जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है?

आपने शेयर मार्केट के उतार चढ़ाव को तो देखा ही होगा। जिसमें गिरावट और बढ़त जैसे खबरें आम होती हैं। तो जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, यह सवाल आपके मन में भी जरूर आया होगा। आखिर कहां जाता है, आपका पैसा गंवाने के बाद।

तो चलिए आज मैं आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताऊंगा कि आखिर जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है। क्या किसी के नुकसान होने पर किसी दूसरे निवेशक को फायदा होता है? आइए जानते हैं।

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है–

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, इसको समझने से पहले आपका यह समझना जरूरी है, कि जब भी कंपनी शेयर बाजार में लिस्टेड होती है, तो कंपनियों के शेयर में इंवेस्टर निवेश करते हैं। और जो कंपनी जितना अच्छा परफॉर्मेंस करती है, उस कंपनी के शेयर उतने ही बढ़ते जाते हैं। और कंपनी की डिमांड भी बड़ जाती है।

जब शेयर मार्केट गिरता है,

इसके साथ साथ जिन कंपनियों का खराब परफॉर्मेंस होता है, उन कंपनियों के शेयर प्राइस उतने ही कम होते चले जाते हैं। इसका मतलब यह है, कि कंपनी के अच्छा परफॉर्मेंस करने पर कंपनी में इंवेस्टर इन्वेस्ट करते हैं। और खराब प्रदर्शन होने पर इंवेस्टर अपनी इन्वेस्टमेंट को निकाल लेते हैं।

जब शेयर मार्केट गिरता है, तो आपका पैसा कहां जाता है, तो इसका जवाब है, की आपका पैसा इंवेस्टर के पास ही जाता है। क्योंकि शेयर मार्केट एक सप्लाई और डिमांड के फॉर्मूले पर काम करता है। हर किसी इंवेस्टर को अपना फैसला सही ही लगता है। शेयर बेचने वाला सोचता है, की वह बेच कर एक अच्छा डिसीजन ले रहा है, वहीं खरीदने वाला सोचता है, कि वह इस समय शेयर को खरीद कर अच्छा फैसला ले रहा है।

माना किसी कंपनी के शेयर का प्राइस अभी 80 रुपए चल रहा है, और वह शेयर किसी A इंवेस्टर के आस पहले से मौजूद है, और उसको लगता है, की वह शेयर का प्राइस अब 80 से उप्पर न बढ़कर अब नीचे जा सकता है। वह उसको बेचना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ B इंवेस्टर सोचता है, की इस कंपनी के शेयर प्राइस अभी और बढ़ सकता है। तो वह उस शेयर को खरीदना चाहता है।

दोनों ही इंवेस्टर A और B को लगता है, की वह दोनों अपना फैसला सही ले रहे हैं। लेकिन आपको बता दें, की जिस तरफ शेयर में बायर की संख्या अधिक होगी तो शेयर का प्राइस उप्पर और यदि सेलर की संख्या ज्यादा होगी तो शेयर का प्राइस नीचे की ओर चलने लगेगा।

और मार्केट में जिधर भी बायर या फिर सेलर का प्रेशर अधिक होगा, मार्केट उधर ही अपनी movement करेगा। किसी का पैसा डूब जाने पर वह पैसा किसी दूसरे इंवेस्टर के पास ही जाता है। मतलब की यदि यहां किसी इंवेस्टर का नुकसान हुआ है, तो उतना ही फायदा किसी दूसरे इंवेस्टर को हुआ होगा।

शेयर मार्केट कैसे चलता है

जब कोई भी व्यक्ति अपना बिजनेस स्टार्ट करता है, और उसको फंडिंग की जरूरत होती है। फंडिंग के ना मिलने पर वह व्यक्ति कंपनी बनाता है, और उस कंपनी को SEBI की मदद से स्टॉक मार्केट में उतारने का प्रयास करता है। सेबी के रूल और रेगुलेशन को पूरा करता है। और सेबी की मंजूरी मिलने पर वह स्टॉक मार्केट में लिस्टेड करते हैं।

शेयर बाजार में लिस्ट करने के लिए नई कंपनी का होना जरूरी नहीं है, पुरानी कंपनी भी शेयर मार्केट में लिस्टेड होती हैं। और जो कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड हो जाती है, उसमे इंवेस्टर इन्वेस्ट कर सकते हैं। और उस कंपनी का हिस्सेदार बन सकते हैं।

