Penny Stock

जब भी आपने बाजार में निवेश किया होगा, तो काफी बार आपको यह सुनने को मिलता होगा कि यदि आपने इस पैनी स्टॉक (Penny Stock) में उस समय में इतना पैसा लगाया होता, तो आप अभी तक इतने रुपयों के मालिक होते। उस समय आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा, आखिर Penny Stock क्या होता है।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा कि Penny Stock क्या होता है। हमे इन्हे खरीदना चाहिए, या नहीं। और भी बहुत से महत्वपूर्ण जानकारी आपको इस आर्टिकल के मदद से मिल पाएगा।

पैनी स्टॉक (Penny Stock)

पैनी स्टॉक (Penny Stock) उन शेयर को कहा जाता है, जोकि स्टॉक मार्केट (Stock market) में काफी कम प्राइस में चल रहे होते हैं, या फिर कम प्राइस में ट्रेड हो रहे होते हैं। कम प्राइस से मतलब 20 या फिर उससे नीचे वाले शेयर जो इस प्राइस में मार्केट में ट्रेड होते हैं। Penny Stock का तात्पर्य ही सस्ते शेयर, या फिर छोटे शेयर से है। जिसमें की कम प्राइस में हम स्टॉक को Buy कर सकें।

Penny Stock

यदि इसे दूसरे शब्दों में समझें तो स्मॉल कैप कंपनियां या फिर मिड कैप कंपनियों के वे स्टॉक जोकि स्टॉक मार्केट में कम प्राइस में भी खरीदे जा सकते हैं। ऐसे स्टॉक्स में आपको जितना अधिक प्रॉफिट देखने को मिलेगा उतना ही अधिक इसमें रिस्क भी होता है। अधिकतर नए निवेशक ही Penny Stock की और अधिक आकर्षित होते हैं। क्योंकि वह जल्दी पैसे कमाना चाहते हैं।

Penny Stock की असल में सच्चाई यह होती है, कि यह कंपनी या तो पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी होती है, या फिर उनका बिसनेस पूरी तरह से खत्म हो चुका होता है। अब सवाल यह आता है, कि आखिर Penny Stock में लोग इन्वेस्ट क्यों करते हैं। सस्ते के चक्कर में या फिर इनमे स्कॉप भी रहता है।

पैनी स्टॉक में निवेश करने के कारण–

पैनी स्टॉक में इन्वेस्ट करने के बहुत से कारण हो सकते हैं, जिस वजह से इंवेस्टर इनमे लुभा जाते हैं। Penny Stock को खरीदने के लिए क्यों निवेशक अधिक आकर्षित होते हैं।

  • कम प्राइस को देखते हुए अधिकतर नए निवेशक अधिक आकर्षित होते हैं, वह सोचते हैं, कि कम प्राइस में अधिक शेयर लेने पर यदि वह शेयर एक भी रुपए बढ़ गया तो उसे एक अच्छा प्रॉफिट देखने को मिल जायेगा। लेकिन यदि वह महंगा शेयर खरीदेगा तो उसको कम ही शेयर मिल पाएंगे। लेकिन आपको बता दें, की जितना सस्ता शेयर उसकी वैल्यू उतनी कम और उतने ही डूबने के उसके चांसेज होते हैं।
  • कम कीमत वाले शेयर के बढ़ने के चांसेस ज्यादा होते हैं, क्योंकि उन कंपनियां का बिजनेस बहुत छोटे स्केल से हो रहा होता है। इसमें जितना अधिक रिटर्न की संभावनाएं होती है, उसमें उतना ही अधिक रिस्क भी होता है। लोग पैनी स्टॉक को अगला एचडीएफसी बैंक कंपनी समझ कर उसमे इन्वेस्ट करने की सोचते हैं। क्योंकि एचडीएफसी का शेयर भी एक पैनी स्टॉक था और उसने आज सभी निवेशकों को एक अच्छा प्रॉफिट कमा कर भी दिया।

