Blue Chip fund

देश की आर्थिक हालात खराब हो रही है। लोग अपने जोखिम को कम से कम करना चाहते है, या फिर यह समझें की लोग जोखिम लेने से बच रहे हैं। इस बीच म्‍यूचुअल फंडों के इंवेस्टर ब्‍लूचिप फंडों (Blue chip fund) के बारे में जानना चाहते हैं, कि ‍क्या सही में ही Blue chip fund म्‍यूचुअल फंड की कोई कैटेगरी है?

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा की Blue Chip fund आखिर क्या होते हैं। यह किस प्रकार से काम करता है। साथ ही Blue Chip fund के लाभ और जोखिम क्या हैं?

ब्लू चिप फंड (Blue Chip Fund)

ब्लू चिप फंड (Blue Chip Fund) एक ऐसा इक्विटी प्लान है, जिसका उद्देश्य इंवेस्टर के फाइनेंशियल उद्देश्यों को पूरा करने में मदद के जरिए उन्हें एसेट अर्न (Asset Earn) की संभावनाएं उपलब्ध करवाना होता है।

Blue Chip Fund

ब्लू चिप फंड (Blue Chip Fund) में लोकप्रिय वस्तुएं और सेवाएं जो होती हैं, और इनका आउटपुट जो निकलता है, वह विक्री, लाभप्रद्धता और लाभांश परिणाम को दर्शाता है। ये MMC (एमएमसी) की पेशकश करने वाले ब्लू चिप फंड होते हैं। जोकि विख्यात ब्रांड होते हैं।

आपको बता दें, चाहे कोई भी ब्लू चिप कंपनी का स्टॉक हो, वह सबसे सुरक्षित और भरोसेमंद निवेश करता है। और यही वजह है, कि ब्लू चिप फंड (Blue chip fund) के अधिकतर स्टॉक्स छोटे स्मॉल कैप कंपनियों की तुलना में कम उतार चढ़ाव वाले होते हैं। और इसी स्थिरता की वजह से इंवेस्टर इन्हें ज्यादा पसंद करते हैं।

क्या ब्लू चिप फंड म्यूचुअल फंड की कैटेगरी है?

लोग अधिक से अधिक जोखिम लेने से बच रहे हैं, इसी बीच म्यूचुअल फंड के इंवेस्टर ब्लू चिप फंड (Blue chip fund) के बारे में जानना चाहते हैं, कि क्या यह सच में म्यूचुअल फंड का ही कोई हिस्सा है। तो इसका उत्तर है, नहीं।

बाजार में रखे हुए नजर जोकि इंवेस्टर के हित के लिए बनाई गई है, SEBI ने इस तरह की किसी भी कैटेगरी को आधिकारिक मंजूरी नहीं दी है। SEBI के नियम के अनुसार, Blue chip fund, म्यूचुअल फंड की कोई भी कैटेगरी नहीं है। बहुत से एडवाइजर और बहुत सी कंपनियां लार्ज कैप फंड को ही Blue chip fund के तौर पर ही प्रयोग करते हैं।

आपको बता दें, कि Blue chip fund की सलाह उन इन्वेस्टरों को दी जाती है, जो मार्केट में ज्यादा जोखिम नहीं ले सकते हैं। इन स्कीम में आपको कम से कम 5 सालों को ध्यान में रखकर ही निवेश करना चाहिए।

ब्लू चिप फंड कैसे काम करता है

ब्लू चिप फंड सामान्य तौर पर बीएसई 100 इंडेक्स की छोटी कंपनियों को जिनका कि मार्केट कैपिटलाइजेशन भी काफी कम होता है, वाले स्टॉक्स को विभाजित करती हैं, और उन इक्विटी स्टॉक्स में रिसोर्सेज को डायवर्सिफाई करके एक बेहतर लाभ हासिल करते हैं।

ब्लू चिप फंड के लाभ

  • भविष्य के लिए अच्छी मात्रा में धन को एकत्रित करना।
  • इक्विटी प्लान होने की वजह से Blue chip fund पैसों को बनाने में और अधिक सुलभता प्रदान करता है।
  • इस स्कीम में मनी मार्केट टूल में इन्वेस्ट करने का विकल्प है, जिससे रिक्रेन्ट रेवेन्यू मिलता है, और इससे वित्तीय स्थिरता बनी रहती है।
  • ब्लू चिप फंड में निवेश करके हम अपने रिटायरमेंट प्लानिंग, बच्चों की अच्छी शिक्षा उनका भविष्य आदि इन्वेस्टमेंट लक्ष्यों को भी पूरा कर सकते हैं।
  • यह एक ओपन एंडेड स्कीम है, जिसमे आप अपनी जरूरत के अनुसार कभी भी मनी को विड्रावल और रिडीम कर सकते हैं। और उस स्थिति में लोन लेने से बच सकते हैं।
  • यह एक सेफ इन्वेस्टमेंट है।

ब्लू चिप फंड में कितना जोखिम है–

  • जिन निवेशकों को हाई वोलेटिलिटी पसंद आती है, उनके लिए यह फंड बिल्कुल भी सही नही रहेगा, क्योंकि ब्लू चिप फंड की कंपनियों में उतार चढ़ाव कम देखने को मिलता है।
  • उतार चढ़ाव कम होने की वजह से इसके रिटर्न्स भी सीमित मिलता हैं।
  • इसमें निवेशकों से जुटाई गई रकम का कम से कम 80 परसेंट टॉप 100 कंपनियों में निवेश करना जरूरी होता है।
  • बड़े बड़े सलाहकार इसकी सलाह उन निवेशकों को देते हैं, जो अधिक रिस्क नहीं ले सकते हैं।
  • सलाहकार द्वारा इन स्कीमों को कम से कम 5 से 7 साल तक के टाइम पीरियड को ध्यान में रख कर इन्वेस्ट करना चाहिए।

Mutual funds sahi ya galat

Mutual funds

Mutual funds sahi hai–

         Mutual funds sahi है या फिर Galat,, यह बताने से पहले आपको यह बताना चाहूंगा कि हममें से बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जोकि खाली इन्वेस्टमेंट के नाम से ही कतराते हैं, और उन्हें तो इन्वेस्टमेंट करना ही काफी जोखिम भरा लगता है, और वहीं दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं, जो इन्वेस्टमेंट को अपना जीवन की कमाई का आधार मानते हैं।

यदि आप एक निवेशक हैं, तो आप खुद अपने रुपयों को अच्छे से मैनेज कर सकते हैं। और एक सही जगह पर अपनी इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं। लेकिन यदि आप एक अच्छे निवेशक नही हैं, और आपको निवेश करने के बारे में कुछ ज्यादा नॉलेज नहीं है, तो फिर आप दूसरा तरीका अपना सकते हैं–

  इसमें आप बिना अधिक जोखिम उठाए ही एक इन्वेस्टमेंट करके अच्छा रिटर्न्स जेनरेट कर सकते हैं। और म्यूचुअल फंड भी उन्ही इन्वेसमेंट में से एक है, जिसमे की हम बिना अधिक जोखिम के अच्छे रिटर्न्स पा लेते हैं।

म्यूचुअल फंड क्या है–

काफी लोगों को म्यूचुअल फंड थोड़ा अलग लग सकते हैं। और वह इसलिए क्योंकि बहुत से लोगों को अपने इन्वेस्टमेंट के उप्पर मिलने वाला रिटर्न किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहते हैं। और Mutual funds में मैनेजर द्वारा पैसों को किस तरीके से मैनेज करना होता है, वह सब देखना होता है, और जब मैनेजर इन्वेस्टमेंट से एक अच्छा रिटर्न्स आपको देता है, तो वह उसमे से कुछ पर्सेंट चार्ज अपना लेता है, और वह पर्सेंट डेड से दो पर्सेंट तक होता है।

