जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है?

आपने शेयर मार्केट के उतार चढ़ाव को तो देखा ही होगा। जिसमें गिरावट और बढ़त जैसे खबरें आम होती हैं। तो जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, यह सवाल आपके मन में भी जरूर आया होगा। आखिर कहां जाता है, आपका पैसा गंवाने के बाद।

तो चलिए आज मैं आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताऊंगा कि आखिर जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है। क्या किसी के नुकसान होने पर किसी दूसरे निवेशक को फायदा होता है? आइए जानते हैं।

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है–

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, इसको समझने से पहले आपका यह समझना जरूरी है, कि जब भी कंपनी शेयर बाजार में लिस्टेड होती है, तो कंपनियों के शेयर में इंवेस्टर निवेश करते हैं। और जो कंपनी जितना अच्छा परफॉर्मेंस करती है, उस कंपनी के शेयर उतने ही बढ़ते जाते हैं। और कंपनी की डिमांड भी बड़ जाती है।

जब शेयर मार्केट गिरता है,

इसके साथ साथ जिन कंपनियों का खराब परफॉर्मेंस होता है, उन कंपनियों के शेयर प्राइस उतने ही कम होते चले जाते हैं। इसका मतलब यह है, कि कंपनी के अच्छा परफॉर्मेंस करने पर कंपनी में इंवेस्टर इन्वेस्ट करते हैं। और खराब प्रदर्शन होने पर इंवेस्टर अपनी इन्वेस्टमेंट को निकाल लेते हैं।

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, तो इसका जवाब है, की आपका पैसा इंवेस्टर के पास ही जाता है। क्योंकि शेयर मार्केट एक सप्लाई और डिमांड के फॉर्मूले पर काम करता है। हर किसी इंवेस्टर को अपना फैसला सही ही लगता है। शेयर बेचने वाला सोचता है, की वह बेच कर एक अच्छा डिसीजन ले रहा है, वहीं खरीदने वाला सोचता है, कि वह इस समय शेयर को खरीद कर अच्छा फैसला ले रहा है।

माना किसी कंपनी के शेयर का प्राइस अभी 80 रुपए चल रहा है, और वह शेयर किसी A इंवेस्टर के आस पहले से मौजूद है, और उसको लगता है, की वह शेयर का प्राइस अब 80 से उप्पर न बढ़कर अब नीचे जा सकता है। वह उसको बेचना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ B इंवेस्टर सोचता है, की इस कंपनी के शेयर प्राइस अभी और बढ़ सकता है। तो वह उस शेयर को खरीदना चाहता है।

दोनों ही इंवेस्टर A और B को लगता है, की वह दोनों अपना फैसला सही ले रहे हैं। लेकिन आपको बता दें, की जिस तरफ शेयर में बायर की संख्या अधिक होगी तो शेयर का प्राइस उप्पर और यदि सेलर की संख्या ज्यादा होगी तो शेयर का प्राइस नीचे की ओर चलने लगेगा।

और मार्केट में जिधर भी बायर या फिर सेलर का प्रेशर अधिक होगा, मार्केट उधर ही अपनी movement करेगा। किसी का पैसा डूब जाने पर वह पैसा किसी दूसरे इंवेस्टर के पास ही जाता है। मतलब की यदि यहां किसी इंवेस्टर का नुकसान हुआ है, तो उतना ही फायदा किसी दूसरे इंवेस्टर को हुआ होगा।

शेयर मार्केट कैसे चलता है

जब कोई भी व्यक्ति अपना बिजनेस स्टार्ट करता है, और उसको फंडिंग की जरूरत होती है। फंडिंग के ना मिलने पर वह व्यक्ति कंपनी बनाता है, और उस कंपनी को SEBI की मदद से स्टॉक मार्केट में उतारने का प्रयास करता है। सेबी के रूल और रेगुलेशन को पूरा करता है। और सेबी की मंजूरी मिलने पर वह स्टॉक मार्केट में लिस्टेड करते हैं।

शेयर बाजार में लिस्ट करने के लिए नई कंपनी का होना जरूरी नहीं है, पुरानी कंपनी भी शेयर मार्केट में लिस्टेड होती हैं। और जो कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड हो जाती है, उसमे इंवेस्टर इन्वेस्ट कर सकते हैं। और उस कंपनी का हिस्सेदार बन सकते हैं।

आपको बता दें, कि स्टॉक मार्केट में आने के लिए आपको BSE, या फिर NSE में रसिस्टर करवाना होता है। और जिस किसी भी कंपनी में निवेशक निवेश करता है, वह उस कंपनी का हिस्सेदार बन जाता है। यह हिस्सेदारी खरीदे गए शेयर की संख्या पर निर्भर करता है। शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर करता है। मार्केट में कंपनी और शेयर धारक के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर ही करते हैं।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए

शेयर मार्केट में कब इन्वेस्ट करना चाहिए, या फिर शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए, मार्केट में सबसे अच्छा समय कौन सा रहेगा जब हमको इन्वेस्ट करना चाहिए, ताकि हम एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकें, ये सवाल हर किसी निवेशक के मन में घूमते रहते हैं।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा कि शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए। ताकि आपको एक अच्छा रिटर्न्स मिल सके।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए ?

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए

स्टॉक मार्केट (Stock market) में सबसे अच्छा समय इन्वेस्ट करने का वह होता है, जब पूरा मार्केट गिरा हुआ होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, क्योंकि मार्केट के गिरने के दौरान पूरा बाजार डरा होता है, और इंवेस्टर अपने शेयर को बेचने लगते हैं। जिस वजह से हमको शेयर बड़े सस्ते दाम में मिल जाते हैं। अतः आपको शेयर बाजार में पैसा गिरावट के समय ही लगाना चाहिए। यह बात तो हो गई, शॉर्ट टर्म के लिए। लेकिन क्या इतना ही सब काफी है, इन्वेस्टमेट के लिए, तो उत्तर है, नहीं। तो आइए जानते हैं, उन महत्वपूर्ण बातों को जिन्हें शेयर खरीदते समय ध्यान में रखना चाहिए।