इन्हीं वजह से छोटे रिटेल निवेशक से लेकर के बड़े बड़े इंस्टीट्यूशन इन्वेस्टर्स भी इसकी और आकर्षित होते हैं। जिसमे की अच्छा मल्टीबेगर रिटर्न्स की आशा हर कोई इंवेस्टर लगाए फिरता है।

पैनी स्टॉक क्यो इतने रिस्की–

पैनी स्टॉक जो होते हैं, वह लार्ज कैप की तुलना में काफी अधिक रिस्की होते हैं। इसमें सोचने वाली बात यह है, कि क्यों वह शेयर पैनी स्टॉक बना है, क्या उस कंपनी के पास कर्जा है, या फिर उस कंपनी की तरह दूसरी कंपनी बन गई जो की लोगों को अच्छी सर्विस देने लगी है। या फिर उस कंपनियों का बिजनेस ही चौपट हो गया है। या फिर कंपनी प्रॉफिट जेनरेट नहीं कर पा रही है।

आपको इस बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए, कि कोई भी कंपनी हो उसका एक बिजनेस होता है, और हर एक शेयर के पीछे कोई न कोई कंपनी जरूर जुड़ी होती है, इसलिए आप जब भी आप किसी शेयर में पैसा लगा रहे हैं, तो आप उस कंपनी के बिजनेस में पैसा लगाते हैं। आपको हमेशा यह याद रखना है, कि जितना सस्ते में पैनी स्टॉक आपको मिल रही है। वह शेयर आपको उतना ही महंगा भी पड़ सकता है।

पैनी स्टॉक के रिस्की होने के कुछ कारण हर निवेशक को पता होने चाहिएं

  • जानकारी का अभाव होना।
  • ज्यादा वोलेटिलिटी का होना।
  • कम लिक्विडिटी का होना।
  • ऑपरेटर के द्वारा दाम का घटना और बढ़ना।
  • उप्पर नीचे चल रहे स्टॉक को देख कर अधिक आकर्षित होना।

पैनी स्टॉक के फायदे

  • पैनी स्टॉक में निवेश करने वाले लोगों को कम पैसे लगा कर अधिक प्रॉफिट कमाने का मौका मिल जाता है।
  • कम प्राइस में अधिक शेयर खरीदने को मिल जाता है।
  • छोटी कम्पनियां होने के कारण इनमे ग्रोथ अच्छी होती है।
  • वोलेटाइल होने की वजह से इसमें कम समय में अधिक रिटर्न भी देखने को मिल जाते हैं। जिस वजह से यह इंवेस्टर की पहली पसंद बने रहते हैं।

पैनी स्टॉक के नुकसान

  • छोटी कंपनी होने की वजह से इसके डूबने के चांस भी उतने ही बन जाते हैं। क्योंकि यह एक स्मॉल कैप कंपनियां होती है।
  • इन स्टॉक में लगातार अपर सर्किट और लोअर सर्किट लगता रहता है।
  • इन शेयर में ट्रेडिंग करना काफी मुश्किल होता है। इसमें बाय और सेल करने में भी काफी दिक्कत होती है।
  • इनमें लिक्विडेशन काफी कम होता है, जिस वजह से कोई भी ऑपरेटर इसे आसानी से ऑपरेट कर लेता है।
  • इन स्टॉक्स में पंप एंड डंप देखने को मिलता है।

Types of life insurance

यदि किसी भी घर–परिवार में कोई एक ही सदस्य है, जो की कमाने वाला हो। और उस पर घर के सभी सदस्य डीपेंड रहते हों। तो उसके जाने के बाद जीवन बीमा (life insurance) उस पर निर्भर लोगों को कुछ हद तक फाइनेंशियल तौर पर मदद देता है। लेकिन यह केवल एक ही प्रकार का नही होता है। बल्कि इंश्योरेंस के बहुत से प्रकार (Types of life insurance) होते हैं।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको इंश्योरेंस के विभिन्न प्रकार (Types of life insurance) के बारे में बताऊंगा।