लोग अपने इस अमाउंट को भी देना नही चाहते हैं। लेकिन मैं आपको बता दूं, यह जो चार्ज लिया जाता है, वह मेंटेनेंस चार्ज, और फंड मैनेजर द्वारा एक अच्छे स्टॉक्स में डालने का चार्ज होता है, जिसमें की फंड मैनेजर अपना कीमती समय लगाकर यह डिसाइड करता है, कि किस समय पैसे डालना सही रहेगा और किस समय गलत।

Mutual funds में भी सबसे सही ऑप्शन आपके लिए यह होगा कि आप अपनी SIP (एसआईपी) करवा लें, जिसमे की आपको महीने महीने एक फिक्स्ड रुपए देने पड़ते हैं। और आप एक अच्छी इन्वेस्टमेंट के साथ बड़ा अमाउंट बना सकते हैं।

यदि आप अपनी इन्वेस्टमेंट खुद करते हैं, और आपको इन्वेस्टमेंट कहां करें, किस समय में करें, किस तरीके से करना है, यह सब कुछ पता नहीं है तो फिर आपको एक अच्छा रिटर्न्स कभी नहीं मिल सकता। और ये भी हो सकता है, कि आप अपने पैसों को गंवा बैठे।

यदि आप इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं तो फिर आपमें निवेश करने की एक अच्छी कला होनी चाहिए। और यदि आपमें यह सब कला नही है, और आप तब भी एक अच्छा रिटर्न्स कमाना चाहते हैं, तो आपको म्यूचुअल फंड में निवेश कर लेना चाहिए। जिसमे की फंड मैनेजर द्वारा स्टॉक्स को एनालिसिस करके उनमें सही समय में इनवेस्ट किया जाता है।

आपको कम से कम 10 से 12 पर्सेंट तक का रिटर्न्स इसमें मिल जाता है। और लगभग 1 से 2 पर्सेंट तक आपमें से चार्ज लिया जाता है। इतना सब कुछ समझने के बाद आप यह डिसाइड कर सकते हैं, कि Mutual funds sahi है या फिर गलत।

म्यूचुअल फंड के प्रकार –

म्यूचुअल फंड मुख्यत 4 प्रकार के होते हैं। जोकि –

1- Equity fund and Growth fund,

2- Debt fund,

3- Balanced or Hybrid fund,

4- Money market fund,

Mutual funds sahi or Galat – म्यूचुअल फंड सही या गलत–

  यदि मैं आपको Mutual funds के बारे में अपनी राय दूं तो मेरी सलाह आपके लिए यही रहेगी, यदि आपको निवेश करने के बारे में कुछ भी चीज का पता नही है, तो आपके लिए म्यूचुअल फंड एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है, साथ ही यदि आपको शेयर मार्केट ( Share market ) और इन्वेस्टमेंट का ज्ञान है, तो आप अपनी रिसर्च करके खुद ही अच्छे रिटर्न्स को चुन सकते हैं। और बेहतर रिटर्न्स के साथ आपको कोई चार्ज भी पे नही करना पड़ेगा।

इन्वेस्टमेंट करने के और भी बहुत से ऑप्शन हैं, जैसे की इंडेक्स फंड ( index fund ), स्मॉल कैश ( small case ) , ईटीएफ फंड ( ETF fund ) आदि, की मदद से आप इनवेस्ट करके बेहतर रिटर्न्स कमा सकते हैं।

SIP kya hai

SIP Investment

SIP investment–

        SIP investment एक सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट की स्कीम है, जिसमें कि आप अपने द्वारा तय की गई तारीख में म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) स्कीम में एक खास अंतराल पर एक तय राशि निवेश करते हैं। और इन्वेस्टमेंट का यह खास समय अंतराल होता है, वह या तो मासिक हो सकता है, या फिर त्रैमासिक।
 
लगभग यह मासिक और त्रैमासिक आधार पर ही होते हैं। एक एसआईपी आपके पूरे निवेश के दौरान आपकी कुल निवेश लागत का औसत निकालता है। यह आपको अपनी वित्तीय सीमा के मुताबिक, अपनी निवेश योजना को चुनने की सुविधा भी प्रदान करता है।
 
      SIP का पूरा नाम सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान होता है। जोकि हमारे इन्वेस्टमेंट को और भी अधिक बेहतर बनाता है। और यह एक समझदारी की इन्वेस्टमेंट भी है। क्योंकि जिस तरीके से SIP investment ने बहुत से लोगों की इन्वेस्टमेंट को दुगुना कर के दिया है, एसआईपी के बहुत से फायदे भी हैं। शायद ही इतना रिटर्न उन्हें फिक्स्ड डिपॉजिट करके या फिर सेविंग करके मिल पाता।
 
आप अपनी SIP investment को तो कभी भी शुरू कर सकते हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो अगर आप अपनी एसआईपी की यात्रा को सही समय में कर लेते हो तो आपको काफी अच्छा रिटर्न्स SIP investment से मिलने वाला है।
 
अब आपका सही समय कौन सा है, इसका पता आप कैसे कर सकते हैं? तो आपको मैं बता दूं कि आप एसआईपी कैलकुलेटर की मदद से इस चीज का अंदाजा लगा सकते हैं, की आप यदि इस समय में इनवेस्ट करते हैं। तो आपको आने वाले समय में कितने पर्सेंट का रिटर्न मिलने वाला है। और उस हिसाब से आप अपनी इन्वेस्टमेंट की यात्रा को शुरू कर सकते हैं।
 
     यदि आपने एसआईपी शुरू करने की सोच ली है, तो अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर एसआईपी को किस तारीख से शुरू किया जाए। इन्वेस्टमेंट के जानकारों का कहना है, कि आप शुरुआत तो किसी भी तारीख से कर सकते है, लेकिन कब से शुरुआत करना ज्यादा बेहतर होगा, इसे समझना बहुत जरूरी है।
 
 
 
 

SIP इन्वेस्टमेंट शुरू करने की सही तारीख–

       आपको बता दें, की एसआईपी में इन्वेस्टमेंट करने की कोई सही तारीख तो है नही, जिसे की हम एक मैजिक नंबर कहें। लेकिन कुछ बैंकों के मुताबिक जैसे HDFC बैंक, आदि यह सलाह देते हैं, कि एसआईपी की सही तारीख हर महीने के 10 तारीख के बाद की ही रखना ज्यादा बेहतर होगा, ताकि आपको किसी भी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।
 
क्योंकि आमतौर पर अधिकतर निवेशक में यह देखा गया है, कि एसआईपी से जो बैंक अकाउंट लिंक्ड होता है, उस बैंक अकाउंट में जब पैसा आता है, तो वह उसी तारीख को सेट कर देते हैं।
 
आपको मैं यह सलाह दूंगा कि आप SIP शुरू करने से पहले SIP कैलकुलेटर का इस्तेमाल कर लें, ताकि आपको रिटर्न का एक अंदाजा लग सके।
 

पेमेंट भूल गए या फिर SIP investment सही तारीख में नहीं दिया तो :–

       प्रत्येक एसआईपी में ऑटो डेबिट ट्रांजैक्शन फीचर होता है, जिसकी मदद से आपके द्वारा तय तारीख पर पैसा लिंक्ड बैंक अकाउंट से खुद का खुद ही डिपोजिट हो जाता है। लेकिन यदि आपके लिंक्ड किए गए बैंक अकाउंट में पैसे नही है, तो उस कंडीशन में बैंक आपसे चार्ज जरूर मांग सकता है। इसलिए हमको इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, कि जो डेट हमने एसआईपी में बता रखी है, उस तारीख तक हमारे बैंक अकाउंट में एसआईपी तक का बैलेंस जरूर होना चाहिए। मतलब की इस तारीख तक हमारे बैंक अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस होना चाहिए।
 