आपको बता दें, कि स्टॉक मार्केट में आने के लिए आपको BSE, या फिर NSE में रसिस्टर करवाना होता है। और जिस किसी भी कंपनी में निवेशक निवेश करता है, वह उस कंपनी का हिस्सेदार बन जाता है। यह हिस्सेदारी खरीदे गए शेयर की संख्या पर निर्भर करता है। शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर करता है। मार्केट में कंपनी और शेयर धारक के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर ही करते हैं।

स्टॉक मार्केट ऑपरेटर (Stock market operator)

दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे, Stock market operator के बारे में। आपने बहुत बार लोगों के मुंह से यह जरूर सुना होगा कि इस स्टॉक में आज इतनी प्वाइंट की रैली देखने को मिली। या फिर इस स्टॉक का वॉल्यूम आज अन्य दिनों के मुकाबले बहुत अधिक है। तो इसमें पक्का Stock Market operator घुसा होगा।

तो चलिए दोस्तों आज की यह पोस्ट Stock market operator के नाम। आज हम Stock market Operator के बारे में विस्तार से जानेंगे। कि आखिर ये होते कौन हैं, और इनके पसंदीदा स्टॉक कौन से होते हैं।

स्टॉक मार्केट ऑपरेटर (Stock Market operator)

विवरण – जितने भी रिटेल इंवेस्टर होते हैं, उनका सबसे बड़ा नुकसान उनके डर से होता है। और इस कमजोरी का ही फायदा Stock market Operator द्वारा उठाया जाता है।

Stock market Operator

Stock market Operator के पास बहुत अधिक मात्रा में पैसा होता है। जिससे की वह किसी भी शेयर को अधिक क्वांटिटी में खरीद करके उस शेयर को आसानी से मैन्युकुलेट कर लेते हैं। और रिटेल निवेशक सस्ते के चक्कर में इन स्टॉक में फंस कर रह जाते हैं।

स्टॉक मार्केट ऑपरेटर कैसे काम करता है–

Stock market Operator के द्वारा कुछ इस तरह से स्टॉक के साथ खेल किया करते हैं, जिससे रिटेल निवेशकों को फंसाया जा सके। उनके द्वारा ऐसे स्टॉक में काफी अधिक मात्रा में पैसे लगाए जाते हैं, जिनका कोई भी फ्यूचर नही होता है। और यह ऐसे स्टॉक होते हैं, जो हर किसी को सस्ते दाम में मिल रहे होते है, ताकि हर कोई रिटेल निवेशक इन्हें लेने में सक्षम हो।

जो भी नए निवेशक होते हैं, वह हमेशा सस्ते शेयर में ही अपना फ्यूचर समझते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है, कि कम प्राइस में ज्यादा शेयर उनको मिल जाएंगे। लेकिन stock market operator द्वारा इन शेयर को ऑपरेट किया जाता है। और जैसे ही इन शेयर में ऑपरेटर को अच्छा पैसा दिखने लगता है, वैसे ही वह इन सब शेयर को एक साथ बेच देते हैं। और रिटेल निवेशक को भारी नुकसान देखने को मिलता है।

ऑपरेटर छोटे निवेशकों को क्यों फंसाते हैं–

ऑपरेटर को यह बात अच्छे से पता होती है, कि छोटे निवेशक बड़ी आसानी से लालच में फंस जाते हैं। इसके साथ साथ जो नए निवेशक होते हैं, उनके पास डर काफी अधिक होता है, जिस वजह से वह महंगे शेयर लेने की जगह बेकार के सस्ते शेयर खरीदना चाहते हैं। इसके साथ साथ वह पैनी स्टॉक में पैसे काफी अधिक लगाते हैं। इसके साथ साथ वह news based stocks में पैसा लगाते हैं।

ऑपरेटर से कैसे बचें–

नए निवेशक को हमेशा ही फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग शेयर को ही चुनना चाहिए। इसमें यदि नए निवेशक अपना निवेश करते हैं, तो छोटी अवधि में उन्हें नुकसान देखना पड़ सकता है। लेकिन लंबी अवधि के अंतर्गत उन्हे एक अच्छा रिटर्न्स ही देखने को मिलेगा।