Types of life insurance

इंश्योरेंस के प्रकार (Types of insurance)

वैसे तो लाइफ इंश्योरेंस के बहुत से प्रकार (Types of life insurance) होते हैं। लेकिन भारत में लाइफ इंश्योरेंस मुख्य रूप से 8 प्रकार की होती है। फिर इंश्योरेंस कराने वाला पॉलिसीधारक अपने मन मुताबिक कोई भी बीमा पॉलिसी का चुनाव कर सकता है। आइए जानते हैं, लाइफ इंश्योरेंस के प्रकार (Types of life insurance)

1. टर्म इंश्योरेन्स

टर्म इंश्योरेन्स प्लान एक सुनिश्चित समय याने की 10, 20, या फिर 30 साल के लिए खरीदा जा सकता है। इसमें दिए गए समय के लिए आपको कवरेज मिलता है। ऐसी जो लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी होती हैं, उनमें मेच्योरिटी बेनिफिट नही मिलता है। यह सेविंग या फिर प्रॉफिट कंपोनेंट के बिना ही लाइफ कवर आपको प्रदान करवाती हैं। टर्म इंश्योरेन्स में पॉलिसीधारक की मौत हो जाने पर एक तय रकम बेनिफिशियरी या नॉमिनी को दी जाती है। यह अन्य इंश्योरेंस की तुलना में काफी सस्ता प्लान है।

2. मनीबैक इंश्योरेंस

मनीबैक इंश्योरेंस पॉलिसी में इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस का मिलाप होता है, इस पॉलिसी में अंतर सिर्फ इतना है, कि इस लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ एस्योर्ड सम पॉलिसी के दौरान ही यह किस्तों में वापस किया जाता है। और इसमें जो आखिरी किस्त पॉलिसी है, वह खत्म होने पर ही मिलती है।

यदि पॉलिसी लेने वाले व्यक्ति की किसी वजह मृत्यु हो जाती है, तो उसका पूरा अमाउंट नॉमिनी को दे दिया जाता है। हालांकि आपको बता दें, कि इस पॉलिसी का प्राइस सबसे अधिक होता है।

3. एंडोमेंट पॉलिसी

एडोमेंट पॉलिसी में इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट दोनो होते हैं। ये जो इंश्योरेंस होते हैं, उनमें एक निश्चित समय के लिए हो रिस्क कवर होता है। और यदि वह अवधि खत्म हो जाती है, तो उसके बाद पॉलिसीधारक को बोनस के साथ उसका सारा अमाउंट वापस कर दिया जाता है। इनमें कुछ पॉलिसी ऐसी भी होती हैं, जो खतरनाक बीमारी होने पर भी आपको भुगतान करती है।

4. सेविंग्स एंड इन्वेस्टमेंट प्लान

सेविंग्स एंड इन्वेस्टमेंट प्लान पॉलिसीधारक को और उसके परिवार वालों को फ्यूचर के खर्चों के लिए एकमुश्त फंड दिलाता है। आपको बता दें, की ऐसे इंश्योरेंस प्लान आपको वित्तीय मामले में मजबूत तो कराती ही हैं, इसके साथ साथ यह आपको और आपके परिवार को वित्तीय सुरक्षा भी प्रदान करता है।

5. यूलिप

यूलिप में भी आपका इन्वेस्टमेंट और सुरक्षा दोनो होती है। आपको बता दें, कि एंडोमेंट इंश्योरेंस पॉलिसी और मनीबेक पॉलिसी में मिलने वाला रिटर्न लगभग पक्का होता है। वहीं यदि यूलिप की बात करें तो उसमे ऐसी कोई भी गारंटी नहीं होती है। क्योंकि यूलिप में इन्वेस्टमेंट को बॉन्ड और स्टॉक में लगाया जाता है। और म्यूचुअल फंड की तरह आपको यूनिट मिल जाती है। इसमें आप यह तय कर सकते हैं, कि आपका कितना पैसा शेयर में लगना चाहिए, और कितना बॉन्ड में लगना चाहिए।

