॉक्स को बाय करोगे। यदि आपने यूट्यूब या फिर किसी अन्य प्लेटफॉर्म से सुन कर के स्टॉक्स में इन्वेस्ट किया है, तो आप पक्का लॉस मे जाओगे। क्योंकि इसमें खुद की रिसर्च के साथ साथ आपको स्टॉक के फंडामेंटल भी पता होने चाहिए।

4. लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग (Long term trading)

लॉन्ग टर्म के नाम से ही आपको पता चल रहा होगा, कि आखिर लॉन्ग टर्म किसे कहेंगे, लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग आप उसे कह सकते हैं, जिसमे आप स्टॉक्स को एक साल से अधिक समय तक होल्ड कर के रखते हैं। लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग कहलाती है।

लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग के फायदा और नुकसान

लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग में यदि आपने स्टॉक्स के फंडामेंटल को अच्छे से देख करके स्टॉक्स को बाय किया है, तो आप एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकते हैं। लेकिन यदि आपने स्टॉक्स को बिना सोचे समझे किस्मत के भरोसे लिया है, तो आप हमेशा नुकसान में ही रहोगे।

इसलिए आप जब भी स्टॉक्स को बाय करोगे तो आपको उस स्टॉक्स के फंडामेंटल जान लेना चाहिए। ताकि आप हमेशा लॉन्ग टर्म में प्रॉफिटेबल में रहो।

उम्मीद करता हूं कि आपको Types of Trading अच्छे से समझ आ गई होगी। यदि आपका कोई भी सवाल हो, तो आप कमेंट में पूछ सकते हैं।

Nifty kya hai

Nifty

       जब कहीं पर भी दो लोग या फिर कोई ग्रुप आपस में शेयर मार्केट के बारे में बात कर रहे हों, तो आपने उनके मुंह से निफ्टी का नाम तो जरूर सुना ही होगा। या फिर आपने जब भी कभी अखबार पड़ा होगा तो उसमें भी आपको Nifty और सेंसेक्स का नाम जरूर दिखा होगा, जिसमे की यह लिखा होता है, की आज यह इतने अंक टूटकर इतने में बंद हुआ या फिर इतने अंक बड़कर मार्केट में तेजी देखने को मिली। 

उस समय आपके मन में यह सवाल भी जरूर आया होगा, कि आखिर यह निफ्टी होता क्या है। सेंसेक्स ( Sensex ) क्या होता है, के बारे में हमने पिछली पोस्ट में बात कर रखी है, आप यदि सेंसेक्स के बारे में नहीं जानते तो फिर आप उसे check कर सकते हैं। तो चलिए आपको आज मैं इस पोस्ट की मदद से Nifty के बारे में बताता हूं।

निफ्टी ( Nifty ) क्या है –

निफ्टी Naitional stock exchange of india का एक मुख्य Benchmark है, जिसका पूरा नाम Naitional stock exchange fifty है। निफ्टी को निफ्टी 50 के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन ज्यादातर लोग इसे निफ्टी ही कहकर बुलाते हैं।

यह NSE (Naitional stock exchange) में लिस्टेड टॉप की 50 कंपनियों का समूह हैं, मतलब की यह देश की मुख्य 50 कंपनियों पर नजर रखती है। लेकिन इसमें सिर्फ वही 50 कंपनियां दिखेंगी जोकि स्टॉक मार्केट के लिस्टेड हुई होंगी। निफ्टी इन 50 कम्पनियों के स्टॉक्स पर होने वाले तेजी और मंदी पर नजर रखते हैं।

निफ्टी और सेंसेक्स भारत के मुख्य स्टॉक इंडेक्स हैं, जिसमें कि निफ्टी में सबसे अधिक ट्रेड किया जाता है। निफ्टी में कभी भी 50 से अधिक कंपनियों को लिस्ट नही किया जा सकता है। और इन 50 कंपनियों में भी Nifty में 12 सेक्टर के अलग अलग 50 कंपनियां शामिल होती हैं।