     उम्मीद करता हूं, कि आपको मेरे द्वारा बताए गए SIP इन्वेस्टमेंट के बारे में अच्छे से समझ आया होगा। यदि आपके मन मे इससे रिलेटेड कोई भी दूसरा सवाल चल रहा हो, तो कमेंट करके जरूर बताएं। मैं आपके सवालों के उत्तर देने की पूरी कोशिश करूंगा। 

Bond kya hota hai

Bond

What is Bond –(बॉन्ड क्या होता है)

बहुत से लोगों को मार्केट का उतार चढ़ाव पसंद नहीं होता है, यह वह इन्वेस्टर होते हैं, जिन्हे की मार्केट से महीने की इनकम चाहिए होती है। और दूसरी तरफ वे इन्वेस्टर्स होते हैं, जिन्हे की एक ही स्टॉक्स में इनवेस्ट करना पसंद नहीं होता है, और वह बहुत से स्टॉक्स में इनवेस्ट करना ही सही मानते हैं। और यह कहीं न कहीं सही भी है।

अब जिन्हे स्टॉक्स में पैसे नहीं डालने तो उनके लिए दूसरा ऑप्शन एफ.डी. या फिर म्यूचुअल फंड का हो जाता है।म्यूचुअल फंड में भी अधिकतर इक्विटी में ही इनवेस्ट किया जाता है, तो हम इसे भी स्टॉक्स में ही ले लेंगे। और एफ.डी. में भी रिटर्न्स कुछ ज्यादा अच्छे नहीं मिलते हैं।

अब इन दोनों के बीच का एक अच्छा इन्वेस्टमेंट ऑप्शन आता है, जिसे की Bond कहते हैं। जिसमें की एफ.डी. से अच्छा रिटर्न्स मिलता है, साथ ही मार्केट में हमारा रिस्क भी कम हो जाता है। अमेरिका में बॉन्ड्स की बात करें तो यहां बॉन्ड्स मार्केट स्टॉक्स मार्केट से ज्यादा ट्रेड होता है।

इसके साथ साथ चीन में भी Bond market लगभग स्टॉक्स मार्केट के बराबर ही ट्रेड किया जाता है। बाकी अन्य सभी देशों में भी या फिर Bond market ज्यादा या फिर उसी के बराबर ट्रेड किया जाता है। परंतु इंडिया में यह एक्सचेंज में सबसे कम ट्रेड होता है। 

Bond क्या हैं – 

जब भी कभी कंपनी को पैसों की जरूरत होती है, उस समय या तो कंपनी स्टॉक मार्केट में अपना आईपीओ लाती है। तो इस स्थिति में कंपनी शेयर मार्केट ( Share market ) में डाइल्यूट होती है, जिससे की इक्विटी के शेयर्स कम होते हैं। मतलब की कंपनी के शेयर को पब्लिकली शेयर होल्डर बनाना पड़ता है, जो की कंपनी चाहेगी नहीं।

 इसी के साथ साथ कम्पनी के पास दूसरा ऑप्शन बैंक से लोन लेने का है। परंतु बैंक से लोन लेने पर कंपनी को इंटरेस्ट रेट ज्यादा देना पड़ेगा। तो इसी वजह से कंपनी को Bond issue करवाने पड़ते हैं। जिनसे कंपनी को कम इंटरेस्ट रेट में पैसा प्राप्त हो जाता है।

Bond को गवर्मेंट या फिर प्राइवेट कंपनी भी इश्यू करवाती है। अब इसको एक एग्जांपल से समझते हैं, माना कि गवरमेंट ने अपना एक Bond इश्यू किया। जिसका साइज 10 हजार करोड़ का है। और उसकी मैच्योरिटी डेट 5 साल की है, तो यदि आप इस Bond को खरीदते हो तो आपको महीने में लगभग 8% तक का रिटर्न्स मिलता है, और यदि आप सालों तक इसे रखते हो, तो इसमें पावर ऑफ कंपाउंडिंग प्रयोग होने लगती है।

  इसका मतलब यह हुआ की व्याज के उप्पर भी व्याज मिलता रहेगा। जिससे की हमें एक अच्छा रिटर्न्स देखने को मिलेगा। प्राइवेट कंपनी द्वारा बॉन्ड्स निकाले जाने पर इसे कॉरपोरेट बॉन्ड भी कहा जाता है।

स्टॉक्स में हमको हाई रिस्क के साथ साथ हाई रिटर्न्स भी मिलते हैं। दूसरी तरफ हमको एफडी में रिस्क तो कम होता है, परंतु इसके साथ साथ रिटर्न्स भी कम ही देखने को मिलता है। स्टॉक्स और एफडी के बीच में तीसरा ऑप्शन बॉन्ड्स का आता है, जिसमे की मॉडरेट रिस्क के साथ साथ मॉडरेट रिटर्न्स भी होते हैं।

Bond के फायदे–

(i)– Bond का पहला फायदा तो यह होता है, कि इसमें रेगुलर इंटरेस्ट इनकम होता है, जोकि फिक्स्ड इनकम होती है।

(ii)– बॉन्ड्स में आपकी इनकम डाइवर्सिफाई भी हो जाती है।

(iii)– काफी Bond को प्लेज के फॉर्म में भी प्रयोग किया जाता है।

बॉन्ड्स और डिवेंचर –

Bond जो होते हैं, वह मुख्य सेफ होते हैं, याने की कोई न कोई बॉन्ड सिक्योरिटी रखा जाता है। डिवेंचर की बात करें तो इसमें बॉन्ड्स सिक्योर्ड और अनसिक्योर्ड दोनों हो सकते हैं। इसलिए हमें जब डिवेंचर लेना होता है, तो एक बार यह जरूर चेक कर लेना चाहिए की यह कहीं अनसिक्योर्ड तो नहीं है।

Bond के प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट –

जब भी कोई बॉन्ड नया आता है, या फिर उसका आईपीओ निकलता है, तो उस समय हमारे द्वारा जो इनवेस्ट किया जाता है। तो प्राइमरी मार्केट समझ सकते हैं। माना यदि गवर्मेंट ने बॉन्ड इश्यू करें, जिसकी मैच्योरिटी डेट 5 साल तक की है। और हमने खरीदे हुए हैं, और उसका 5 साल तक मैच्योरिटी डेट है, उस समय जो इनवेस्ट किया जाता है, उसे प्राइमरी मार्केट कहा जाता है। यदि इनको 5 साल से पहले ही बेच दिया जाता है, तो फिर हमें सेकेंडरी मार्केट में जाना होगा।

स्टॉक मार्केट या फिर एक्सचेंज में जितने भी बॉन्ड्स लिस्टेड होते हैं, उनमें लिक्विडिटी बहुत कम होती है। इसकी वजह यह भी है, की बहुत से लोग इसको बीच में तोड़ना पसंद नहीं करते हैं, और मैच्योरिटी डेट आने का इंतजार करते हैं। और मार्केट में जब कोई बेचेगा ही नहीं तो फिर इसको बाय कौन करेगा।