6. आजीवन लाइफ इंश्योरेंस–

लाइफ टाइम इंश्योरेंस में आपको पूरी जिंदगी भर का प्रोटेक्शन दिया जाता है। इसमें पॉलिसी का कोई भी टर्म नही होता है। यदि इंश्योरेंस धारक की मृत्यु हो जाती है, तो उसके द्वारा बनाए नॉमिनी को बीमा का क्लेम मिल जाता है। यदि मैं बाकी इंश्योरेंस पॉलिसी की बात करूं तो उसमें एक फिक्स टाइम लिमिट होती है। और उस डेट के बाद नॉमिनी को डेथ क्लेम नहीं मिलता है। लेकिन इस इंश्योरेंस पॉलिसी का प्राइस भी उतना ही अधिक होता है। इसमें पॉलिसी धारक पैसे को लोन पर भी ले सकता है।

7. चाइल्ड इंश्योरेंस पॉलिसी

चाइल्ड इंश्योरेंस पॉलिसी बच्चों की पढ़ाई लिखाई के खर्चे को और उनकी बाकी की जरूरतों को देखते हुए बनाई गई है। इस इंश्योरेंस में पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाने पर नॉमिनी को भुगतान कर दिया जाता है। और पॉलिसी भी चालू रहती है। और इंश्योरेंस कंपनी पॉलिसी को लेने वाले की तरफ से इन्वेस्टमेंट को जारी रखता है। और बच्चों को एक निश्चित अवधि तक पैसा मिलता रहता है।

8. रिटायरमेंट प्लान

इस इंश्योरेंस प्लान के हिसाब से आपको इसमें रिटायरमेंट प्लान तो मिलता है, लेकिन इसमें आपको लाइफ इंश्योरेंस कवर नहीं होता है। इसमें आप अपने रिटायरमेंट को देखते हुए एक फंड बना सकते हैं। और जितनी अवधि आपने तय की होती है, उस अवधि के पूरे होने पर आपको एक निश्चित रकम का भुगतान किया जाता है।

उम्मीद करता हूं, की आपको Types of life insurance के बारे में अच्छे से समझ आ गया होगा। यदि कोई भी डाउट होगा, तो आप कॉमेंट में पूछ सकते हैं।

Super singer vote

Vote

Vote कैसे दें। |हिन्दी में |

       आजकल भारत में चुनाव का माहौल बना हुआ है, और चुनाव में आप हर किसी का Vote देना बहुत जरूरी है। सही व्यक्ति को वोट देने से हमारे आसपास की अर्थव्यवस्था भी सुधरती है, साथ ही विकास भी होता है। इसलिए आपके वोट देने से ही हमारे समाज का कल लिखा हुआ है।
 
यदि आप यह सोचते हैं, कि आपके एक Vote देने से क्या होने वाला है, तो आपको बता दूं, कि बहुत बार आपके ही एक Vote से पूरा चुनावी माहौल ही बिगड़ जाता है। और यदि सब लोग यही सोचने लगे कि उनके एक वोट देने से क्या होने वाला है, तो आखिर वोट देने जायेगा कौन ?
 