Nifty का work–

निफ्टी का काम 50 कंपनियों की मदद से जोकि निफ्टी 50 के अंतर्गत आते हैं, से बाजार का हाल बताना या फिर जानकारी देना होता है। NIFTY से हमें यह पता भी चलता है, कि जो कंपनियां भारत की दिग्गज कम्पनियां है, वह कंपनियां कैसे काम कर रही हैं।

और यदि कंपनी अच्छा काम कर रही होंगी तो इसका सीधा असर मार्केट में देखने को मिलता है, इसके साथ साथ कंपनी के प्राइस में भी हमें वृद्धि देखने को मिलेगी, और निफ्टी ( Nifty ) का इंडेक्स उप्पर की और बड़ने लगेगा। मतलब की यदि टॉप की 50 कंपनियों के द्वारा अच्छा काम हो रहा है, तो शेयर में वृद्धि होगी। और इस वृद्धि की वजह से Nifty का प्राइस भी बढ़ने लगेगा।

ठीक इसके विपरीत यदि उन कंपनियों को घाटा हो रहा हो, या फिर लोगों को ये लगे कि वे कंपनियां अच्छा काम नहीं कर रही हैं, तो इससे उन कंपनियों के प्राइस में कमी देखने को मिलेगी और कंपनी के स्टॉक का प्राइस यदि घटेगा तो Nifty का प्राइस भी हमें नीचे गिरते हुए नजर आएगा।

निफ्टी का अर्थव्यवस्था से संबंध–

आपको बता दें, कि Nifty और हमारी अर्थव्यवस्था कहीं न कहीं एक दूसरे से मिली हुई है। इन दोनो का आपस में एक गहरा संबंध है।

* बैंक निफ्टी ( Bank Nifty )

निफ्टी के नीचे जाने से हमें यह पता चलता है, कि कंपनियां बेकार performance कर रही है, मतलब की कंपनियों का नुकसान चल रहा है, और जब Nifty उप्पर जाता है, तो इससे यह पता चलता है, कि कंपनियां अच्छा perform कर रही हैं। और मुनाफा कमा रही हैं। 

कंपनियां जितना अधिक प्रॉफिट करेगी, उतना ही देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी, क्युकी जब कंपनियां जितना अधिक प्रॉफिट करेगी तो कंपनी को उतना अधिक टैक्स देना होगा, जोकि देश की अर्थव्यवस्था में काम आएगा। और भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएगा।

NIFTY किस तरह बनता है–

जहां NSE में कम से कम 6 हजार कंपनियां लिस्ट होती है, वहीं निफ्टी में 50 कंपनियों को रखा जाता है, आपके मन में यह सवाल तो जरूर आया होगा की इतनी कंपनियों के बीच यह 50 कंपनियों को सिलेक्ट किस आधार पर करते हैं, तो आपको बता दें कि इसकी जो गणना होती है, वह अलग अलग सेक्टर के जानी मानी कंपनियां होती है, मतलब की प्रत्येक सेक्टर की वह कंपनिया जो की सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रही होती है, उनको इसके अंतर्गत रख लिया जाता है।

आपको बता दें कि इनका मार्केट कैपिटिलाइजेशन ( Market Capitalization ) पूरे बाजार का लगभग 60% तक होता है। जब कभी भी इन कंपनियों के शेयर ज्यादा खरीदे जाते हैं तो NIFTY ऊपर जाने लगता है, और यदि निवेशक बेचने लगे तो मार्केट में मंदी आने के आसार दिखने लगते हैं।

निफ्टी के क्या हैं फायदे–

देखा जाए तो NIFTY के वैसे बहुत से फायदे है, लेकिन इनमे से कुछ मुख्य फायदे हैं, जिसकी जानकारी होनी आवश्यक है–

1. NSE ( National stock exchange ) किस तरीके का काम कर रहा है, NSE की क्या performance चल रही है, उसका हमें एक ही नजर में पता चल जाता है।

2. बाजार में चल रही या फिर बाजार में होने वाली तेजी और मंदी की सूचना आसानी से मिल जाती है। अगर NIFTY नीचे जाता है तो बाजार में मंदी का और यदि बाजार उप्पर जाता है, तो बाजार में तेजी का पता चल जाता है।