  • कभी भी लोगों की बातों में विश्वास कर के पैनी स्टॉक में पैसा नहीं लगना चाहिए, हमको अपनी खुद की रिसर्च भी कर लेनी चाहिए। और तब पैसा इन्वेस्ट करना चाहिए।
  • दूसरों की टिप्स लेने से अच्छा आप खुद की रिसर्च करें, ताकि आप अच्छे से सीख भी सकें, और आपको अच्छा रिटर्न्स भी मिल सकें। वरना आप सिर्फ लास्ट में अपना पैसा ही गंवाएंगे।
  • स्टॉक मार्केट कोई जुए की तरह नहीं है, कि आप रात ही रात इससे अमीर बन जाओगे, इसमें यदि आपको इन्वेस्ट करना है, तो आपको स्टॉक मार्केट का बेसिक नॉलेज होनी चाहिए। यदि आप बिना सीखें ही इन्वेस्ट करेंगे, और आपको नुकसान होगा तो आप इसे जुआ कह कर छोड़ देंगे।
  • आप केवल उन ही शेयर में इन्वेस्ट करें जिनके फंडामेंटल अच्छे होंगे, ताकि आपको नुकसान कम से कम नुकसान हों सके। और फंडामेंटल अच्छी कंपनियां आपको तब ही मिलेगी, जब आप किसी शेयर में अच्छे से रिसर्च करेंगे।
  • हर समझदार निवेशक अपनी कैपिटल को तब ही निवेश करता है, जब वह अच्छे से किसी शेयर में रिसर्च करता है, और उसे लगता है, कि कंपनी में सही में ही काफी दम है। और वह कंपनी उसे एक अच्छा रिटर्न्स कमा कर दे सकती है।

शेयर मार्केट में पैसे लगाने का एक बेहतर समय।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए की यदि हम बात करें तो आपको बता दूं, कि मार्केट ओपन होते ही कभी भी सीधे ट्रेड में नहीं घुसना चाहिए। बल्कि आपको थोड़ी देर इंतजार करने के बाद उसका वॉल्यूम और ट्रेड देखने के बाद ही इन्वेस्ट करना चाहिए।

आपको मार्केट में कुछ घंटे इंतजार करने के बाद दिखेगा कि मार्केट में अब एक अच्छा खासा वॉल्यूम दिखने को मिल जाएगा। और आप फिर इस चीज का डिसीजन ले सकते हैं, कि आपको ट्रेड करना चाहिए, या फिर नहीं। वॉल्यूम का मतलब होता है, कि इंवेस्टर या फिर ट्रेडर अपने कितने शेयर को खरीद और बेच रहे हैं।

यदि इंवेस्टर अपने शेयर को बहुत ज्यादा खरीद और बेच रहे हैं, और आपको इंट्राडे ट्रेड करना है, तो आप इस स्तिथि में शॉर्ट सेल कर के उससे एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दे, कि इंट्राडे में काफी अधिक रिस्क होता है। जिससे आपके पैसे डूबने के चांसेस भी अधिक हो जाता है। इसी लिए यह सलाह दी जाती है, कि आपको हमेशा स्टॉप लॉस को लगा कर ही ट्रेड करना चाहिए।

मेरी सलाह तो आपको यही रहेगी की यदि आपको टेक्निकल एनालिसिस की अच्छी खासी नॉलेज है, तो ही आप यह करें, वरना आप शुरुआत में इन चीजों से दूर ही रहें, तो ही ज्यादा सही रहेगा।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए ― आपको बाजार में पैसा लगाने से पहले इस चीज की जानकारी होनी चाहिए, कि आखिर किसी भी शेयर का प्राइस उप्पर या फिर नीचे क्यों जाता है।
यह सवाल जानने की जरूरत आपको इस लिए है, क्युकी जब कभी भी वह शेयर डाउन जाने लगे जिसमे की आपने पैसे लगाएं हैं, तो आप पैनिक में आ कर के उस शेयर को बेचने लगेंगे। और यह अक्सर वे लोग होते हैं, जो अधिकांशत एक्सपर्ट की बातों में यकीन या फिर टीवी चैनल में देख कर के इन्वेस्ट करते हैं।
लेकिन आपको बता दें, की यह समय ही सबसे अच्छा समय होता है, जिस समय आप अपना पैसा मार्केट में लगा सकते हैं। यदि आपने एक फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग कंपनी को चुना है, तो आपको किसी कंपनी के शेयर के घटने या फिर बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता चाहिए, क्योंकि यह कुछ ही समय तक दिखने वाली गिरावट होती है, लॉन्ग टर्म में यह एक अच्छा रिटर्न कमा कर ही देते हैं।

और सबसे मुख्य बात की किसी भी शेयर में हमें पैसे तब लगाना चाहिए, जब वह शेयर अपनी इंट्रांसिक वैल्यू (Intrinsic value) से कम प्राइस पर ट्रेड कर रहा हो। दुनिया के जाने माने निवेशक वारेन बफेट भी इसी तरीके से वैल्यू इन्वेस्टिंग कर के अपने लिए मजबूत शेयर को चुनते हैं।

Tax saving tips

आज कल की महंगाई से सभी लोगों की जेब ढ़ीली होती दिख रही है। वहीं जिन लोगों की सालाना कमाई 5 लाख से थोड़ा ही ज्यादा है, तो उनको इस बात की टेंशन हुई रहती है, कि पहले ही इतने खर्चे हैं, और ऊपर से उनको टैक्स भी चुकाना पड़ता है। उन लोगों को Tax saving tips के बारे में कुछ भी नॉलेज नही रहता जिस वजह से वह अपने आप को कोश्ते रहते हैं।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको उन Tax saving tips के बारे में बताऊंगा जिनकी मदद से की आप कम टैक्स देकर के अपनी मनी की सेविंग कर सकते हैं।

टैक्स सेविंग टिप्स (Tax Saving Tips)

टैक्स सेविंग टिप्स (Tax saving tips) को जानने से पहले आपको टैक्स रूल के बारे में सामान्य जानकारी दे देता हूं।

Tax Saving Tips

टैक्स नियम के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की सालाना कमाई ढाई लाख (2.5 लाख) तक की है, तो उस व्यक्ति को कोई भी टैक्स पे नहीं करना होता है। यदि 2.5 लाख रुपए से और 5 लाख तक के बीच में है, तो उस व्यक्ति को 5% तक का टैक्स देना पड़ता है। और यदि उस व्यक्ति की सालाना इनकम 5 से 10 लाख रुपए तक है, तो उसको 20% टैक्स और यदि 10 लाख से ऊपर की इनकम है, तो उसे 30% टैक्स देना होता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि टैक्स के स्लैब प्रत्येक साल वित्तीय वर्ष में चेंज किए जाते हैं। कभी कभी सरकार इसमें कोई बदलाव भी नही करती है।

तो चलिए जानते हैं, Tax saving tips को जिनकी मदद से आप अपने कैपिटल inco को सेफ कर सकते हो।

1.स्टैंडर्ड डिड्क्शन (Standard Deduction)

Tax Saving Tips में आपका सबसे पहले स्टैंडर्ड डिडक्सन आ जाएगा। जिसके तहत की आपको अपनी इनकम में 50,000 रुपए तक की छूट मिलती है।