      भारत के सभी नागरिकों को, उनकी जाति, रंग या अधीनता की पिछली स्थिति की परवाह किए बिना, नागरिकता अधिनियम के तहत मतदान करने का अधिकार है, जोकि उन्हें 15वें संशोधन के तहत सुरक्षा प्रदान करता है। भारत के चुनाव आयोग के अनुसार,  प्रत्येक नागरिक के लिए निम्नलिखित शर्तों के तहत मतदाता बनने के पात्र है।
 
     जब तक भारत का कोई भी नागरिक अपनी आयु सीमा 18 वर्ष या फिर इससे अधिक उम्र का न हो जाए, तब तक उस व्यक्ति को Vote देने का अधिकार नहीं है। 18 वर्ष से उप्पर का नागरिक ही नामांकन के लिए पात्र है।
इसके लिए जिन मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए वह आगे दी हुई है।
 
(i)– आप जिस निवास स्थान पर रह रहे हो, वहां ही आपका नामांकन होना चाहिए।
 
(ii)– एक ही जगह पर आपका नामंकन होना चाहिए, ऐसा न हो कि आपका एक से अधिक जगह में नामांकन हुआ हो।
 
(iii)– आपके पासपोर्ट में जो पता दिया गया हो, वह पता उस व्यक्ति का निवास स्थान होना चाहिए। क्योंकि सेवा मतदाता अपने घर के पते पर सामान्यत: निवासी माने जाते हैं।
 
 
 
 

Vote देने के लिए कौन पात्र नहीं है–

(i)– वह नागरिक जिसके उप्पर भ्रष्ट आचरण या चुनाव से संबंधित किसी भी अवैध कार्य की कार्यवाही चल रही हो, या फिर कानून द्वारा घोषित किया हो की यह मतदान के लिए अस्थिर है।
 
(ii)– यदि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक न हो तो उसको वोट देने का अधिकार नहीं है।
 
(iii)– Vote देने वाले व्यक्ति के पास न तो वोटर आईडी हो और नाही उसका नाम मतदाता पंजीकृत सूची में चढ़ा हुआ हो।
 
(iv)– चुनाव आयोग से एक मतदाता पर्ची जारी की जाती है। जोकि मतदाता सूची में नागरिक के नाम की पुष्टि करती है। यदि वोटर देने वाला व्यक्ति मतदाता पर्ची प्राप्त करने में विफल रहता है, तो वे ऑनलाइन जांच भी कर सकता है।
 

वोट देने के योग्य प्रमाण –

      चुनाव आयोग द्वारा मतदान के समय Vote देने वाला व्यक्ति की पहचान को अनिवार्य कर दिया है। अपना वोट डालने के लिए, आपको ईसीआई द्वारा जारी अपना वोटर आईडी कार्ड या ईसीआई द्वारा जारी कोई अन्य प्रमाण पत्र दिखाना होगा।
 
       यदि किसी व्यक्ति के पास वोटर आईडी कार्ड नहीं है, तो वह चुनाव आयोग द्वारा किसी अन्य दस्तावेजों का उपयोग करके Vote डाल सकता है। किसी भी मतदाता का पंजीकरण करने के लिए, आपको निम्न दस्तावेजों की आवश्यकता होगी, जोकि आगे दी हुई है।
 
(i)– एक मतदाता पंजीकरण फॉर्म भरा हुआ होना चाहिए।
 
(ii)– व्यक्ति के निवास के प्रमाण पत्र होने चाहिए।
 
(iii)– व्यक्ति का पहचान पत्र होना चाहिए।
 
(iv)– दो पासपोर्ट साइज की फोटो जो आपकी हालही में खींची गई हो।
 

Mutual fund kya hai in hindi

Mutual fund

What is Mutual funds – म्यूचुअल फंड क्या है | हिन्दी में | 

       Mutual funds में आपको बता दें, कि जब हम किसी भी जगह इनवेस्ट करते हैं, तो उसमे सभी समझदार लोग मुख्यत इन चार पॉइंट्स को जरूर देखते हैं।

1– रिस्क,
2– रिटर्न्स,
3– वोलेटिलिटी,
4– लिक्विडिटी,

 
(i)– रिस्क – जब हम Mutual funds में रिस्क की बात करते हैं, तो इसमें रिस्क मॉडरेट होता है। क्युकी किसी भी जगह 0 रिस्क का होना तो असंभव सा हो जाता है। चाहे हम रियल स्टेट की बात करे या फिर गोल्ड की, किसी भी जगह रिस्क 0 पर्सेंट कभी नहीं हो सकता है।
 