3. NIFTY के सहयता से हमें देश की अर्थव्यवस्था की जानकारी आसानी से मिल जाती है।

निफ्टी और सेंसेक्स में अंतर –

निफ्टी देश की टॉप 50 कंपनियों को प्रदर्शित करती हैं, जबकि सेंसेक्स टॉप की 30 कंपनियों को दर्शाती हैं। इसके साथ साथ ये दोनों ही उन कंपनियों की परफॉर्मेंस के बारे में हमें बताते हैं।

Bank nifty kya hai

Bank Nifty

Bank Nifty का परिचय 

सन 2000 में भारत के IISL ( Indian index service product limited ) द्वारा Bank Nifty को शेयर बाजार में लाया गया था। इसका कारण यह था कि बैंक निफ्टी की सहायता से बैंकिंग सेक्टर में मजबूत बनाना था। और भारतीय शेयर बाजार को विश्व स्तर पर मजबूत बनाना था। आपको बता दें, कि शुरुआत के दिनों में भी इसमें 12 ही बैंक सामिल थे।

क्या होता है, बैंक निफ्टी –

यदि आपको शेयर मार्केट ( Share market ) के बारे के थोडी बहुत भी जानकारी होगी, तो आपने कभी न कभी तो बैंक निफ्टी का नाम सुना ही होगा। और आपके मन में यह सवाल भी जरूर आया होगा कि आखिर ये Bank nifty क्या चीज है? तो चलिए बताते हैं आपको बैंक निफ्टी के बारे में।

   Bank Nifty शेयर बाजार के बैंकिंग सेक्टर के टॉप के 12 स्टॉक्स के समूह से मिलकर बना हुआ होता है, जिनकी कैपिटल बहुत अधिक मात्रा में होता है, और साथ साथ उसमे वॉल्यूम भी काफी अधिक होता है। और इन 12 बैंकिंग सेक्टर के शेयरों से ही Bank Nifty में मूवमेंट देखने को मिलती है।

बहुत से ट्रेडर तो बैंक निफ्टी में इंट्राडे (Intraday) पर ही ट्रेड करना पसंद करते हैं। इंट्राडे को आप कुछ इस तरीके से समझ सकते हो, जिसमे की आपको स्टॉक्स को एक ही दिन के अंदर Buy और sell करना होता है। अब उसमें आपको चाहे लाभ हो या फिर हानि।

* निफ्टी 50 ( Nifty 50 )

* सेंसेक्स ( Sensex )

Bank Nifty में ट्रेड करके वही ट्रेडर पैसे कमाते हैं, जिनके पास शेयर बाजार की एक अच्छी नॉलेज और साथ साथ कुछ सालों का एक्सपीरियंस भी होता है, इसकी वजह यह है, कि बैंक निफ्टी में Volume काफी अधिक होता है, जिसकी वजह से उसकी volatility भी बहुत ज्यादा बड़ी रहती है, जिसको की नए ट्रेडर हैंडल नही कर पाते, या फिर समझ नही पाते हैं।

आज के दिनों में ट्रेडर इसका प्रयोग इंट्राडे के लिए ही करते हैं। क्योंकि इसमें volatility अच्छी होने से इसमें थोड़े ही समय में एक अच्छा प्रॉफिट मिल जाता है, लेकिन फिर इसमें नुकसान की भी उतनी ही संभावना है।

 आपको बता दें कि नए ट्रेडर के लिए बैंक निफ्टी में ट्रेड करना जोखिम भरा हो सकता है। लेकिन उसे यदि इसकी मूवमेंट क्या चल रही है, चार्ट को अच्छे से समझना, और टाइम के साथ एक्सपीरियंस आ गया कि किस तरीके से इसमें ट्रेड किया जाता है, तो फिर उसको आने वाले समय में एक अच्छा खासा प्रॉफिट देखने को भी मिल सकता है।

Bank Nifty का Lot size –

     Bank Nifty को आप अन्य स्टॉक्स की तरह एक या दो नहीं खरीद सकते हो, बल्कि इसको आपको एक lot के हिसाब से खरीदना पड़ता है, आज के समय में इसका Lot Size 25 Quantity का है।