2. सेक्शन 80C धारा

सेक्शन 80C धारा के तहत आप अपने लगभग डेढ़ लाख रुपए तक बचा सकते हैं। इसके लिए आपका निवेश PPF, ELSS, NSC, EPF आदि में निवेश करना होता है। इसके अलावा यदि आपके बच्चे हैं, तो आप उनकी शिक्षा के लिए 1.5 लाख रुपए तक की इनकम पर इनकम टैक्स (Income tax) छूट का लाभ ले सकते हैं।

3. नेशनल पेंशन स्कीम (NPS)

यदि आप नेशनल पेंशन स्कीम में सालाना 50,000 रुपए तक इन्वेस्ट करते हैं, तो सेक्शन 80 CCD के तहत आप अपनी इनकम में 50 हजार रुपए तक बचा सकते हैं। जोकि आपको इनकम टैक्स देने से बचा सकते हैं।

4. होम लोन (Home Loan)

यदि आपने बैंक से अपने लिए होम लोन लिया हुआ है, तो आप अपने अतिरिक्त 2 लाख रुपए तक की सेविंग कर सकते हो। इनकम टैक्स के सेक्शन 24 B के तहत 2 लाख रुपए तक के ब्याज पर आप टैक्स छूट का लाभ उठा सकते हो। जिसे की आप अपनी सालाना आय से घटा सकते हो।

5. सेक्शन 80D की धारा

सेक्शन 80D की धारा के तहत आप मेडिकल पॉलिसी को ले सकते हैं। इस हेल्थ इंश्योरेंस में आपका, आपकी पत्नी और बच्चों का नाम भी होना चाहिए। इसमें आप प्राइवेंटिव हेल्थकेयर चेकअप की लागत के साथ साथ हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम के लिए 25 हजार रुपए तक का क्लेम कर सकते हैं।

इसके अलावा यदि आपके माता–पिता सीनियर सिटीजन के हैं, तो फिर आप उनके नाम पर भी हेल्थ इंश्योरेंस को खरीदकर 50 हजार रुपए तक का अतिरिक्त क्लेम ले सकते हैं।

6. सेक्शन 80G की धारा

इनकम टैक्स के इस सेक्शन के अंदर आप 25 हजार तक का टैक्स डेडक्शन दान या फिर चंदा देकर के माफ कर सकते हैं। लेकिन यह तब ही मान्य होगा जब आप दान या फिर चंदा की मुहर लगी हुई रसीद को जमा करेंगे। इनकम टैक्स के सेक्शन 80G के तहत आपको 25 हजार तक के अमाउंट में छूट मिल सकती है। यह भी एक tax saving Tips है, जोकि बहुत से लोगो को पता नहीं होती है।

7. सेक्शन 87A की धारा

इनकम टैक्स के अनुसार यदि आप 5 लाख रुपए की कमाई सालाना करते हैं, तो आप पर टैक्स 12,500 रुपए याने की ढाई लाख का 5% बनता है। ऐसे स्तिथि में सेक्शन 87A के तहत साढ़े 12 हजार रुपए तक का डिबेट मिल जाता है। और आपको कोई भी टैक्स नहीं देना होता है।

उम्मीद करता हूं कि आपको आज का टॉपिक Tax Saving Tips के बारे में अच्छे से समझ आ गया होगा।

Fundamental analysis

बहुत से लोगों को Fundamental analysis के नाम से ही डर लगने लगता है, लेकिन यदि शेयर मार्केट (Stock market) में किसी कंपनी में इन्वेस्ट करना है, तो Fundamental analysis सबसे जरूरी होती है। जिसका मतलब होता है, कि किसी भी कंपनी की पूरी डिटेल्स को निकालना। स्टॉक मार्केट में कंपनी का दो तरीके से एनालिसिस किया जाता है। पहला Technical analysis और दूसरा Fundamental analysis,

तो चलिए दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा की Fundamental analysis क्या होता है।

फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental analysis)

फंडामेंटल एनालिसिस वह प्रोसेस होती है, जिसमें की निवेशकों को किसी स्टॉक्स के चयन के लिए उसकी पुरानी हिस्ट्री जाननी होती है, जिससे की निवेशक उसके पुराने सारे रिकॉर्ड्स को अच्छे से जान कर उसमें इन्वेस्ट कर सकें।

Fundamental analysis

किसी भी कंपनी के पिछले रिकॉर्ड्स निकालने से मतलब उस कंपनी के प्रॉफिट–लॉस, रेवेन्यू, कंपनी का मैनेजमेंट, कंपनी क्या प्रोडक्ट बनाती है, उस प्रोडक्ट की डिमांड कितनी है, आदि चीजों से है। कोई भी कंपनी हो यदि उसमें स्मार्ट इंवेस्टर इन्वेस्ट करे तो वह कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental analysis) जरूर करेगा।

फंडामेटल एनालिसिस को देखने से हमें कंपनी की ग्रोथ का यह पता भी लग जाता है, कि कंपनी प्रॉफिट कर रही है, या फिर लॉस। क्योंकि इसमें कंपनी का बहुत ही बारीकी से विश्लेषण किया जाता है। Fundamental analysis में यह देखा जाता है, कि वह कंपनी आर्थिक रूप से कितनी मजबूत है, क्या यह कंपनी हमें लॉन्ग टर्म में एक अच्छा रिटर्न्स दे सकती है।

अधिकतर लॉन्ग टर्म इंवेस्टर (Long term investing) जो होते हैं, वह कंपनी में इन्वेस्ट उस कंपनी के फंडामेंटल को देख कर ही किया करते हैं। Fundamental analysis भी दो प्रकार के होते हैं।

  • Qualitative Analysis
  • Quantitative Analysis
Qualitative Analysis

Quanlitative Analysis में किसी भी कंपनी के एनालिसिस को हम नंबर के फॉर्म में नहीं देख सकते हैं। इसमें हम नंबर को देखने की जगह कंपनी की ब्रांड वैल्यू को देखते हैं। और कंपनी के जो भी कंपीटीटर होते हैं, उनसे आपस में तुलना करते हैं। इस तरीके से हमको किसी भी कंपनी की जानकारी मिलती है। यह प्रत्येक इंसान के लिए अलग अलग हो सकती है। किसी भी कोई प्रोडक्ट अच्छा लगता है, तो किसी को कोई और प्रोडक्ट अच्छे लगते हैं।

Quantitative analysis

Quantitative analysis में हम किसी भी कंपनी के बारे में नंबर में जान सकते हैं। इसमें कंपनी की बैलेंस शीट को देखा जाता है, जिसमें की कंपनी का PE Ratio, Earning, EPS Ratio, Dividend, Cash Flow आदि चीजों के आधार पर इन्वेस्ट किया जाता है। यदि ये सब चीजें कंपनी की खराब रहती है, तो कंपनी को कमजोर समझा जा सकता है।