बॉन्ड्स कहां ट्रेड होंगे –

आज की बात करें तो बॉन्ड्स की ट्रेडिंग डेली बेसिस पर 20 से 30 करोड़ से ज्यादा नहीं होती है। स्टॉक एक्सचेंज पर यह 1% से भी कम है। लेकिन बाकी की मार्केट ओटीसी मार्केट में रहती है, और यह 99% तक का मार्केट होता है। जिसमे की बहुत ज्यादा लिक्विडिटी होती है। जिसमे की करीबन 8 से 10 हजार करोड़ रोज ट्रेड होते हैं। अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर यह ट्रेड कौन करता है, तो आपको बता दूं कि यह ट्रेड म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस, और एचएनआईस के द्वारा की जाती है।

कूपन रेट ऑफ़ बॉन्ड्स –

जब भी कोई नया बॉन्ड आता है तो उस टाइम पर जो इंटरेस्ट रेट प्रोमिस होता है, उसे कूपन रेट ऑफ़ बॉन्ड्स कहते हैं।

मिनिमम इनवेस्ट कितना से शुरू –

बहुत बार एक–एक बॉन्ड्स की वैल्यू 10 लाख रूपए तक भी हो जाती है, तो उस हिसाब से आप वैल्यू को फिल्टर कर सकते हैं। गोल्डन पाई नाम का एक एप्लीकेशन होता है, जोकि बॉन्ड्स को खरीदने का बेस्ट प्लेटफार्म है। आप इस ऐप की सहायता से यह फिल्टर प्रयोग में ला सकते हैं। वैसे 10 हजार से इसके रेट स्टार्ट हो जाते हैं।

और जाने : बॉन्ड के साथ साथ डिबेंचर को भी समझें ( Bonds or Debenture )

* SIP or Lumpsum 

टैक्स फ्री बॉन्ड इन्वेस्टमेंट –

टैक्स फ्री बॉन्ड्स सामान्यता पीएसयू इश्यू करवाते हैं। जैसे की एनएचआईस, आरईसी, पीएफसी, आदि। इन बॉन्ड्स का इंटरेस्ट रेट बहुत कम होता है। यह लगभग एफडी के बराबर ही रिटर्न्स देता है, परंतु इसमें एक चीज यह स्पेशल है, कि इसमें कोई भी टैक्सेशन नहीं देना होता है। साथ ही यह बॉन्ड्स 10 हजार से शुरू भी हो जाते हैं। और बॉन्ड्स के आईपीओ में भी इन्वेस्टमेंट मिनिमम 10 हजार से शुरू हो जाती है। जबकि अन्य बॉन्ड्स की बात करें तो उसमे इन्वेस्टमेंट 2 लाख से शुरू होती है।

टैक्सेशन –

यदि बॉन्ड्स एक्सचेंज में लिस्टेड है तो उसे लिस्टेड बॉन्ड्स कहेंगे। और जो इनमे लिस्टेड नहीं हैं, उनको अनलिस्टेड बॉन्ड्स कहेंगे। इसमें लिस्टेड बॉन्ड्स की होल्डिंग यदि आपने 12 महीने से पहले ही तोड़ दी तो इसमें शॉर्ट टर्म टैक्स लगेगा, और यह आपका टैक्स स्लैब के हिसाब से देना होगा। और यदि आप मैच्योरिटी डेट तक इंतजार करते हैं तो आपका यह लॉन्ग टर्म हो जाता है, जिसमे की आपको 10% तक टैक्स देना होता है।

यदि अनलिस्टेड बॉन्ड्स हैं तो उसमे 36 महीने से पहले तोड़ने से यह शॉर्ट टर्म के अंदर देखा जायेगा। और यदि आपका 36 महीने तक रहता है तो फिर आपका लॉन्ग टर्म के अंदर आ जाता है। लॉन्ग टर्म में आपका टैक्स 10% तक लगेगा। और शॉर्ट टर्म में आपका यह टैक्स आपकी इनकम स्लैब के हिसाब से लगेगा।

Best mutual fund

Best mutual fund

Best mutual fund | हिन्दी में |

       म्यूचुअल फंड में निवेश करने के बारे में तो हर किसी ने ही सुना रहता है। कि कम रिस्क में हमको कहां इनवेस्ट करना चाहिए। परंतु म्यूचुअल फंड में कौन से म्यूचुअल फंड हमको और अच्छे रिटर्न्स देंगे या फिर किसमे रिस्क कम है, ये हर किसी को पता नहीं होता है।

  तो चलिए आज मैं तुमको Best mutual fund में उन दो फंड्स के बारे में विस्तार से बताऊंगा जिनमे लोग मुख्यत ज्यादा निवेश करते हैं। उनमें से एक फंड का नाम इक्विटी फंड और दूसरे का नाम डेट फंड है।

इनमें अगर मैं आपको मैन डिफरेंस बताऊं तो इसका मैन डिफरेंस आपका पैसा कहा इनवेस्ट हो रहा है वो है। इसका मतलब की अगर आपने अपने पैंसो को इक्विटी फंड में निवेश किया है तो वह फंड आपका अधिकतर पैंसा स्टॉक्स में ही लगाएगी। और यदि आपके द्वारा पैसों को डेट म्यूचुअल फंड में लगाया गया है, तो वह फंड आपका अधिकतर पैसा फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में ही लगाएगी।

 अब इन दोनो ही केस में म्यूचुअल फंड अपना चार्ज जरूर ही काटेगा, जो कि 1 से 2 पर्सेंट तक होता ही है। जिसे की एक्सपेंस रेश्यो भी कहा जाता है। Best mutual fund को जानने के लिए किन मुख्य चीजों में ध्यान देना जरूरी है, ये आज मैं आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताने वाला हूं।

* डेट फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट ( Debt fund or fixed deposit )

* म्यूचुअल फंड के कड़वे सच। 

इन फंड्स के फायदे और नुकसान 

इन फंड्स के फायदे और नुकसान को जानने के लिए हम इनको मुख्यत 4 पैरामीटर में डिवाइड कर देते हैं। जिनसे की हमको इनमें डिफरेंस करने में ज्यादा कठिनाई न हो।

1– रिस्क,
2– रिटर्न्स,
3– लिक्विडिटी,
4– वोलेटिलिटी,

(i)– रिस्क – इक्विटी फंड की बात करें तो इसमें रिस्क मॉडरेट ही होता है, परंतु अगर इसमें शॉर्ट टर्म की बात करें तो इसमें रिस्क बहुत अधिक होता है। क्योंकि इसकी इन्वेस्टमेंट शेयरों में की जाती है। और शेयर में कम समय में बहुत अधिक फायदा और बहुत अधिक नुकसान भी हो सकता है। लेकिन लॉन्ग टर्म में हमको अच्छे रिटर्न्स देखने को मिल जाते हैं।

    डेट फंड में रिस्क कम ही होता है, अब वह चाहे शॉर्ट टर्म का हो या फिर लॉन्ग टर्म का। क्योंकि इसमें फंड की इन्वेस्टमेंट सरकारी बॉन्ड्स या फिर अन्य फंड में लगी होती है, जिनमें की रिस्क कम होता है।

(ii)– रिटर्न्स – इक्विटी फंड में रिटर्न्स मार्केट पर डिपेंड करता है। यदि शेयर मार्केट ( share market ) में तेजी चल रही है तो अच्छे रिटर्न्स की उम्मीद की जा सकती है, परंतु यदि मार्केट में मंदी चल रही है, तो रिटर्न्स की अच्छी उम्मीद नहीं कर सकते। पर इसमें यदि हम लॉन्ग टर्म के लिए इनवेस्ट करें तो इसमें रिटर्न्स लगभग 13 से 15 पर्सेंट तक मिल जाते हैं।

डेट फंड की बात करें तो इसमें मार्केट के उतार चढ़ाव से कोई फर्क नही पड़ता, बल्कि इनका एक एश्योर्ड एवरेज होता है, जो कि 7 से 8 पर्सेंट तक मिलता ही मिलता है।