इसका मतलब यह है, की यदि आप बैंक निफ्टी में ट्रेड करना चाहते हो, तो आपको कम से कम 25 क्वांटिटी तो लेनी ही पड़ेगी। और अगर आपको इससे ज्यादा क्वांटिटी लेनी है, तो फिर भी आप 25 के हिसाब से ही buy करेंगे। याने की आप 25, 50,75,100,125……. के हिसाब से आपको लेना पड़ेगा।

आपको बता दें कि बैंक निफ्टी में जो ट्रेड किया जाता है, वह इसके Options और Future को buy या फिर Sell करके किया जाता है, इसे हमारे द्वारा अधिक दिनों तक होल्ड करके नहीं रखा जा सकता है। इसमें option की एक्सपायरी हर होते के गुरुवार को होती है, और दूसरा Future जो होता है, उसकी एक्सपायरी हर महीने होती है। मतलब की Option को हमारे द्वारा एक हफ्ता और Future को महीने भर तक हमारे द्वारा होल्ड नहीं रखा जा सकता है।

ध्यान दें – ट्रेडिंग एक रिस्क से भरा हुआ बिजनेस होता है, लेकिन यदि आप इसमें टेक्निकल एनालिसिस को समझते हैं, और इसका प्रयोग करते हैं, तो फिर आप इसमें अपने रिस्क को कम कर सकते हैं।

इसलिए आपके लिए सलाह यह ही है, कि आप पहले इसको अच्छे से देखें, समझें, और परखें, तब ही जा कर के आप शुरुआत में कम क्वांटिटी के साथ ट्रेडिंग करें। और जैसे जैसे आपको एक्सपीरियंस होता जायेगा। आप अपने कैपिटल को उस हिसाब से बढ़ाते रहें।

Future and Option trading in hindi

Future and option

Future and option – फ्यूचर और ऑप्शन | हिन्दी में |

कॉन्ट्रेक्ट की शर्तों के आधार पर डेरिवेटिव को दो मुख्य भागों के बांटा गया है। जिन्हें की Future and option कहा जाता है।

1- फ्यूचर।
2- ऑप्शन।

Future and option प्रॉफिट को कमाने के लिए और उस ट्रेड में हो रहे नुकसान को सीमित करने के लिए जिससे कि हमको ज्यादा नुकसान न झेलना पड़े, उसके लिए, यह मार्केट में ट्रेड करने के लिए एक सही और बेहतर तरीका है।

Future and option एक दूसरे से अलग बहुत से कारणों से होते है। यह वास्तव में ट्रेडर के हो जोखिम को कम करता है। या फिर आप यह मान सकते हैं, इससे ट्रेडर ज्यादा नुकसान होने से बच सकता है।

Future and option एक डेरिवेटिव होते हैं। और फ्यूचर और ऑप्शन एसेट के प्राइस पर निर्भर करता है। इसमें अनुबंध ट्रेडर जो होता है, वह आने वाले समय में एसेट को खरीदने के लिए या फिर बेचने की अनुमति देता है।

      Future and options  दोनों के दोनों ही सारे मौलिक आधारों को समान रखा गया है, परंतु दोनों के अलग-अलग शर्तो और मापदंड होने के कारण ही दोनो को अलग रखा जा सकता है। इन दोनों में ही मार्केट प्राइस और मूवमेंट के बारे में अनुमान लगाकर अपने मुनाफे को कमाने और घाटे को कम से कम करने के साधन है।

* सपोर्ट और रेसिस्टेंस ( Support or Resistance )

* डेरिवेटिव्स ( Derivative ) के प्रकार।

* म्यूचुअल फंड ( Mutual fund )

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट जो होता है, वह खरीदार को सिर्फ अधिकार ही देता है, कॉन्ट्रेक्ट को नहीं। जबकि फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट जो होता है, वह खरीदार को एसेट को खरीदने के लिए और विक्रेता को एसेट बेचने के लिए एक निश्चित आने वाले समय की कीमतों पर आपको कन्फर्म करता है।

या फिर आप यह कह सकते हैं, कि यह एक निश्चित आने वाले समय की कीमतों पर काम को करने का वादा करता है। इसलिए ही जो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट होता है, वह केवल विक्रेता के लिए जरूरी होता है, जबकि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदार और विक्रेता दोनों के लिए ही जरूरी होता है।