कंपनी का फंडामेटल एनालिसिस कैसे करें

किसी भी किसी कंपनी का जब हमें Fundamental analysis करना होता है, तो हम सबसे पहले उस कंपनी का बैलेंस शीट देखेंगे। इससे हमें कंपनी की पूरी जानकारी मिल जाती है। यदि हमें कंपनी का फंडामेंटल चेक करना है, तो हम गूगल में जा कर के NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) की वेबसाइट में VISIT कर सकते हैं। जोकि एक सेबी रजिस्टर्ड वेबसाइट है। इसमें हमें किसी एक्सपर्ट की भी जरूरत नहीं पड़ती है। और कंपनी के बारे में अच्छे से जानकारी भी मिल जाती है। और फिर हम एक अच्छी कंपनी में इन्वेस्ट भी कर सकते हैं।

फंडामेंटल एनालिसिस कैसे उपयोगी है–

जो भी इंवेस्टर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग करते हैं, उनके लिए फंडामेंटल एनालिसिस करना बहुत जरूरी होता है, एनालिसिस करने से उनको वे स्टॉक्स बड़ी आसानी से मिल जाते हैं, जिनसे की उन्हें आने वाले समय में एक अच्छा रिटर्न्स मिल सकता है। साथ ही अच्छे बिसनेस वाली कंपनियां भी आसानी से मिल जाती है। फंडामेंटल एनालिसिस का उपयोग हमेशा लंबे समय के लिए इन्वेस्ट के लिए किया जाता है। इसमें जल्दी पैसा कमाने का टारगेट नही रखा जाता है। बल्कि इन्वेस्ट किए गए शेयर में सही रेट ऑफ रिटर्न्स पर कंपाउंडिंग करने में ध्यान दिया जाता है।

फंडामेंटल एनालिसिस के लिए मुख्य बिंदु

  • Balance sheet
  • Profit or loss
  • Annual report
  • Cash Flow
  • EPS (Earning per share)
  • Book value
  • Sales
  • Growth
  • Opponent company
  • Debt
  • Company Managemet Ect

Rupee Vs Dollar

हाल ही में Rupee Vs Dollar के बीच टक्कर देखने को मिल रही है। एक डॉलर की कीमत 80 रुपये तक पहुंच गई है। संसद में बहुत से बड़े नेताओं का कहना है, कि 2014 के बाद डॉलर के मुकाबले रुपए में अभी तक 25 परसेंट की गिरावट देखी गई है। आखिर Rupee Vs Dollar में रुपए कमजोर क्यों होता चला जा रहा है।

तो चलिए आज मैं आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताऊंगा की आखिर किस वजह से रुपए कमजोर होता चला जा रहा है। और क्या बाकी करेंसी स्टेबल हैं, या फिर उनमें भी गिरावट देखने को मिल रही है।

Rupee Vs Dollar

19 जुलाई 2022 मंगलवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपए गिरकर के ऑल टाइम लो पर मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण विनिमय दर के स्तर डॉलर के मुकाबले 80 पर पहुंच गया। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट की माने तो रुपया घटकर 80.06 प्रति डॉलर पर आ गया।

Rupee Vs Dollar

रुपया विनिमय दर क्या है?

अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की विनिमय दर जो है, वह अनिवार्य रूप से एक अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए आवश्यक रुपये की संख्या है। और यह न केवल अमेरिकी सामान को खरीदने बल्कि अन्य सेवा जैसे की कच्चा तेल, कमोडिटी के अन्य इक्विपमेंट आदि की पूरी मेजबानी के लिए एक मुख्य मीट्रिक है, जिसके लिए भारतीय लोगों व कंपनियों को डॉलर की आवश्यकता होती है।

जब भी भारतीय रूपये कमजोर होता है, तो बाहर से सामानों को लेना (आयात करना) महंगा हो जाता है। और यदि कोई भारतीय समानों को बाहर देश बेचता है, (निर्यात करना) तो उसे तो फायदा होगा ही इसके साथ साथ अमेरिका देश को भी इसका फायदा होगा, क्युकी अमेरिका को इसमें कम डॉलर पे करने पड़ेंगे।

डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों कमजोर हो रहा। (Rupee Vs Dollar)

सरल शब्दों में कहा जाए तो Rupee Vs Dollar में रुपए इसलिए कमजोर होता चला जा रहा है, क्योंकि बाजार में रुपए की तुलना में डॉलर की मांग ज्यादा है। और यह मांग डॉलर की दो कारणों से बढ़ रही है।

पहला कारण यह है, कि भारत जितना निर्यात करता है, उससे ज्यादा भारत वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है। इसे ही CAD (CURRENT ACCOUNT DEFISIT) कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है, कि जितना विदेशी मुद्रा भारत में आ रही है, उससे अधिक विदेशी मुद्रा (विशेषकर डॉलर) भारत से बाहर चली जा रही है।

2022 की शुरुआत के बाद से ही जैसे ही यूक्रेन रसिया वॉर चल रहा है, कच्चे तेल और अन्य कमोडिटी के कीमतों में भारी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। जिसकी वजह से भारत का CAD बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। और जो सामान विदेशों से मंगवाया जा रहा है, उसमें भारतीय ज्यादा डॉलर देने की मांग कर रहे हैं।

दूसरा कारण यह है, कि भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश में गिरावट दर्ज की गई है। भारत देश के साथ साथ अधिकांश विकाशील देशों में CAD की प्रवृत्ति होती है। लेकिन विदेशी निवेशकों द्वारा अपना कैपिटल भारत से निकालने में ज्यादा जोर दिया जा रहा है। और यह निकासी 2022 शुरुआती से ही देखने को मिल रही है।

ऐसा इसलिए भी हुआ है, क्योंकि भारत की तुलना में अमेरिका में व्याज दर अधिक तेजी से बढ़ रहा है। अमरीका में उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के केंद्रीय बैंक द्वारा बड़ी तेजी से व्याज दर बढ़ा रहा है। जिस वजह से लोग भारतीय शेयर मार्केट (Stock market) में इन्वेस्ट न करके अपने ही देश में इन्वेस्ट कर रहे हैं। ताकि उनको भी एक अच्छा रिटर्न्स मिल सके।

इन दोनों कारणों से ही डॉलर के सामने रूपये की मांग बहुत कम होती जा रही है। यही वजह है, कि डॉलर के मुकाबले रुपए कमजोर होता चला जा रहा है।

केवल रुपए में ही या फिर अन्य मुद्रा में भी आई गिरावट

भारतीय मुद्रा के साथ साथ अन्य करेंसी में भी गिरावट देखने को मिली है। यूरो और जापानी येन समेत अन्य सभी मुद्रा के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है। परंतु यूरो जैसी बहुत से मुद्राओं के मुकाबले रुपए में तेजी देखने को भी मिली है।