(iii)– लिक्विडिटी – इक्विटी फंड में लिक्विडिटी मॉडरेट लॉ होती है, मान लिया जाय की यदि आपका आइडियल पोर्टफोलियो ( Ideal portfolio ) माइनस में चला गया है, या फिर घाटे में चल रहा है, और आपको पैसों की जरूरत है तो आप उस समय अपने पैसों को निकाल नही सकते हैं।

    डेट फंड में लिक्विडिटी हाई होती है, क्योंकि आपको जिस समय भी रुपयों की जरूरत होती है, आप इस समय अपने इन्वेस्टमेंट को तुड़वा सकते हैं, साथ ही आपको 7 से 8 पर्सेंट तक के रिटर्न्स तो मिल ही रहे हैं।

(iv)– वोलेटिलिटी – इक्विटी फंड में वोलेटिलिटी हाई होती है। वोलेटिलिटी से आशय उतार चढ़ाव से होता है। क्योंकि इनकी इन्वेस्टमेंट शेयर में की हुई होती है, और शेयर का प्राइस तो बहुत उपर नीचे करता ही रहता है।

डेट फंड की बात करें तो इसमें वोलेटिलिटी कम होती है। बाजार के उतार चढ़ाव से कोई मतलब नहीं होता साथ ही हमें फिक्स्ड रिटर्न्स मिल जाता है।

कहां इनवेस्ट करें –

अब इसमें सवाल यह आता है, कि आखिर हमको कौन सी जगह निवेश करना चाहिए। तो मैं आपको बता दूं कि यह आपकी उम्र, आप कितना रिस्क ले सकते हैं, साथ ही आपकी इनकम कितनी है, पर निर्भर करता है। तो इसके लिए एक साधारण सा फॉर्मूला मैं आपको बता देता हूं। जितनी आपकी उम्र होगी आपको 100 में से अपनी उम्र को घट देना है। और जितना भी आयेगा उसको आपने इक्विटी फंड  में लगा देना है, और बाकी का बचा हुआ डेट फंड में। अगर आपकी उम्र 25 साल है तो –

100 – 25 = 75

इसका मतलब यह है की अगर हमको अपनी पैसों को म्यूचुअल फंड में ही निवेश करना है तो रिस्क को मैनेज कर के करना है तो 25 की उम्र वाला यक्ति रिस्क ज्यादा ले सकता है। इसलिए हमको 75 पर्सेंट तक इक्विटी में और बाकी का बचा हुआ 25 पर्सेंट डेट फंड में लगा लेना चाहिए।

  उम्मीद करता हूं, कि आपको मेरे द्वारा बताए गए Best mutual fund क्या होते हैं, आपको अच्छे से समझ आ गया होगा। 

Mutual fund kya hota hai

म्यूचुअल फंड का सच

म्यूचुअल फंड का सच | हिंदी में |

          म्यूचुअल फंड का सच को जानने से पहले मैं आपको म्यूचुअल फंड के बारे में थोड़ा सा बताऊंगा। आपमें से बहुत से लोगों ने बहुत बार टी.वी., या फिर अन्य किसी डिवाइस में सुना ही होगा। जिसमें की लास्ट में उनके द्वारा कुछ ये कहा जाता है, mutual funds are subject to market risk please read the offer documents carefully before investing. और यह इतनी तेजी से बोला जाता है, कि या फिर हमें ये ठीक से सुनाई नही देता, या फिर हम इसको बार बार सुन सुन के इग्नोर का देते हैं।

 अब एक तरफ हमको मार्केट रिस्क तो समझ आता है, की यदि हम किसी स्टॉक्स में इनवेस्ट करेंगे तो रिस्क तो होगा ही, परंतु यदि हम लॉन्ग टर्म के लिए इनवेस्ट करके रखते हैं तो हमें एक अच्छा रिटर्न भी मिलता है। लेकिन मैं आपका इसके कुछ कमजोरी की तरफ ध्यान आकर्षित करूंगा। या फिर यह आप एक लिमिटेशन भी समझ सकते हैं। जिनकी तरफ हम कभी ध्यान ही नहीं देते हैं। लेकिन आज मैं आपको म्यूचुअल फंड का सच बताऊंगा, जिन्हें की आपके द्वारा नजरंदाज किया जाता है।

ऑफर डॉक्यूमेंट –

       ऑफर डॉक्यूमेंट के अंदर ये सब चीजें बताई गई होती हैं कि एक म्यूचुअल फंड ( Mutual Fund ) कितने केस पोजीशन को मेंटेन कर सकता है। साथ ही ये भी की वह कितना पैसा बाजार के अंदर इनवेस्ट करके रखेगा। अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि ये केस मेंटेन करके क्यों रखते हैं, तो इसका सीधा सा जवाब ये है, की आपके और हमारे जैसे लोगों को एक टाइम के बाद रुपयों की जरूरत तो पड़ती ही है, तो ऐसे इन्वेस्टर के लिए ही पैसों को रखा जाता है। और यह लगभग 2 से 5 पर्सेंट ही रखा जाता है।
 
कभी कभी फंड मैनेजर इस अमाउंट को बढ़ा लेता है, क्यूंकि कई बार स्टॉक के प्राइस काफी कम प्राइस में मिल जाते हैं। और उस समय उनको काफी फंड की भी जरूरत पड़ती है, बाकी के 95 पर्सेंट को बाजार में इनवेस्ट करके ही रखा जाता है। हां किसी स्तिथि में उनको 20 पर्सेंट तक लिक्विड फंड में केस के रूप में रखना पड़ता है, उसकी वजह ये है, कि बहुत से लोग शॉर्ट टर्म के लिए इसमें इनवेस्ट करते हैं। लेकिन मुख्यत यह 2 से 5 पर्सेंट तक ही अपने पास केस लेके रखते हैं। इसके फायदा भी हैं, और नुकसान भी। 
 

फायदा और नुकसान

इसमें फायदा यह है, कि अगर मार्केट उपर बढ़ता जाता है, और म्यूचुअल फंड ने पैसों को इनवेस्ट किया रहता है, तो उनको एक अच्छा रिटर्न्स मिलेगा। लेकिन अगर मार्केट गिर जाती है तो उस समय में जो अवसर आते हैं, वह म्यूचुअल फंड मिस कर जाएगा।

इसमें सोचने वाली बात यह है, कि एक सामान्य इंसान स्टॉक्स में निवेश तब करता है, जब मार्केट के बारे में कुछ चलत रहता है, या फिर जब मार्केट टॉप पर होता है। और जब मार्केट टॉप में रहता है तो उस समय में रिटेल इन्वेस्टर तो अपने इन्वेस्टमेंट को होल्ड कर सकता है, परंतु म्यूचुअल फंड अपने बचे हुए फंड को कहां उपयोग करेगा। इसलिए हम जैसे निवेशक के लिए तो सही है, परंतु म्यूचुअल फंड को हर एक प्वाइंट के बाद उसमे इनवेस्ट करना ही होता है। क्योंकि इनवेस्ट करना ही म्यूचुअल फंड का कार्य होता है। म्यूचुअल फंड की यह पहली लिमिटेशन है।

* म्यूचुअल फंड और स्मॉल केस ( Mutual fund or Small case )

* ईटीएफ फंड ( ETF Fund )

* इंडेक्स फंड ( Index Fund )