ऑप्शन जो होता है, वह अपने ट्रेडर्स के बारे में या फिर उसकी योग्यताएं हमको प्रदान करता है, जो कि लगभग सारी रणनीतियों में उपयोग किया जाता है। जबकि फ्यूचर सरल और समझने में काफी आसान होता है।

ऑप्शन ट्रेडिंग को पहले ही शुल्क के रूप में जमा या फिर देने की आवश्यकता होती है। जबकि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को उसके बड़ते या घटते चार्जेस को दिए बिना भी दर्ज किया जा सकता है। साथ ही फ्यूचर मार्केट जो होता है, उसमे ऑप्शन मार्केट की तुलना में ज्यादा रिस्क होता है।

ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट में लाभ की क्षमता जो होती है, उसकी कोई सीमा नहीं होती है, अर्थात वह असीमित होती है। और फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट में लाभ और हानि दोनो की ही असीमित क्षमता होती है।

भारत में Future and option में अंतर

1- फ्यूचर्स ट्रेडिंग में हमको बहुत कम घाटा उठाना पड़ता है, परन्तु ऑप्शन ट्रेडिंग में नहीं। क्योंकि फ्यूचर ट्रेडिंग ऑप्शन ट्रेडिंग के मुकाबले में बहुत कम जोखिम शामिल होता है।

2- फ्यूचर ट्रेडिंग, ट्रेडर को कॉन्ट्रेक्ट को पूरा करने के लिए एक अधिकार और दायित्व देता है। जबकि ऑप्शन ट्रेडिंग इस सारी सुविधाओ को नही देता है। अब उसमें चाहे तुम्हारा कॉन्ट्रैक्ट हो या फिर ना हो।

3- फ्यूचर ट्रेडिंग में लाभ और हानि की कोई सीमा नहीं होती है। मतलब की आपको इस ट्रेड के दौरान कितना भी लाभ हो सकता है, साथ ही आपको जितना लाभ हुआ है, उतना आपको घाटा भी हो सकता है, इसमें कुछ बोला नहीं जा सकता है।

  जबकि ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट जो होता है, उसमें खाली आपके नुकसान की एक लिमिट होती है। ओर आपको फायदा कितना भी हो सकता है। लेकिन नुकसान आपका सीमित रहेगा।

4- फ्यूचर ट्रेडिंग को किसी भी अग्रिम शुल्क की आवश्यकता नहीं होती। मतलब की आपको इस ट्रेडिंग के दौरान पहले ही शुल्क देने की कोई जरूरत नहीं होती है।  जबकि ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट में प्रवेश करते समय ही आपको मामूली भुगतान करने की आवश्यकता होती है। तभी ही आप उसमें ट्रेड कर सकते हैं।

यदि अब आप पूछते हैं, कि Future and option में से कौन सा बेहतर ऑप्शन रहेगा? तो आपको बता दें, कि यह ट्रेडिंग की वरीयता, जोखिम उठाने की क्षमता, समय, अन्य बहुत से कारक और निवेश के उद्देश्यों पर निर्भर करता है। क्योंकि प्रत्येक चीज के फायदे जहां होते हैं, तो उसके कहीं न कहीं नुकसान भी जरूर होते हैं।

साथ में आपको यह भी बता दें कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट जो होता है, वह आपके एक निश्चित संभावित लाभ के लिए आपकी सहायता करता है। जबकि ऑप्शन ट्रेड जो होता है, वह आपके नुकसान को कम करने में मदद करता है।

Option trading strategies

Option trading strategies

Option trading strategies – ऑप्शन ट्रेडिंग की रणनीति  || हिन्दी में ||

      option trading strategies एक ऐसी ट्रेडिंग स्टरटेजी है, जिसमें की हमें लॉन्ग टर्म में निवेश करने में लाभ होता है, और कभी कभी हम इसमें प्राइस मूवमेंट के कारण शॉर्ट टर्म में भी निवेश करने पर हमें लाभ देखने को मिलता है। इससे हम यह समझ सकते हैं, कि इसके बहुत से सकारात्मक और नकारात्मक पहलू होते हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग की सिक्योरिटी की कीमत जो होती है, वह उनकी आधारभूत एसेट पर ही निर्भर करती है। इसलिए ऑप्शन जो होता है, वह भी एक डेरिवेटिव्स प्रोडक्ट की तरह ही होता है।