GDP kya hai

आजकल कहीं भी जहां पर दो राजनीतिक पार्टी देश के विकास के बारे में बात कर रहे होते हैं, तो वहां पर जीडीपी (GDP) के बारे में सुनना एक आम सी बात हो गई है। उस समय पर बहुत से लोगों के मन में ये सवाल जरूर आता होगा कि आखिर यह जीडीपी (GDP) होता क्या है।

तो चलिए आज मैं आपको अपनी इस पोस्ट के माध्यम से यह बताने वाला हूं, कि आखिर जीडीपी (GDP) होती क्या है? यह कैसे काम करती है। और इसको किस फार्मूले से निकाला जाता है। और भी बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी।

GDP full form

GDP

GDP का फुल फॉर्म Gross domestic product होता है। जिसे कि हिंदी में सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। किसी भी देश के अर्थव्यवस्था के विकास दर को मापने के लिए जीडीपी का प्रयोग किया जाता है।

GDP क्या है–

जीडीपी (GDP) का प्रयोग किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मापने के लिए किया जाता है। जिस देश की जितनी अच्छी जीडीपी होती है, उस देश की अर्थव्यस्था को उतना ही अच्छा समझा जाता है। और जिसकी जीडीपी में जितनी अधिक गिरावट देखने को मिलती है।

किसी भी देश के भीतर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का बाजार मूल्य क्या है, यह सब जीडीपी को प्रभावित करता है। यदि इसका मूल्य अधिक होगा तो देश के अंदर उतनी अधिक विदेशी मुद्रा आएगी, जिससे उस देश की विकास दर उतनी ही तेजी से बड़ेगी। और यदि उस देश के अंदर उत्पादन अच्छा नहीं हो रहा या फिर ऐसे वस्तुओं का उत्पादन किया जा रहा है, जिसका की मूल्य बहुत कम होगा तो उस देश की जीडीपी पर भी इसका बुरा प्रभाव देखने को मिलेगा।

जीडीपी कम होने पर देश की विकास दर को उतना ही धीमा समझा जाता है। और इसका जिम्मेदार वहां की सरकार को ठहराया जाता है। इसका कारण यह है, क्योंकि प्रत्येक देश की सरकार के अपनी अपनी आर्थिक नीतियां होती है, जोकि देश की अर्थव्यवस्था को बनाए रखते हैं। एक गलत निर्णय के कारण वहां के लोगों को भी नुकसान झेलना पड़ सकता है।

जीडीपी को मापा जाता है–

जीडीपी एक आर्थिक व्यवस्था का पैमाना होता है, जोकि किसी देश की आर्थिक स्तिथि को बताता है। इसको लगभग हर 3 महीनों में मापा जाता है।

आपको बता दें, कृषि, उद्योग और सेवाएं यह तीनों GDP के प्रमुख घटक हैं। इन क्षेत्रों में उत्पादन में औसत वृद्धि या कमी के आधार पर GDP दर तय की जाती है। मतलब की यदि इन सेवाओं में इनका उत्पादन बड़ेगा या घटेगा, तो इसका प्रभाव आपको जीडीपी में देखने को मिलता है। और इसी आधार पर जीडीपी की दर तय होती है।

जीडीपी (GDP) शब्द का प्रयोग–

GDP शब्द का पहली बार प्रयोग एक अमेरिकी अर्थशास्त्री साइमन द्वारा सन 1935 से 44 के मध्य में किया गया था। साइमन द्वारा इस शब्द को अमेरिका में पेश किया गया था।

यह दौर वही था जिसमें की बहुत से बैंक सेक्टर, बैंक संस्थाएं आदि आर्थिक विकास का अनुमान लगाने का काम संभाल रही थी। और उनमें से किसी को इसके लिए एक विशेष शब्द नहीं मिल रहा था। और तब साइमन ने अमेरिकी कांग्रेस में GDP का नाम प्रस्तुत किया था। और तब इसे IMF द्वारा इसका प्रयोग किया जाने लगा।

GDP कैसे कैलकुलेट की जाती है–

GDP के मापन और निर्धारण करने का आम तरीका खर्च या व्यय विधि है। जोकि –

GDP

GDP (सकल घरेलू उत्पाद) = उपभोग + सकल निवेश + सरकारी खर्च + (निर्यात – आयात)

GDP = C + I + G + ( X–M )

यदि इसमें शुद्ध निवेश को उपर्युक्त समीकरण में सकल निवेश के स्थान पर लगाया जाए, तो शुद्ध घरेलू उत्पाद का सूत्र हमें प्राप्त हो जाता है।

उम्मीद करता हूं, कि आपको जीडीपी के बारे में अच्छे से जानकारी मिल गई होगी। यदि आपके मन में कोई भी इससे रिलेटेड सवाल चल रहा है, तो आप नीचे कॉमेंट में पूछ सकते हैं।

Cryptocurrency kya hai

कभी न कभी आपने भी बहुत बार न्यूज चैनल या फिर लोगों के मुंह से Cryptocurrency का नाम जरूर सुना होगा। सुना होगा की यदि हमने उस समय Cryptocurrency खरीदी होती तो आज हम एक अच्छी लाइफ जी रहे होते, या फिर काफी अमीर बन गए होते। तब आपके मन में भी यह सवाल जरूर आया होगा कि आखिर यह क्रिप्टो करेंसी क्या है।

तो चलिए आज मैं आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताऊंगा कि आखिर Cryptocurrency होता क्या है? और यह कैसे काम करता है।

Cryptocurrency meaning in hindi

क्रिप्टोक्यूरेंसी (Cryptocurrency) एक ऐसा डिजिटल भुगतान प्रणाली है, जोकि लेनदेन करने के लिए बैंकों पर निर्भर नहीं है। यह एक पीयर-टू-पीयर सिस्टम होता है जो किसी को भी कहीं भी भुगतान भेजने और प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। यह एक ऐसी मुद्रा है, जिसका कोई मालिक नहीं होता है। अतः इसको एक स्वतंत्र मुद्रा भी कहते हैं।

Cryptocurrency

Cryptocurrency की शुरुआत सबसे पहले 2009 में हुई थी, जिसका नाम बिटकॉइन था। जिसे की जापान के सतोषी नाकमोतो नाम के एक इंजीनियर ने बनाया था। आपको बता दें, कि Cryptocurrency में किसी के भी पास इसका स्वतंत्र अधिकार न होने पर यह किसी के काबू में नहीं होता है। क्युकी इसका स्वतंत्र रूप से एक इंसान से दूसरे इंसान में कम या फिर ज्यादा प्राइस में Buy अथवा Sell किया जाता है।