(ii)– रिटर्न्स – Mutual funds में रिटर्न्स की बात करे तो इसमें कम समय अवधि के लिए निवेश करने पर फिक्स रिटर्न्स। या फिर अधिक रिटर्न्स कभी नहीं मिल सकता है। लेकिन अगर हम किसी Mutual funds में लॉन्ग टाइम के लिए इनवेस्ट करके रखे तो उसमे रिटर्न्स हम तकरीबन 13 से 15 पर्सेंट तक मान सकते हैं।

(iii)– वोलेटिलिटी –  Mutual funds में हमको बहुत ज्यादा वोलेटिलिटी देखने को मिलती है। इसलिए हम इससे छोटे समय के लिए ज्यादा रिटर्न्स की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। और हाई वोलेटिलिटी की वजह से हमको हाई रिस्क का सामना भी करना पड़ता है।

उद्धरण के तौर पर समझाया जाए तो यदि आपको किसी इमरजेंसी के समय में पैसों की जरूरत पड़ जाती है, और उस समय मार्केट वोलेटिलिटी की वजह से डाउन चल रहा हो तो उसमे हमको अपनी इन्वेस्टमेंट को घाटे में ही निकालना पड़ सकता है।

(iv)– लिक्विडिटी – Mutual funds में हमको हाई लिक्विडिटी देखने को भी मिलती है। सरल भाषा में कहें, तो हाई लिक्विडिटी से आप यह समझ सकते हैं, की हम अपने इन्वेस्टमेंट को कितनी जल्दी निकाल सकते हैं। याने की हम अपने इन्वेस्टमेंट को कितनी जल्दी केस के अंदर बदल सकते हैं।

Mutual fund के फीचर्स और उसके प्रकार –

Mutual funds असल मे है क्या, म्यूचुअल फंड में बहुत से लोग अपने पैसों को फंड हाउस को देते हैं, और फंड हाउस को फंड मैनेजर के द्वारा अलग अलग सिक्युरिटी, बॉन्ड्स, इक्विटी या फिर अन्य जगह इनवेस्ट करके लोगों को एक अच्छा रिटर्न्स कमा के देती है। और बदले में वह लोगों से एक छोटा सा कमीशन ले लेते हैं। म्यूचुअल फंड हाउस को मैनेज एसेट मैनेजमेंट कंपनी के द्वारा किया जाता है।

उद्धरण देखे तो SBI , hdfc, axis, आदित्य बिरला और भी बहुत सी एसेट मैनेजमेंट कंपनी हमारे भारत में हैं। एक एसेट मैनेजमेंट कंपनी 4 से 5 सौ तक भी मल्टीपल फंड चला सकते हैं,

अब आपको बताता हूं कि मेनली ये मल्टीपल फंड कितने प्रकार के होते हैं। मुख्यत इन मल्टीपल फंड को तीन भागों में बांटा गया है।

1– इक्विटी म्यूचुअल फंड,
2– डेट म्यूचुअल फंड,
3– हाइब्रिड म्यूचुअल फंड,

(i) – इक्विटी म्यूचुअल फंड – Equity Mutual funds में पैसों को इक्विटी या शेयर में इनवेस्ट किया जाता है। Equity Mutual funds में हाई रिस्क होता है। इन म्यूचुअल फंड में वे लोग इनवेस्ट करते हैं जिनको हाई रिस्क लेना होता है। क्योंकि इसमें हाई रिस्क है तो नॉर्मल से बात है की इसमें हाई रिटर्न्स की पॉसिबिल्टी भी उतनी ही अधिक होगी। अर्थात हाई रिस्क के साथ साथ इसमें हाई रिटर्न्स भी हमको मिलते हैं।