        सरल शब्दों में हम यह समझ सकते है, कि ऑप्शन ट्रेडिंग, कॉन्ट्रैक्ट का वह रूप होता है, जिसमें कि खरीदार को निश्चित समय में निश्चित मूल्य पर अपने ऑप्शन का प्रयोग करने का अधिकार होता है। इसमें खरीदार के पास ऑप्शन को प्रयोग करने का केवल अधिकार होता है, ऑप्शन ट्रेडिंग में जो मूल्य पहले से निर्धारित होता है, उस मूल्य को स्ट्राइक प्राइस कहा जाता है। और इसके साथ साथ जो पूर्व निर्धारित समय होता है, इस समय को एक्सपायरी तिथि कहा जाता है। ऑप्शन ट्रेडिंग में जितना लाभ होता है, इसमें रिस्क भी उतना ही ज्यादा होता है।

ऑप्शन के प्रकार –

    ऑप्शन ट्रेडिंग  को दो पक्षों में बांटा गया है।

1- ऑप्शन के खरीदार।
2- ऑप्शन के विक्रेता।

खरीदार के पास इसमें अपने ऑप्शन को इस्तेमाल करने या नहीं करने का पूरा अधिकार होता है। अर्थात यदि खरीदार चाहे तो उसे प्रयोग कर भी सकता है, ओर नहीं भी। लेकिन यदि खरीदार इसको बेचने का फैसला कर लेता है, तो विक्रेता इसे बेचने के लिए बाध्य होता है।

* फ्यूचर और ऑप्शन ( Future or Option )

* डेरिवेटिव्स ( Derivatives ) के प्रकार।

* वैल्यू स्टॉक ( Value Stock )

ऑप्शन ट्रेडिंग को दो भिन्न-भिन्न तरीकों से किया जा सकता है।

1- यूरोपीय – ऑप्शन का प्रयोग यूरोपियन ऑप्शन ट्रेडिंग में केवल तभी किया जा सकता है, जब ऑप्शन की समाप्त की तिथि हो। ऑप्शन की समाप्ति तिथि पर ही इसमें ट्रेड किया जा सकता है। जोकि एक पहले से समय निर्धारित रहता है।

2- अमेरिकी – अमेरिकी ऑप्शन का प्रयोग, ट्रेडिंग में ऑप्शन की जब खरीद होती है और तब तक जब तक कि उसकी समाप्ति तिथि होती है, उनके बीच कभी भी इस ट्रेड को किया जा सकता है।
भारत में ऑप्शन ट्रेडिंग करने के लिए केवल यूरोपीय ऑप्शन ट्रेडिंग ही उपलब्ध है।

मुख्यत ऑप्शन ट्रेडिंग दो प्रकार से होता है।

1- कॉल ऑप्शन।
2- पुट ऑप्शन।

कॉल ऑप्शन – कॉल ऑप्शन दो पक्षों के बीच एक तरह का डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट होता है। जिसमें कि खरीदार को अपने ऑप्शन का प्रयोग करके यह लगता है, की इस अवधि तक मार्केट उप्पर जायेगा या फिर हाई इस प्राइस को टच करेगा। उस कंडीशन में खरीदार कॉल ऑप्शन को खरीद लेता है।

पुट ऑप्शन – पुट ऑप्शन खरीदार तब लेता है, जब खरीदार को लगता है, की इस अवधि तक मार्केट गिरेगा। या फिर मार्केट डाउन जायेगा। तो इस अवधि में खरीदार द्वारा पुट ऑप्शन को खरीदा जाता है। ओर मार्केट के डाउन जाने में वह एक अच्छा खासा प्रॉफिट भी कमा लेता है।