Cryptocurrency में किसी भी सरकार, राज्य या फिर देश का अधिकार नहीं होता है। जैसे की हमें रुपए या फिर डॉलर में देखने को मिलता है, की उसमें सरकार का देश और रिजर्व बैंक का अधिकार होता है। Cryptocurrency को आप अपने हाथ में एसेट के तौर पर भी नहीं रख सकते। क्योंकि यह एक डिजिटल करेंसी है। जिसके लिए क्रिप्टोग्राफी का प्रयोग किया जाता है। क्रिप्टोग्राफी का प्रयोग सामान्यत किसी सामान को खरीदने के लिए या फिर किसी सर्विस को खरीदने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

Cryptocurrency शुरुआत में तो इतनी पॉपुलर नहीं थी। लेकिन धीरे धीरे इसके प्राइस ने आसमान छूना शुरू कर लिया। जिससे की Cryptocurrency एक सफलता की ओर बढ़ने लगी। जब से क्रिप्टो करेंसी की शुरुआत हुई, तब से अभी तक मार्केट में लगभग 1000 तक Cryptocurrency मौजूद हैं। जोकि पियर टू पियर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के रूप में कार्य करती है।

क्रिप्टो करेंसी ही नाम क्यों

जब कभी भी क्रिप्टो करेंसी में फंड को ट्रांसफर किया जाता है, तो जो भी लेन देन हुआ होता है। तो वह सार्वजनिक पासबुक में छाप दिए जाते हैं। Cryptocurrency को डिजिटल वॉलेट में स्टोर किया जाता है।

Cryptocurrency को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह लेनदेन को सत्यापित करने के लिए एंक्रिप्शन का इस्तेमाल करता है। जिसका मतलब एक उत्तम कोडिंग वॉलेट और डाटा को संग्रहित और प्रसारित करना है। एंक्रिप्शन का मुख्य उद्देश्य सुरक्षा प्रदान करना होता है। क्रिप्टो करेंसी में लोग अधिक लाभ कमाने के लिए इन्वेस्ट करते हैं। और जो सट्टेबाज होते हैं। कई बार यह उनकी किस्मत भी चमका देती है।

क्रिप्टोकरेंसी कैसे काम करता है

Cryptocurrency एक सार्वजनिक पासबुक पर काम करती है, जिसे कि ब्लॉक चैन टेक्नोलॉजी कहा जाता है। इसमें मुद्रधारक और रखे गए सभी लेन देन का रिकॉर्ड शामिल हुआ रहता है। Cryptocurrency को खनन प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है। इसमें सिक्कों को उत्पन्न करने वाली जटिल गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए कंप्यूटर शक्ति का उपयोग करना शामिल होता है।

आप उपयोगकर्ता लोगों से मुद्राएं भी खरीद सकते हैं। और फिर बाद में क्रिप्टोवॉलेट का प्रयोग करके उन्हें स्टोर के खर्च कर सकते हैं। यदि आपके पास कोई भी Cryptocurrency मौजूद है, तो आप किसी विश्वसनीय थर्ड पार्टी के बिना किसी रिकॉर्ड या माप की इकाई को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में देने की अनुमति देती है। समय के साथ इस टेक्नोलॉजी में बहुत से उन्नत बदलाव देखने को मिल रहे हैं। और उम्मीद है, की आने वाले समय में यह और ज्यादा उपयोग और अपने आपको डेवलप करेगा।

क्रिप्टोकरेंसी के उद्धरण

वैसे तो वर्तमान समय में बहुत से क्रिप्टो करेंसी मौजूद हैं। लेकिन मैं आपको कुछ ही Cryptocurrency के उद्धरण दूंगा। जोकि थोड़ा पॉपुलर भी हैं।

Cryptocurrency

1. बिटकॉइन (Bitcoin)

बिटकॉइन सबसे पहले बना हुआ Cryptocurrency है, जोकि सन 2009 में बनी हुई थी। जिसमे की अभी तक सबसे ज्यादा ट्रेड किया जाता है। इसकी शुरुआत सातोशी नाकामोटो ने की थी। इसमें किसी भी मुद्रधारक की डिटेल्स को गुप्त रखा जाता है। जिसकी कोई सटीक पहचान नहीं कर सकता है।

2. इथिरियम (Etherium)

इथिरिएम को सन 2015 में बनाया गया। जिसको कि ईथर नाम से भी जाना जाता है। बिटकॉइन के बाद यह दूसरे नंबर का सबसे लोकप्रिय Cryptocurrency है। इसकी अपनी ब्लॉक चैन टेक्नोलॉजी है।

3. रिपल (Ripple)

रिप्पल को सन 2012 में बनाया गया था। यह एक वितरित प्रणाली है। इसका प्रयोग बहुत से लेनदेन को ट्रैक करने के लिए किया जाता है। इसके पीछे बहुत सी कंपनियो और अलग अलग बैंक और वित्तीय संस्थान जो होते हैं, उनके साथ काम किया है।

Types of ULIP

पिछली पोस्ट में आपने जाना कि यूलिप (ULIP) क्या होता है, यह किस तरह से हमारे लिए एक अच्छी इन्वेस्टमेंट हो सकती है। और इसके क्या फायदे और क्या नुकसान हो सकते हैं। आज हम जानेंगे, कि यूलिप के प्रकार कितने होते हैं। और यूलिप के प्रकार को किस किस तरीके से वर्गीकृत किया गया है।

यूलिप (ULIP)–

यूलिप का पूरा नाम यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान होता है। यह एक बीमा की तरह काम करता है, जिसका प्रयोग की हम शिक्षा में, रिटायरमेंट में, और भी बहुत सी चीजों में भुगतान के लिए कर सकते हैं।

यूलिप एक इन्वेस्टमेंट (Investment) के साथ साथ बीमा का भी मिलाप होता है। मतलब की यूलिप जीवन कवर के साथ साथ हमको एक अच्छा रिटर्न्स कमा कर देता है। यहां बीमा कंपनी आपके द्वारा दिए गए पैसे का कुछ हिस्सा जीवन बीमा में लगा देती है। और एक ऐसे फंड में आराम करती है, जोकि इक्विटी या फिर लोन अथवा दोनों पर आधारित होती है। और आपके लंबे लक्ष्यों से मेल खाता है।

यूलिप के प्रकार

दीर्घकालिक लक्ष्य में आपका बच्चों की शिक्षा संबधी, आपका रिटायरमेंट संबंधी और भी अन्य काफी सारी चीजें समिल्लित हो सकती है, जिसके लिए की आप यूलिप में निवेश करते हैं।

यूलिप के प्रकार–

यूलिप के प्रकार वैसे तो बहुत से हैं। लेकिन इन्हें हम मुख्यत मोटे तौर पर निवेशक की जरूरत और वित्तीय योजना के आधार पर विभाजित कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं, यूलिप के प्रकार में यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस योजना के प्रकारों को विस्तार से।

