
IPO KYA Hai? आईपीओ क्या है ?
IPO OR FPO का पूरा नाम –
IPO का पूरा नाम Initial public offering होता है। सरल तरीके अथवा शब्दों में कहा जाए तो प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव इसको हिंदी में कहा जाता है।
और FPO का पूरा नाम Follow on public offering होता है। हिंदी में कहा जाए तो इसे सार्वजनिक पेशकश का पालन करना कहा जा सकता है।
कोई भी कंपनी शेयर बाजार ( Share market ) में तब लिस्ट होती हैं, जब उस कंपनी का IPO लिस्ट होता है, या फिर कंपनी अपना IPO निकालती है।
आईपीओ की जानकारी
(i)- जब कभी भी कंपनी जो अभी हाल ही में प्राइवेट कंपनी के अंदर आती है। और उसे अपनी कंपनी को बढ़ाने या उसे और ज्यादा प्रॉफिटेबल बनाने के लिए पैसों की जरूरत होती है, तो वह जिस विधि से जनता से पैसे इक्कठा करेगी या फिर जब भी वह कंपनी पब्लिक कंपनी बन जाएगी तो उसे आईपीओ कहा जा सकता है।
क्योंकि कंपनी को प्राइवेट से पब्लिक लाने के लिए जो काम करना होता है, या फिर जिसमे लिस्टेड होना पड़ता है, उसे आईपीओ द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।
IPO निकलने के बाद ही कोई भी कंपनी जनता को शेयर प्रोवाइड करवा सकती है। और यह शेयर जनता को इस समय पहली बार ही दिया जाता है। इस तरीके से कोई भी private company एक public company बन जाती है ।
(ii) – कोई भी कंपनी जब तक अपना आईपीओ नहीं निकाल लेती तब तक वह स्टॉक मार्केट में लिस्टेड नही हुई रहती है। कंपनी के IPO निकलने के बाद ही कंपनी स्टॉक मार्केट में लिस्टेड हो पाती है।
IPO लॉन्च करने का मकसद किसी भी कंपनी को अपने बिजनेस को और ज्यादा एक्सटेंड करने, कंपनी को कर्जमुक्त करने, या कंपनी में हुए नुकसान की भरपाई आदि को करने के लिए किया जाता है।
IPO थोड़ा रिस्की भी होता है, क्योंकि वह स्टॉक मार्केट में अभी अभी लिस्टेड हुआ रहता है। और हम लोगों को उस कंपनी के बारे में कुछ ज्यादा पता नही होता है, कि आखिर उस कंपनी के बीते सालों में कितना प्रॉफिट रहा या फिर उसका कितना नुकसान।
उसकी यह सारी फंडामेंटल डिटेल्स तब ही पता लगती है जब कंपनी आईपीओ ( IPO ) निकालल लेती है। तब तक हमे सब कुछ अंदाजे पर चलना होता है।
IPO के निकलने के समय में मार्केट में कई बार बहुत सी पॉजिटिविटी न्यूज क्रीट की जाती है, और उन्हें इसके बदले paying किया जाता है, जिस वजह से हम शेयर के ज्यादा पैसे pay कर सकें। और हमें इन जानकारियों का पता नहीं होने पर घाटा भी हो सकता है।
परंतु अगर किसी चीज में रिस्क ज्यादा है, तो उसमें प्रॉफिटेबिलिटी के भी ज्यादा चांस हो सकते है।
* प्रेफरेंस शेयर ( Preference share capital )
* स्टॉक मार्केट चार्ट ( Stock market chart)
* प्री ओपन मार्केट ( Pre open market )
(2)- Fpo की जानकारी-
FPO को सरल शब्दों में समझें तो जब कंपनी आईपीओ निकालने के बाद प्राइवेट से पब्लिक कंपनी बन जाती है, और उसे दुबारा अपनी कंपनी को एक्सपेंड करने के लिए पैसों की जरूरत होती है, तो वह जब दूसरी बार या फिर तीसरी या चौथी बार जनता से पैसे इक्ट्ठा करने की सोचती है तो कंपनी तब आईपीओ न निकाल करके FPO निकालती है।
और उस समय कंपनी दुबारा से जनता को अपनी कंपनी के शेयर उपलब्ध करवाती है। तो इस पूरी प्रॉसेस को Follow on public offering कहते हैं।
(ii) – इसके अंतर्गत कंपनी पहले से ही स्टॉक मार्केट में लिस्टेड रहती है क्योंकि उसने पहले से ही Ipo जारी किया हुआ था और उसके बाद वह कंपनी वहां listed हो गई थी। इसका मतलब यह है कि Fpo में कंपनी पहले से ही stock exchange में listed रहती है। और वह फंड को लेने के लिए FPO निकालती है।
(iii)- एफ.पी.ओ. बहुत से मकसद हो सकते हैं इनमें से एक मकसद तो यह मान सकते हैं कि कंपनी को अपने बिज़नेस को एक्सटेंड करने के लिए पैसे इक्कठा करने हों या फिर कंपनी को अपने उपर चढ़े कर्ज को मुक्त करना हो।
और दूसरा मकसद यह हो सकता है, कि बहुत से बार कंपनी के प्रमोटर्स को अपने शेयर को लिमिटेड या एक फिक्स रेट में बेचना होता है, तो प्रमोटर्स अपने शेयर को बेचने के लिए FPO का तरीका अपनाते हैं।
Fpo मे risk आईपीओ से कम होता है, क्योंकि इसमें IPO के जारी होने बाद हमे कंपनी के फंडामेंटल एक्टिविटी के बारे में पता लग जाता है, कि इसकी स्टॉक मार्केट में फंडामेंटल कैसे हैं। और हम अपने तरीके से उसकी पास्ट की एक्टिविटी को देखकर उस कंपनी में इन्वेस्ट कर सकते हैं।
(iv) – जैसे की आपको पहले भी बता लिया है, कि Risk अधिक होने से profit भी अधिक और रिस्क कम होने से profit भी कम होने के चांस होते है। तो FPO में रिस्क कम होने की वजह से इसमें प्रॉफिट के चांसेस भी कम हो सकते हैं।
Example of fpo – उदाहरण के तौर पर देखें तो कई बार गवर्नमेंट के अंडर में public sector की कंपनी होती है। जिसमें कि government का stack लगा होता है। तो government, fpo के माध्यम से अपने जो शेयर होते हैं उन्हें बेच देती हैं।
और वह पैसा गवर्नमेंट के पास आ जाता है। Government उस पैसे को या तो अपने पास रख लेती है या फिर उस पैसे को उसी कंपनी को दे देती है।