ऑप्शन ट्रेडिंग टिप्स (option trading strategies)

    option trading strategies बहुत सी होती है। जिनकी सहायता से ऑप्शन ट्रेडिंग में बहुत से फायदा को उठाया जा सकता है। और नुकसान को समझा जा सकता है, जिससे कि हमें भी नुकसान कम हो सके।

1- ऑप्शन ट्रेडिंग करते समय हमको समय की अवधि को ध्यान में रखना चाहिए और साथ ही सावधान भी रहना चाहिए।

2- ऑप्शन खरीदार को मुख्य रूप से उस शेयर में ट्रेड करना चाहिए जोकि मुख्य रूप से अस्थिर होता है।

3- इसमें हमको हमेशा ऐसे शेयर की तलाश करनी चाहिए जिसका हाई वॉल्यूम और लिक्विडिटी हो।

4- इसमें हमें उतना ही जोखिम उठाना चाहिए जितना की हमारे पास उस जोखिम को उठाने की क्षमता हो।

5- इसमें हमें कम ब्रोकरेज शुल्क के साथ ट्रेडिंग करना चाहिए।

6- यदि हमको किसी भी शेयर या ट्रेडिंग प्रोडक्ट के बारे में नही पता होता है, तो हमे उसको नही चुनना चाहिए।

Types of derivatives

Types of derivatives

Types of derivatives – डेरिवेटिव और डेरिवेटिव के प्रकार |हिन्दी में |

  वह इंस्ट्रूमेंट जिसकी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है, लेकिन उसकी वैल्यू समय के साथ बढ़ती रहती है। अर्थात वे इंस्ट्रूमेंट जिनका असल में कोई कीमत नहीं होती, परन्तु उन्हे हम एसेट में चेंज करके अपने काम में ला सकते हैं। उनको लेकिन जिसकी वैल्यू ड्राइव हो रही है कि डेरिवेटिव (Derivatives)  कहा जाता है।

अर्थात डेरिवेटिव्स एक ऐसे फाइनेंशियल कॉन्ट्रेक्टस होते हैं, जो अपनी आधारभूत संपत्ति से अपना मूल्य प्राप्त करते हैं। इस मामले में आधारभूत संपत्ति जैसे मुद्राएं, सूचकांक, स्टॉक, ब्याज दर अथवा विनिमय दर हो सकती है।

डेरिवेटिव्स का मूल्य इन सभी चीजों पर निर्भर करता है। आज मैं इस पोस्ट के माध्यम से आपको Derivative के बारे में और साथ ही Types of Derivatives बताने वाला हूं।

आपकी जानकारी के लिए बता दे, कि जो डेरिवेटिव्स होते हैं, वह सबसे कॉम्प्लेक्स फाइनेंशियल साधन है। लेकिन इसके साथ साथ इसकी एक अच्छी चीज यह भी है, कि डेरिवेटिव्स, विदेशी मुद्रा के क्रय विक्रय, बचाव व्यवस्था आदि के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है।

Types of Derivatives (डेरिवेटिव के प्रकार ) –

Types of Derivatives मुख्य रूप से 4 होते हैं।

1- फॉरवर्ड।       2- फ्यूचर।
3- ऑप्शन।       4- स्वैप।

1- फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्टस –

फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स डेरिवेटिव्स का सबसे पुराना और सरल तरीके में से एक है। यह एक ऐसा कॉन्ट्रेक्टस होता है, जिसमें कि दो पार्टियों (विक्रेता और खरीदार ) के बीच एक ऐसा समझौता होता है जो कि भविष्य में किसी भी संपति को खरीदने या बेचने के लिए आज की कीमत पर तय किया जाता है। इसे ही फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्टस कहा जाता है।

एक बार अगर समझौता हो गया तो उसके बाद इससे मुकरा नहीं जा सकता है। मतलब की एक बार समझौता हो जाने पर यह दोनों पक्षों को रद्दीकरण का कोई भी अधिकार नहीं देता है। लेकिन आपको बता दें, कि इसके बाद भी फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्टस में धोखा होने का रिस्क ज्यादा होता है।

* फ्यूचर और ऑप्शन ( Future or Option )

* ऑप्शन ट्रेडिंग स्टारटेजी ( Option trading strategies )

* ELSS टैक्स सेविंग ( ELSS Tax saving )