2– प्रोब्लम ऑफ बिग मनी

किसी भी म्यूचुअल फंड के पास पैसा इतनी बहुत मात्रा में होता है, कि वही उसके लिए प्रोब्लम बन जाता है। यहां तक की कभी कभी तो ये शेयर इतने बड़े भी हो जाते हैं, कि उनको बंद भी करना पड़ सकता है। मतलब की जब हमे कभी छोटी कंपनी में निवेश करते हैं, तो उस कम्पनी के बड़े होने में ही हमको प्रॉफिट होता है। और म्यूचुअल फंड के पास इतना पैसा होता है की अगर उसने किसी कंपनी के पास पैसा लगाया तो वह उस कम्पनी का मेजर्टी ऑफ होल्डर बन जाता है।

इसको आपको एक उदहारण के तौर पर समझता हूं। माना किसी छोटी कंपनी की वैलुवेशन 200 करोड़ की है और उसमे कोई म्यूचुअल फंड 100 करोड़ इनवेस्ट करता है, तो वह म्यूचुअल फंड उस कंपनी की 50 प्रेसेंट हकदार हो जायेगी। जो कि कोई म्यूचुअल फंड नहीं चाहता की हम इसके मेजोर्टी ऑफ होल्डर बने। और यदि म्यूचुअल फंड किसी कंपनी के अंदर कम मात्रा में पैसे इनवेस्ट कर भी लेता है, तो उससे म्यूचुअल फंड के पैसों में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।

  इसलिए म्यूचुअल फंड हमेशा बड़ी कंपनियों में ही निवेश करना ज्यादा सही समझता है। और जो कंपनी पहले से ही बड़ी हो चुकी हैं, उनके रिटर्न्स के चांसेज बहुत कम हो जाते हैं। लेकिन हम जैसे छोटे रिटेल इन्वेस्टर के लिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्युकी हमारे पास काफी कम मात्रा में पैसा होता है, तो हम किसी छोटी कंपनी में इनवेस्ट करके एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकते हैं। साथ की कंपनी को एनालिसिस भी हम कर सकते हैं।

इन प्वाइंट को सुनने के बाद आप म्यूचुअल फंड के बारे में कुछ गलत न समझे। क्युकी हर चीज के नुकसान और फायदा दोनों होते हैं, और आपको यह सब चीजें इसलिए बताई जा रही हैं ताकि आपको इसकी लिमिटेशन के बारे में भी पता लग सके।

Types of mutual fund

Types of mutual fund

Types of mutual fund – म्यूचुअल फंड के प्रकार | हिन्दी में |

म्यूच्यूअल फंड हमारे लिए एक बेस्ट इंवेस्टमेंट ऑप्शन है। जोकि हमे फ्यूचर में बहुत अच्छे रिटर्न्स दे सकता है। Types of Mutual fund वैसे तो बहुत से हैं, परंतु उनमें से म्यूचुअल फंड के प्रकार 4 हैं। जोकि नीचे बताए गए हैं।

Types of Mutual fund –

1- Equity fund and Growth fund
2- Debt fund
3- Balanced or Hybrid fund
4- Money market fund

1- Equity fund –

(i)- इक्विटी फंड को हम ग्रोथ फंड भी कहते हैं।

(ii)- इक्विटी फंड में लंबे समय तक इन्वेस्ट करने से हमें ग्रोथ देखने को मिलती है। इसी ही वजह से हम इक्विटी फंड को ग्रोथ फंड भी कहते हैं।

(iii)- इक्विटी फंड में हाई रिटर्न के साथ साथ हाई रिस्क भी मिलता है। अर्थात इसमें हमे हाई रिटर्न्स तो मिलते ही हैं, परन्तु जहां हाई रिटर्न्स होते हैं, वहां रिस्क के चांस भी उतने ही अधिक होते हैं।

(iv)- इक्विटी फंड में स्टॉक के शेयर को खरीदना ही इंवेस्टमेंट का मेजर या फिर मैन पोर्शन होता है। जिसकी वजह से इसमें थोड़ा लंबे समय तक इन्वेस्ट करना जरूरी हो जाता है।

* अच्छे म्यूचुअल फंड ( Best mutual fund )

* ETF vs Index fund vs Mutual fund

* आइडियल पोर्टफोलियो ( Ideal portfolio )

2- Debt fund –

(i)- डेट फंड में लॉ रिस्क होता है। और लो रिस्क होने की ही वजह से इसमें लॉ ही रिटर्न देखने को मिलता है। क्योंकि जहां लॉ रिस्क वहां लॉ प्रॉफिट।

(ii)- डेट फंड में इन्वेस्टमेंट का मेजर पोर्शन फिक्स्ड इनकम, गवर्नमेंट बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड और फिक्स्ड डिपॉजिट आदि होता है।

(iii)- डेट म्यूच्यूअल फंड में हम दोनों ही तरीके शॉर्ट और लोंग टर्म दोनों किसी में भी इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं।

3- Balanced or Hybrid fund –

(i)- हाइब्रिड फंड को बैलेंस्ड फंड भी कहा जाता है। इस म्यूच्यूअल फंड को बैलेंस फंड इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह फंड बैलेंस करके रखता है। यानी कि यह एक सामान्य रिस्क के साथ-साथ यह एक मॉडरेट रिटर्न्स भी देता है।

(ii)- जैसे की हमने देखा कि इक्विटी फंड में हाई रिस्क रहता है। और डेट फंड में लॉ रिस्क रहता है। और यदि दोनों फंड को मिक्स कर लिया जाए तो इसे हम बैलेंस फंड कह सकते हैं। जिसमें की रिस्क न ज्यादा होता है, ओर नाही कम रहता है। अर्थात इसमें रिस्क मॉडरेट होता है।

(iii)- हाइब्रिड म्यूच्यूअल फंड को शार्ट और लॉन्ग टर्म दोनों के लिए ही इनवेस्टमेंट कर सकते हैं।

(iv)- हाइब्रिड म्युचुअल फंड इनवेस्टमेंट का मेजर पोर्शन डेट फंड और इक्विटी फंड का मिक्सअप होता है।

4- Money market fund –

(i)- मनी म्यूच्यूअल फंड में लॉ रिस्क होता है। और लॉ रिस्क होने के साथ ही इसमें लॉ ही रिटर्न हमें देखने को मिलता है।

(ii)- मनी फंड को अधिकतर शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए ही प्रयोग किया जाता है।

(iii)- मनी मार्केट इन्वेस्टमेंट फंड का मेजर पोर्शन ट्रेजरी बिल्स, कमर्शियल बिल, कमर्शियल पेपर, और सर्टिफिकेट आफ डिपॉजिट आदि होते हैं।

  उम्मीद करता हूं, कि आपको मेरे द्वारा बताए गए Types of Mutual fund अच्छे से समझ आ गए होंगे।

Mutual fund kya hai

Mutual fund

Mutual fund – म्यूचुअल फंड | हिंदी में |

        Mutual fund के बारे में आपमें से बहुत से लोग जानते होंगे। और बहुत से लोगों ने तोह काफी बार इसका एड टेलीविजन में या फिर यू ट्यूब या फिर किसी अन्य सोशल मीडिया में जरूर देखा होगा। और मन में यह विचार जरूर आया होगा की आखिर अगर हम इसमें पैसे लगाएंगे तो हमें इससे कितना रिटर्न मिलेगा। मिलेगा तो कितना मिलेगा, ओर यदि नही मिलेगा तो हमें कितने का लॉस हो सकता है।

बहुत से लोगों के मन में यह भी चलत  रहता है, कि ये जो एड दिखा रहे हैं, वह सही भी दिखा रहे हैं, या नहीं। इसी तरह से बहुत से ख्याल हमारे दिमाग में चलते रहते हैं। इसकी वजह यह होती है क्योंकि हमें यह पता नहीं होता है कि Mutual fund क्या होता है, और यह किस तरीके से काम करता है। और सबसे बड़ा डर लोगों को यह लगा रहता है, कि यदि उनको म्यूचुअल फंड में लॉस हो गया तो! उनका तो सारा पैसा डूब जायेगा।