उद्देश्य के आधार पर यूलिप के प्रकार –

यूलिप के प्रकार में पहला,, उद्देश्य के आधार पर वर्गीकरण किया जा सकता है।

  • वेल्थ कलेक्शन के लिए – यूलिप इन्वेस्टमेंट आपके लिए वेल्थ कलेक्शन का काम करती है। इस तरह की इन्वेस्टमेंट की सलाह उन लोगों को दी जाती है। जो बीस के दशक के अंत और शुरुआती तीसरे दशक में हैं। इनमे निवेश करके वह अपने लिए भविष्य में वित्तीय लक्ष्य को अच्छे रूप में देख सकते हैं।
  • सेवानिवृत के लिए – यूलिप के पॉलिसीधारक को अपने कार्यकाल के दौरान यूलिप में भुगतान करने की आवश्कता होती है, जिसे की एक पूरा अमाउंट ही एकत्रित किया जाता है। जिसका की बाद में रिटायरमेंट के समय वार्षिक रूप में भुगतान कर दिया जाता है।
  • बच्चों के पढ़ाई के लिए – बहुत से लोग अपने बच्चों के भविष्य को अच्छे से सुरक्षित रखने के लिए बहुत सी प्रकार की योजना बनाते हैं। इसमें यूलिप पॉलिसीधारक का थोड़ा थोड़ा अमाउंट जमा होता रहता है। और बच्चों के बड़े होने पर जब आप चाहें उस अमाउंट को निकाल सकते हैं। और यह अमाउंट आपका एक अच्छे रिटर्न्स के साथ मिल कर आता है। यह अमाउंट आप पर और पॉलिसी कंपनी पर निर्धारित करता है, की आपको फ्यूचर में कितना अमाउंट चाहिए।
  • हेल्थ के लिए यूलिप – यूलिप द्वारा पॉलिसीधारकों के लिए स्वास्थ्य में चिकित्सा इमरजेंसी को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।

फंड के आधार पर यूलिप के प्रकार–

  • इक्विटी शेयर – इसमें फंड मैनेजर द्वारा आपके पैसों को शेयर या इक्विटी में लगाया जाता है। इसलिए यह एक उच्च जोखिम के अधीन आ जाता है।
  • डेट शेयर – यहां फंड मैनेजर के द्वारा आपके पैसों को डेट ओरिएंटेड इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट किया जाता है। इसमें आपको कम रिटर्न के साथ साथ कम जोखिम भी देखने को मिलता है।
  • बैलेंस्ड शेयर – इसमें निवेशकों के जोखिम को कम करने के लिए डेट फंड और इक्विटी फंड दोनो जगह निवेश किया जाता है। साथ ही इसमें रिटर्न की संभावना भी लगभग ही रहती है।

फंड के आधार पर यूलिप के प्रकार –

यूलिप के प्रकार
1– बैलेंस्ड फंड–

बैलेंस्ड फंड के अंतर्गत बॉन्ड और स्टॉक दोनो का संतुलन बनाए रखा जाता है। जोकि उसके बदले आपको गारंटीड रिटर्न्स देता है। इसको सरल शब्दों में समझे तो यह निवेशक को सुरक्षा के साथ साथ इन्वेस्टमेंट का लाभ देता है। यह उन निवेशकों के लिए उपयुक्त विकल्प है, जो कम रिस्क के साथ साथ एक अच्छा रिटर्न्स पाना चाहते हैं।

2– नकद धन–

जो निवेशक इन्वेस्टमेंट के दौरान कम रिस्क लेना चाहते हैं, तो उन निवेशकों के लिए यह एक उपयुक्त ऑप्शन है।

3– इक्विटी फंड–

इक्विटी फंड में शेयर में इन्वेस्ट किया जाता है। इसमें उच्च रिटर्न्स के साथ साथ उच्च जोखिम भी देखने को मिलते हैं। इसलिए जो उच्च जोखिम लेने के लिए तैयार होते हैं। उनका पैसा इक्विटी फंड में लगा लिया जाता है।

4– आय फंड–

आय फंड, इक्विटी फंड के ठीक विपरीत होता है। क्योंकि इसमें निवेश कम जोखिम के साथ किया जाता है। इसमें आपके पैसों को डेट फंड, बॉन्ड, सरकारी एसेट आदि चीजों में इन्वेस्ट किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य निवेशकों को एक निश्चित आय प्रदान करना है।

Term Insurance में किन वजहों से मृत्यु नहीं होती कवर।

टर्म इंश्योरेंस (Term Insurance) के बारे में तो आपने पिछली पोस्ट में जान ही लिया था। लेकिन आपको यह भी पता होना चाहिए, कि टर्म इंश्योरेंस में हर तरह की मृत्यु को कवर नहीं किया जाता है। आज हम इस पोस्ट के माध्यम से जानेंग की Term Insurance में किन वजहों से मृत्यु नहीं होती कवर।

Term Insurance में किन वजहों से मृत्यु नहीं होती कवर

टर्म इंश्योरेंस (Term Insurance)–

टर्म इंश्योरेंस एक जीवन बीमा प्लान होता है, जिसमें की बीमा कंपनी के द्वारा पॉलिसीधारक के परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत करना होता है। यह आपको तब प्रदान किया जाता है, जब पॉलिसीधारक की असमय मृत्यु हो जाती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो जब बीमाधारक की असमय मौत हो जाती है, तो उसका परिवार वित्तीय संकट से न गुजरे, इसलिए बीमा कंपनी द्वारा उसके घर वालों को या फिर जिस व्यक्ति का नाम पॉलिसी में दर्ज किया रहता है। उसको दे दिया जाता है। ताकि क्लेम के पैसे मिलने पर उन्हें काफी हद तक राहत मिल सके।

आपको बता दें कि आपको क्लेम का पैसा भी तब मिलेगा जब आपके पास बीमाधारक की मृत्यु की कोई वजह हो। और मृत्यु की वजह यदि नीचे दिए गए विकल्पों में से रहती है, तो फिर आपको क्लेम नहीं मिलता है। Term Insurance में किन वजहों से मृत्यु नहीं होती कवर यह नीचे दिया बताया गया है। और उन परिस्थितियों में आपके बीमा के क्लेम को रिजेक्ट कर दिया जाता है।

Term Insurance में किन वजहों से मृत्यु नहीं होती कवर–

आपका यह पता होना बहुत जरूरी है, कि आखिर किन परिस्थितियों में बीमा कंपनियों द्वारा बीमा को क्लेम करवाने से रिजेक्ट कर दिया जाता है। तो चलिए जानते हैं–