2- फ्यूचर कॉन्ट्रेक्टस –

फ्यूचर कॉन्ट्रेक्टस भी डेरिवेटिव्स का ही एक प्रकार होता है, जोकि फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्टस से विकसित हुआ है। इसके अंतर्गत एक ऐसा समझौता किया जाता है, जिसमें भविष्य में डेरिवेटिव्स को बेचने के लिए एक फिक्स समय से पहले ही एक निर्धारित कीमत तय की जाती है।

जैसे कि हमनें उप्पर देखा ही कि कोई भी वित्तीय साधन या कमोडिटी डेरिवेटिव की आधारभूत संपत्ति हो सकती है। इसमें मुख्य बात यह है, कि विक्रेता और खरीदार दोनों पर कॉन्ट्रेक्टस को पहले ही निर्धारित समय पर और मूल्य पर खत्म करना जरूरी होता है।

इसमें पूर्व निर्धारित समय जो होता है, उसे हम डिलीवरी डेट और जो पूर्व निर्धारित मूल्य होता है, उसे हम फ्यूचर प्राइस कहते हैं।

     फ्यूचर कॉन्ट्रेक्टस एक सुरक्षित कॉन्ट्रेक्टस होता है, इसका कारण यह भी है, क्योंकि ये एक्सचेंज के साथ भी ट्रेड करते हैं, जिससे कि हमें एक सुरक्षा मिल जाती है। साथ ही इसमें धोखाधड़ी के अवसर भी बहुत कम होते हैं। इसके अतिरिक्त जो फ्यूचर कॉन्ट्रेक्टस होता है, वह फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्टस के ठीक विपरीत दैनिक समझौतों के अधीन होते हैं।

3- ऑप्शन कॉन्ट्रेक्टस –

डेरिवेटिव्स में सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाला कॉन्ट्रेक्टस में ऑप्शन कॉन्ट्रेक्टस ही आता है। ऑप्शन ट्रेडिंग कॉन्ट्रेक्टस के अंतर्गत खरीदार को एक विशिष्ठ समय पर अपने अधिकार को इस्तेमाल करने का अधिकार होता है।

ऑप्शन कॉन्ट्रेक्टस  में मुख्य बात यह होती है कि इसमें खरीदारों के पास अपने अधिकारों का प्रयोग करके अपने अनुसार वह खरीद और बेच सकता है। ऑप्शन कॉन्ट्रेक्टस, एक्सचेंज की तरह ही एक तरह का ट्रेड होता है। ऑप्शन के दो प्रकार होते हैं। पुट और कॉल।

     यदि आप पुट ऑप्शन को खरीदते हैं, तो आपको पहले या उससे पहले की पूर्व निर्धारित कीमत संपत्ति बेचने का सिर्फ़ अधिकार होता है। जबकि कॉल ऑप्शन खरीदार को उसकी समाप्ति पर या उससे पहले पूर्व निर्धारित कीमत पर ही एक आधारभूत संपत्ति खरीदने का अधिकार देता है। इसमे हमको जितना फायदा होता है। रिस्क भी इसमें उतना ही ज्यादा होता है।

4- स्वैप कॉन्ट्रेक्टस –

डेरिवेटिव्स के सबसे कठिन या फिर मुश्किल प्रकार में से एक स्वैप कॉन्ट्रेक्टस होता है। स्वैप कॉन्ट्रेक्टस भविष्य में दो पक्षों के बीच होने वाला नगद का आदान प्रदान करने के लिए एक निजी समझौता करवाता है। जो कि पूर्व निर्धारित होता है।

इसमें जोखिम भी सबसे ज्यादा ज्यादा होता है। क्योंकि स्वैप कॉन्ट्रेक्टस व्याज दर, या मुद्रा पर आधारित छबि होती हैं। जो कि बहुत अस्थिर होती है। बदलती रहती हैं। मुद्रा स्वैप और व्याज दर स्वैप कॉन्ट्रेक्टस के दो सबसे सरल प्रकार होते हैं।

 उम्मीद करता हूं, कि आपको मेरे द्वारा बताए गए Types of Derivatives अच्छे से समझ आ गए होंगे।