      आपकी जानकारी के लिए मैं आपको यह बता दू कि  बाजार में 300–400 तक स्कीम होगी। जिसमें की आप पैसे लगा सकते हैं। ओर यदि आपने गलती से सबसे खराब म्युचुअल फंड में भी निवेश किया हो या फिर सबसे खराब mutual fund आपने सिलेक्ट किया हो तो फिर भी आपके 95% चांस हैं कि यदि आपने उसमे 7 से 8 साल तक इन्वेस्ट किया है, तो आपको फिर भी एफडी से ज्यादा रिटर्न देखने को मिलेगा। लगभग 8 से 10 % तक तो मिल ही जायेगा। 

यदि आपने एक अच्छा Mutual fund को सिलेक्ट किया हुआ है, तो फिर आपको 22-23% तक के भी रिटर्न्स मिल सकते हैं। इतने अच्छे रिटर्न्स मिलने की ही वजह से आप म्यूचुअल फंड को अवॉइड करना बिल्कुल ना भूलें। म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करना बहुत जरूरी है। जोकि आपको फ्यूचर में एक काफी अच्छा रिटर्न्स दे सकता है।

Mutual fund (म्यूचुअल फंड)–

      बहुत से लोगों को यह लगता है कि जो Mutual fund होता है, वह एक शेयर मार्केट में निवेश करने का तरीका होता है। परंतु मुचूयल फंड से आप गोल्ड, रियल स्टेटस, डेट फंड, शेयर मार्केट या फिर इक्विटी आदि चीजों में भी निवेश कर सकते हैं। ओर साथ ही जब रिस्क और रिटर्न की बात की जाती है, तो उस समय यह सारी बातें इक्विटी के बारे में या फिर इक्विटी के लिए की जाती है।

म्यूचुअल फंड  में आपको शेयर मार्केट, या फिर किसी में भी पैसे लगाते हैं। ओर इसमें आपको इसको रेगुलर ट्रैक करने की भी जरूरत नहीं होता है। और इसकी फीस भी काफी कम होती है। और इसमें आपको यदि स्टॉक मार्केट का ज्ञान भी नही है, या फिर आपको स्टॉक को पिक करने नही आते हैं, तो भी आप इसमें इन्वेस्ट कर सकते हैं। आपका बस इतना सा काम होता है, कि आपको एक अच्छा फंड सिलेक्ट करना होता है। म्यूचुअल फंड (Mutual fund) के बहुत से प्रकार भी होते हैं।

* म्यूचुअल फंड के प्रकार ( Types of mutual fund )

* ईटीएफ ( ETF ) फंड।

* स्मॉल केस ( Small case )।

म्यूचुअल फंड का कार्य –

     म्यूचुअल फंड  एक फंड मैनेजमेंट कंपनी के द्वारा बनाया जाता है। जिसे कि AMC के नाम से भी जाना जाता है। इस कंपनी का काम फंड को लॉन्च करना होता है। और इसके बाद फिर लोगों से पैसे एकत्रित करती है। ऐसा करने से उनके पास जितना पैसा इकट्ठा हुआ उसे AUM (Asset under management ) कहा जाता है। और AMC को एक फंड मैनेजर रखता है।

ये ऐसे होते है, जोकि शेयर को पिक करने में मदद करते हैं। अर्थात यह एक्सपर्ट होते है। उसके बाद लोगों से किए गए एकत्रित रुपयों को इन्वेस्ट करने के लिए AMC एक strategy बनाता है, कि कहां कहां इन्हें निवेश करना सही रहेगा। और दिए गए पैसों कि जगह आपको Mutual fund  के स्कीम यूनिट मिल जाती है। जिसे कि आप जब चाहें बेच सकते हैं, बेचने के 2 दिन बाद पैसा आपके अकाउंट में आ जाएगा।

अर्थात सरल शब्दों में कहें तो म्यूचुअल फंड एक ऐसा फंड है, जहां सबका पैसा इकट्ठा होता है, और उस इकट्ठा किए गए पैसों से वह शेयर में इन्वेस्ट करके पैसों को ग्रो करते हैं। और आपको प्रॉफिट मिल पाता है।

Mutual fund के फायदे –

1- म्यूचुअल फंड के जरिए से हम थोड़े ही पैसों से बहुत सी कंपनियों में इन्वेस्ट कर सकते हैं। अर्थात थोड़े पैसों में ज्यादा diversation किया जा सकता है।

2- म्यूचुअल फंड में एक एक्सपर्ट होने के कारण आपके पैसे को सही जगह मैनेज किया जाता है।

3- म्यूचुअल फंड के जरिए आपको बार बार ट्रांजैक्शन करने की जरूरत नहीं पड़ती है। म्यूचुअल फंड खुद ही इन सारी चीजों को मैनेज करता रहता है।

4- Mutual fund  में आप SIP को ओपन कर सकते हैं। जिसमे की हमारे महीने महीने बैंक से अपने आप ही पैसे कटते रहते है, जितना प्राइस की आपके द्वारा सेट किया गया हो। और आप अपनी इच्छानुसार जब मर्जी SIP को रोक सकते हैं, ओर साथ ही जब मर्जी SIP ( एसआईपी ) को बड़ा भी सकते है।

म्यूचुअल फंड के नुकसान –

1- म्यूचुअल फंड  में कई बार कुछ कंपनियों का ज्यादा फोकस बस पैसे को लाने या जमा करने में होता है। और इस चक्कर में वह फंड को अच्छे से मैनेज भी नही कर पाते।

2- Mutual fund पर रिटर्न की गारंटी नहीं होती है। कि म्युचुअल फंड आखिर कितना रिटर्न आपको देगा। इसके रिटर्न बाजार से जुड़े होते हैं। इसलिए रिटर्न की कोई भी गारंटी नहीं होती है।

3- म्यूचुअल फंड में समय सीमा से पहले ही आपको निकासी पर फीस भरनी पड़ती है।

Benefits of SIP

SIP ke fayde

SIP ke fayde – एस.आई.पी. के फायदे

     SIP के फायदे जानने से पहले आपको इसके बारे में थोड़ा सा जानकारी दे देते हैं, SIP का पूरा नाम सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान होता है। sip एक निश्चित समयांतराल में निश्चित राशि को अपने मनपसंद म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करने की एक प्रक्रिया होती है। जिससे की आपको फ्यूचर में एक अच्छे रिटर्न्स मिल सके। यह उन लोगों के इन्वेस्ट करने के लिए सबसे अच्छा ऑप्शन है, जिनकी महीने में एक निश्चित आमदनी होती है। Sip के द्वारा भविष्य में बहुत सी जरूरतों को भी पूरा किया जा सकता है। Sip ke fayde निम्न होते हैं। चलिए आपको बताते हैं, आखिर वे फायदे कौन कौन से हैं।

1- Investment का Discipline –

      Sip ke fayde में पहला यह है कि इसको करने से  इन्वेस्टमेंट का डिस्प्लेन बन जाता है।
अर्थात जब आप sip करते हैं, तो आपके द्वारा  एक्सपेंसेस जाने के बाद जो अमाउंट आपके पास बचता है, उससे आप sip इंवेस्टमेंट करते हैं। और यह प्रक्रम जब प्रत्येक महीने में आप करते रहते हो, तो आपको एक डिसिप्लेन मिलता है। और इससे हम खुद को भी pay कर पाते हैं। और हमको कुछ सालों बाद इसके फायदे भी दिखने लगते हैं। जब हम अपना आइडियल पोर्टफोलियो ( Ideal portfolio ) को बढ़ता देखते हैं। और हमको बाद में इन्वेस्टमेंट अमाउंट को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। और इस तरीके से sip एक इन्वेस्टमेंट का डिसप्लेन भी करती है।