(ii)– डेट म्यूचुअल फंड – Debt Mutual funds में पैसों को बॉन्ड्स ( Bond ),  डिवेंचर, गवर्मेंट सिक्योरिटी आदि में इनवेस्ट किया जाता है। जिन लोगों को कम रिस्क लेना होता है, उनके लिए यह म्यूचुअल फंड बहुत ही अच्छा ऑप्शन है। क्योंकि इसमें रिस्क कम है तो इसमें रिटर्न्स भी कम ही मिलते हैं।

(iii)– हाइब्रिड म्यूचुअल फंड –  हाइब्रिड म्यूचुअल फंड में पैसों को सब जगह थोड़ा थोड़ा इनवेस्ट कर दिया जाता है, इसमें रिटर्न्स न तो कुछ ज्यादा आते हैं, और नाही ज्यादा कम। इसमें रिटर्न्स हमको मॉडरेट से हाई ही देखने को मिलते हैं, साथ ही इसमें मॉडरेट ही रिस्क होता है।

इसके साथ साथ Mutual funds को हम एक और तरीके से क्लासीफाइड कर सकते हैं।

1– लार्ज कैप,
2– मिड कैप,
3– स्माल कैप,

(i)–लार्ज कैप – लार्ज कैप के अंदर वे सभी बड़ी कंपनियां आती है, जो पहले से डेवलप हो गई होती है, क्युकी ये कंपनी पहले ही डेवलप हो गई होती हैं, तो इससे रिटर्न्स भी कुछ ज्यादा नही मिलते हैं। साथ साथ इसमें कम रिस्क के साथ कम रिटर्न्स मिलते हैं।

(ii)– मिड कैप – मिड कैप के अंदर वे कंपनियां आती है, जो न बहुत बड़ी होती है, और नाही बहुत छोटी। इन कंपनियों में रिस्क और रिटर्न्स मॉडरेट ही रहते हैं।

(iii)– स्माल कैप – स्माल कैप के अंदर वे सभी छोटी कंपनियां आती हैं, जो अभी स्ट्रगल कर रही होती हैं। इन कंपनियों में रिस्क भी बहुत ज्यादा होता है, साथ ही रिटर्न्स भी काफी अधिक होते हैं।

इसके अलावा इनको एक और तरीके से क्लासीफाइड कर सकते है। जिसके अंतर्गत इनमे सेक्टर फंड आदि को सम्मिलित किए गए हैं। जैसे –

1– टेक्नालॉजी सेक्टर,

2– बैंकिंग सेक्टर,

3– ऑटोमोबाइल सेक्टर,

4– एग्रीकल्चर सेक्टर,

5– एफएमसीजी सेक्टर,

Mutual funds में कैसे निवेश करें 

1– SIP करके।
2– लंपसम करके।

(i)– SIP –  SIP का पूरा नाम सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) होता है। इसमें हमको महीने महीने एक फिक्स अमाउंट को इनवेस्ट करना पड़ता है। इसमें हम किसी भी समय पर इनवेस्ट कर सकते हैं।

लेकिन ध्यान रहे की इसमें हमको लॉन्ग टर्म के लिए ही इनेवस्ट करके रखना चाहिए। तभी हमको एक अच्छा रिटर्न्स देखने को मिलेगा। क्योंकि म्यूचुअल फंड ( Mutual fund ) में हमको वोलेटिलिटी देखने को मिलती है, इसलिए इसको लॉन्ग टर्म के लिए ही इनवेस्ट करना चाहिए।

(ii)– लंपसम – लंपसम वह प्लान होता है, जिसमे की कभी भी एक कोई सा भी अमाउंट हम इनवेस्ट कर देते हैं, इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है, कि इसमें हमको तब इनवेस्ट करना चाहिए, जब शेयर बाजार ( Stock market ) में डर का माहौल बना रहता है। या फिर मार्केट क्रैश हुआ रहता है।