1–बीमाधारक के मर्डर होने पर।

टर्म इंश्योरेंस प्लान के मुताबिक यदि बीमाधाराक का मर्डर होता है, तो नॉमिनी को इस परिस्थिति में क्लेम नहीं दिया जाता है। क्योंकि इस परिस्थिति में पैसों के लालच के चक्कर में नॉमिनी द्वारा भी पॉलिसीधारक का मर्डर किया जा सकता है। इसलिए ऐसी स्तिथि में क्लेम तब तक होल्ड पर रहेगा जब तक की नॉमिनी पूरी तरह से निर्दोष साबित नहीं हो जाता है। इसके अलावा यदि बीमाधारक किसी भी अपराधिक मामले में लिप्त हो, और उस वजह से उसकी हत्या हुई हो, तो इस स्तिथि में भी नॉमिनी को बीमा की रकम नहीं मिलेगी।

2–खतरों का खिलाड़ी होने पर।

यदि बीमा धारक खतरों वाले खेल में हिस्सा लेता है, और उस वजह से उसकी मौत हो जाती है। तो इस स्तिथि में भी कंपनी बीमा को रिजेक्ट कर देती है। हमारे जीवन को खतरा पैदा करने वाली कोई भी गतिविधि इस विकल्प के अंदर शामिल कर दी जाएगी। और क्लेम को रिजेक्ट कर दिया जाएगा। इसके उद्धरण देखें तो कार या बाइक रेस, पैरा ग्लाइडिंग, बंजी जंपिंग, पैराशूट आदि शामिल हैं।

3–नशा करने से मौत होने पर।

यदि पॉलिसीधारक नशे का आदी है। या फिर नशे लेने के बाद गाड़ी या फिर किसी अन्य दुर्घटना में अपनी जान गंवा बैठता है। तो इस स्तिथि में कम्पनी द्वारा क्लेम को रिजेक्ट कर दिया जाएगा। ड्रग्स या नशे के ओवरडोज से मरने पर बीमा कंपनी टर्म प्लान की क्लेम राशि देने से इंकार कर सकती है।

4–पुरानी बीमारी से हुई मृत्यु।

यदि पॉलिसीधारक को कोई बीमारी है, और वह पॉलिसी लेते समय उसमे यह क्लेम नहीं करता की उसको यह बीमारी है। तो उस बीमारी की वजह से मौत हो जाने पर बीमा कंपनी टर्म प्लान का क्लेम रिजेक्ट कर सकती है। इसके अलावा यदि पॉलिसीधारक को HIV या फिर एड्स की बीमारी है, तो इस स्तिथि में भी क्लेम स्वीकार नहीं किया जाता है।

5–प्राकृतिक आपदा से हुई मौत।

यदि किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से काफी बड़े स्थान में लाखों की संख्या में लोग मरे हुए हैं तो उस स्तिथि में भी कंपनी द्वारा क्लेम को स्वीकार नहीं किया जाएगा। प्राकृतिक आपदा के अंतर्गत आपका भूकंप, सुनामी, बाढ़ आदि चीजें शामिल हैं। हालांकि यदि पॉलिसीधारक ने टर्म प्लान के अलावा कोई अलग सा प्लान लिया हुआ है, तो फिर उसको इसका फायदा मिल सकता है। लेकिन अन्य परिस्थिति में क्लेम को रिजेक्ट भी किया जा सकता है।

6–आत्महत्या करने पर–

यदि पॉलिसीधारक द्वारा आत्महत्या की जाती है, तो उस स्तिथि में भी बीमा कंपनी द्वारा क्लेम को एक्सेप्ट नही किया जाता है। आत्महत्या इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDAI ने टर्म इंश्योरेंस के तहत आत्महत्या के क्लॉज में 1 जनवरी 2014 से बदलाव किए हैं।

यदि 1 जनवरी 2014 से पहले के जारी हुए पॉलिसी में आत्महत्या के पुराने क्लॉज वही रहेंगे। लेकिन बाद की नई पॉलिसी नए आत्महत्या क्लॉज को लागू किया जाएगा। आपको बता दें, कि बहुत सी बीमा कम्पनी आत्महत्या होने पर कवरेज देती है। जबकि काफी कंपनियां इसको स्वीकार नहीं करती हैं।

पुराने क्लॉज के तहत यदि कोई बीमा धारक पॉलिसी लेने के एक साल के अंदर अंदर ही आत्महत्या कर लेता है, तो उसको क्लेम नहीं दिया जाएगा। लेकिन यदि उसका टाइम पीरियड 1 साल से अधिक का हो गया है, तो फिर उसको क्लेम मिलने की संभावना थी। कुछ कंपनिया इसका टाइम पीरियड 2 साल भी रखती हैं।

यदि हम नई पॉलिसी क्लॉज की बात करें तो इसमें यदि बीमाधारक 1 साल के अंदर अंदर आत्महत्या कर लेता है, और उसकी पॉलिसी लिंक्ड प्लान है, तो वह पूरे 100 फीसदी पॉलिसी फंड पाने का हकदार है। लेकिन यदि नॉन लिंक्ड प्लान है, तो फिर नॉमिनी को 80 फीसदी ही राशि मिलेगी। इसके साथ साथ यदि 1 साल पूरा हो जाता है। तो पॉलिसी रद्द हो जाती है। और कोई भी लाभ नहीं मिलता है।

इस तरह की मृत्यु होती है Term Insurance में कवर–

1–नेचुरल डेथ या स्वास्थ्य की वजह से–

यदि पॉलिसीधारक की प्राकृतिक तौर पर मौत हुई है, या फिर किसी स्वास्थ्य खराब होने की वजह से मौत होती है। तो उस स्तिथि में आपके बीमा को कवर किया जाता है। गंभीर बीमारी से हुई मौत पर भी क्लेम दिया जाता है।

2–एक्सीडेंट में मौत होने पर–

यदि पॉलिसीधारक की ड्राइविंग करते समय एक्सीडेंट हो जाता है। और वह उस दौरान मर जाता है, तो कंपनी द्वारा उसका क्लेम स्वीकार किया जाएगा। हालांकि जैसे आपको बताया गया था कि यदि व्यक्ति नशे में गाड़ी चला रहा है, और तब उसकी मृत्यु होती है, तो तब उसका क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाएगा।

फैक्ट्री में मशीनरियों की चपेट में आना, अचानक आग लगना, बिल्डिंग या छत से गिर जाना, बाथरूम में फिसल जाना, नदी में डूबना, इलेक्ट्रिक शॉक से मृत्यु आदि इसी से संबंधित चीजें। आपको पॉलिसी लेने से पहले इनके बारे में अच्छे से जान लेना चाहिए। और तब जाके ही पॉलिसी को खरीदनी चाहिए।

  1. Health insurance और term insurance में अंतर।
  2. Best investment plan क्या हो सकते हैं?