2- Investmet risk को कम –

     SIP के द्वारा हमारे इन्वेस्टमेंट के रिस्क को भी कम किया जाता है। उदाहरण के लिए माना की sensex graph में 2010 से 2020 तक किसी म्यूचुअल फंड ( Mutual fund ) की sip होती है, तो उनके पैसे हर stage में इन्वेस्ट होते रहते हैं। ( मार्केट में up और मार्केट के down में ) वाली स्तिथि में भी। और अंत में आपके इन्वेस्टमेंट वैल्यू में आपको अच्छे रिटर्न्स देखने को मिलते हैं। और इस तरह से हमारे द्वारा किया गया SIP investment हमारे का overall risk को कम कर देती है।

3- Average purchase price –

     Sip ke fayde यह भी है, कि वह Mutual fund के यूनिट की एवरेज परचेज प्राइस को भी कम करती है।

4- Automatic timing –

     स्टॉक मार्केट ( Stock market ) में इन्वेस्ट करने का सही समय पता होना मुश्किल होता है, मतलब की हमको यह जानकारी नहीं होती की आखिर हमे किस समय इंवेस्टमेंट करनी चाहिए। sip के द्वारा हर स्टेज या फिर प्रत्येक माह में आपके पैसे निवेश होने की वजह से आपको मार्केट टाइमिंग की चिंता भी नहीं करनी पड़ती है। और आपका समय समय पर इंवेस्टमेंट होता रहता है, चाहे मार्केट उप्पर हो या फिर नीचे। और इससे आपको ऑटोमेटिक टाइमिंग भी मिल जाती है।

5- Investment goal –

      Sip के disciplaine की वजह से आप अपने बड़े इन्वेस्टमेंट गोल को भी पूरा कर सकते हैं। जैसे कि retirement होने पर घर का फाइनेंशियल खर्चा को चलाना, बच्चों की उच्च शिक्षा के सपने को पूरा करना, उनकी शादी आदि, बहुत से चीजों को हम इसकी सहायता से पूरे कर पाते हैं।

SWP in Mutual fund

SWP in mutual fund

SWP in mutual fund क्या है ?

       बहुत से लोगों ने SIP के बारे में तो सुना ही होगा, SIP का पूरा नाम सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान ( SIP ) होता है, जिसमें कि एक निश्चित राशि एक निश्चित अंतराल के अंदर लगभग प्रत्येक माह में कोई भी अपने मनपसंद के म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। जिससे की हमारे लिए एक बड़ी राशि करना बड़ा आसान या संभव हो पाता है। ठीक उसी के विपरीत SWP in mutual fund होता है, जिसका पूरा नाम सिस्टमैटिक विड्रोल प्लान होता है।

* म्यूचुअल फंड के प्रकार ( Types of mutual fund )

* प्रेफरेंस शेयर कैपिटल ( Preferance share capital )

      SWP in mutual fund  में हमारे द्वारा पहले ही एक बड़ा अमाउंट जमा या फिर निवेश किया जाता है, तथा बाद में आप उस अमाउंट को एक निश्चित अंतराल के अंतर्गत थोड़ा थोड़ा करके निकालते हैं।एसडब्ल्यूपी  में आप debt, equity, या hybrid funds इनमे से कुछ भी कर सकते हैं। और आपको बता दें, कि जो ये निश्चित अंतराल होता है, वह लगभग मासिक या फिर त्रीमाशिक ( तीन माह ) हो सकता है। लेकिन यदि आप चाहते हैं, कि इसे हम कम बार ही प्रयोग में लाएं। तो आप साल में इसे एक या दो बार भी रख सकते हैं।

    SWP के दो प्रकार होते हैं।

1- Fixed amount
2- Capital appreciation

1- Fixed Amount –

     फिक्स्ड अमाउंट से आपको इस बात का फर्क नहीं पड़ता है कि आपके म्युचुअल फंड ( Mutual Fund ) के रिटर्न आखिर कितने हैं, फ़िक्स्ड अमाउंट में आपको एक निश्चित राशि को निश्चित अंतराल पर अपने म्यूचुअल फंड से निकालते रहना होता है। चाहे इसमें आपके म्युचुअल फंड के रिटर्न कुछ भी हों।

2- Capital Appreciation –

     कैपिटल एप्रिसिएशन से आप यह समझ सकते हैं, कि जितने भी रिटर्न्स आपके म्युचुअल फंड मूल निवेश राशि पर कमाता है। उतने रिटर्न्स को जो की म्यूचुअल फंड को लाभ हुआ है, उसे आपके बैंक अकाउंट में हर महीने बेझता या फिर क्रेडिट करता रहता है।

SWP in mutual fund के उपयोग –

(i)-  नौकरी करने के बाद जब कोई व्यक्ति रिटायरमेंट होता है, तो उस समय SWP बहुत काम आती है, आप यह मान सकते हैं, कि यह आपके खर्च चलाने के लिए जरूरी हो सकता है।

(ii)- यदि आपको कभी लंबी छुट्टी में जाना हो तो उस समय आपको कुछ पैसों की भी जरूरत पड़ सकती है, तो उस समय भी SWP आपके काम आ सकती है।

(iii)- बिजनेस करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए SWP बहुत काम आ सकती है।

SWP in mutual fund के फायदे –

(i)- एसडब्ल्यूपी हमको आय का निश्चित हिस्सा एक स्त्रोत के रूप में देती है। वो भी बिना पूरे इन्वेस्टमेंट को निकाले हुए। SWP कभी भी पूरा इंवेस्टमेंट नहीं निकालती बल्कि आपके जरूरत के अनुसार ही इंवेस्टमेंट को खर्च करती है।

(ii)- एसडब्ल्यूपी  से हमें काफी अच्छे रिटर्न्स भी देखने को मिलते हैं।

(iii)- एसडब्ल्यूपी  से आप मार्केट के किसी भी स्तर से पैसे निकाल सकते हैं। जिससे कि आपका टोटल निकाला हुआ पैसा या फिर ओवरऑल विड्रवाल एक एवरेज प्राइस पर ही रहता है।

SWP in mutual fund की जरूरी बातें –

(i)- आप एक ही फंड में SIP और SWP नहीं कर सकते हैं। मतलब की अगर आपने किसी म्यूचुअल फंड में SIP किया हुआ है, तो आप उसी फंड में फिर SWP नहीं कर सकते हैं।

(ii)- जैसे जैसे इनफ्लेशन की दर बढ़ती जा रही है, उसी तरीके से हमें अपना विड्रवल भी बढ़ाते रहना चाहिए।

(iii)- कोई भी विड्रवल का टैक्स ट्रीटमेंट, नॉर्मल विड्रवल की तरह ही होगा।

(iv)- SWP in mutual fund  का प्रयोग यदि आप कुछ महीनों से 3 साल तक के लिए करना चाहते हैं, तो आपको कम से कम 6 महीनों के लिए लिक्विड फंड का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही यदि आपको 1 साल तक विड्रवल करना है, तो फिर आप अल्ट्रा शॉर्ट फंड का इस्तेमाल कर सकते हैं।

(v)- आपने जिस फंड से SWP किया हुआ है, आपको उस फंड का परफॉर्मेंस भी मॉनिटर करते रहना चाहिए।