यदि हम इसमें तब इनवेस्ट करते हैं, जब मार्केट में चारों तरफ मार्केट के ही बारे में बातें चल रही हैं, तो फिर हमें ज्यादा नुकसान देखने को मिल सकता है। क्योंकि यदि मार्केट में हमने हाई टाइम में इनवेस्ट किया हुआ है, तो मार्केट के गिरने में हमको बहुत नुकसान देखने को मिलेगा और साथ ही हमको उस रिकवरी को कवर करने में बहुत टाइम भी लग जायेगा।

* SIP और LUMPSUM को विस्तार से जाने। 

 हमें Mutual funds में इनवेस्ट करते समय क्या देख लेना चाहिए –

1- रिटर्न्स – यदि हम किसी Mutual funds में निवेश करते हैं, तो हमें उसमें सबसे पहले उसके लगभग 5 साल के रिटर्न्स देख लेने चाहिए। क्योंकि म्यूचुअल फंड लॉन्ग टाइम फ्रेम में ही एक अच्छा रिटर्न्स देती है। अगर इतने टाइम फ्रेम में भी म्यूचुअल फंड ने अधिक रिटर्न्स नही दिए हों तो हमें उसमें निवेश नहीं करना चाहिए।

2– एक्सपेंस रेश्यो – किसी भी Mutual funds में निवेश करते समय हम उसका एक्सपेंस रेश्यो भी चेक कर लेना चाहिए। यह रेश्यो जो होता है, वह फंड को मैनेज करने के लिए जितना एक्सपेंस लगता है, उसका यह रेश्यो होता है। यदि म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेश्यो 1 से 2 पर्सेंट तक होता है, तो यह रेश्यो सही है, क्युकी हर कोई म्यूचुअल फंड सामान्यता इतना तो एक्सपेंस रेश्यो रखता ही है। यदि इससे ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो है तो वह म्यूचुअल फंड हमारे लिए उचित नहीं रहेगा।

3– एंट्री लोड और एग्जिट लोड – एंट्री लोड उसे कहते हैं, जिसे हम इन्वेस्टमेंट के दौरान कुछ रुपए फंड को दे देते हैं। और एग्जिट लोड उसे कहा जाता है, जब हम इन्वेस्टमेंट को निकालते हैं, तो उस समय जो पैसा कटता है, उसे हम एग्जिट लोड कहते हैं।

गोल या फिर महीने का टारगेट–

यदि हम म्यूचुअल फंड में एक गोल को लेके चलते हैं, कि हमको इतने समय में इतना पैसा चाहिए। या फिर हम अपने फ्यूचर प्लानिंग के लिए, किसी की शादी या फिर एजुकेशन के लिए गोल बना कर चलते हैं, तो हमें Sip कैलकुलेटर से इसकी भी जानकारी मिल जाती है, कि यदि हम इतने रुपए लगाकर इतने रिटर्न्स कमाते हैं तो हमारा गोल कब तक पूरा होगा। आदि जानकारी हमको यहां से मिल जाती है। जिससे हम महीने महीने उतना अमाउंट इनवेस्ट कर सकते हैं।

फायदा और नुकसान – म्यूचुअल फंड का फायदा यह है, कि हमको मॉडरेट रिस्क के साथ साथ हाई रिटर्न्स मिल जाते हैं। साथ ही म्यूचुअल फंड में हाई लिक्विडिटी होने के वजह से हम इन्वेस्टमेंट को केस में आसानी से कन्वर्ट  भी कर लेते हैं।

म्यूचुअल फंड के नुकसान को वैसे हर कोई नही बताता, लेकिन इसका यह नुकसान है, कि इसमें हाई वोलेटिलिटी होती है, अगर हमें कभी पैसों की जरूरत हुई और मार्केट गिरा हुआ है, तो हमको इमरजेंसी में लॉस में ही अपने पैसों को निकालना पड़ सकता है।