असल मायने में ऑपरेटर वह होते हैं, जिनके पास बहुत अधिक पैसा होता है, ये आपके ब्रोकर भी हो सकते हैं, या फिर म्यूचुअल फंड हाउस भी हो सकते हैं, या फिर कोई बड़े इंस्टीट्यूशन भी हो सकते हैं। लेकिन हमें इनसे बच कर रहना है, इससे बचने के लिए हमें अच्छे फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग शेयर में ही अपना निवेश करना चाहिए।

जिन कंपनियों का मार्केट कैप बहुत बड़ा होता है। उन कंपनियो में ऑपरेटर के पैसों का अधिक असर नहीं पड़ता है। और वह कंपनियां 1 से 2 प्वाइंट भी मुश्किल से बढ़ पाती है। इसलिए आप उन कंपनियो में भी अपना निवेश कर सकते हैं, जिनका मार्केट कैप काफी बड़ा होता है।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए

शेयर मार्केट में कब इन्वेस्ट करना चाहिए, या फिर शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए, मार्केट में सबसे अच्छा समय कौन सा रहेगा जब हमको इन्वेस्ट करना चाहिए, ताकि हम एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकें, ये सवाल हर किसी निवेशक के मन में घूमते रहते हैं।

तो चलिए आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा कि शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए। ताकि आपको एक अच्छा रिटर्न्स मिल सके।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए ?

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए

स्टॉक मार्केट (Stock market) में सबसे अच्छा समय इन्वेस्ट करने का वह होता है, जब पूरा मार्केट गिरा हुआ होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, क्योंकि मार्केट के गिरने के दौरान पूरा बाजार डरा होता है, और इंवेस्टर अपने शेयर को बेचने लगते हैं। जिस वजह से हमको शेयर बड़े सस्ते दाम में मिल जाते हैं। अतः आपको शेयर बाजार में पैसा गिरावट के समय ही लगाना चाहिए। यह बात तो हो गई, शॉर्ट टर्म के लिए। लेकिन क्या इतना ही सब काफी है, इन्वेस्टमेट के लिए, तो उत्तर है, नहीं। तो आइए जानते हैं, उन महत्वपूर्ण बातों को जिन्हें शेयर खरीदते समय ध्यान में रखना चाहिए।

  • कभी भी लोगों की बातों में विश्वास कर के पैनी स्टॉक में पैसा नहीं लगना चाहिए, हमको अपनी खुद की रिसर्च भी कर लेनी चाहिए। और तब पैसा इन्वेस्ट करना चाहिए।
  • दूसरों की टिप्स लेने से अच्छा आप खुद की रिसर्च करें, ताकि आप अच्छे से सीख भी सकें, और आपको अच्छा रिटर्न्स भी मिल सकें। वरना आप सिर्फ लास्ट में अपना पैसा ही गंवाएंगे।
  • स्टॉक मार्केट कोई जुए की तरह नहीं है, कि आप रात ही रात इससे अमीर बन जाओगे, इसमें यदि आपको इन्वेस्ट करना है, तो आपको स्टॉक मार्केट का बेसिक नॉलेज होनी चाहिए। यदि आप बिना सीखें ही इन्वेस्ट करेंगे, और आपको नुकसान होगा तो आप इसे जुआ कह कर छोड़ देंगे।
  • आप केवल उन ही शेयर में इन्वेस्ट करें जिनके फंडामेंटल अच्छे होंगे, ताकि आपको नुकसान कम से कम नुकसान हों सके। और फंडामेंटल अच्छी कंपनियां आपको तब ही मिलेगी, जब आप किसी शेयर में अच्छे से रिसर्च करेंगे।
  • हर समझदार निवेशक अपनी कैपिटल को तब ही निवेश करता है, जब वह अच्छे से किसी शेयर में रिसर्च करता है, और उसे लगता है, कि कंपनी में सही में ही काफी दम है। और वह कंपनी उसे एक अच्छा रिटर्न्स कमा कर दे सकती है।

शेयर मार्केट में पैसे लगाने का एक बेहतर समय।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए की यदि हम बात करें तो आपको बता दूं, कि मार्केट ओपन होते ही कभी भी सीधे ट्रेड में नहीं घुसना चाहिए। बल्कि आपको थोड़ी देर इंतजार करने के बाद उसका वॉल्यूम और ट्रेड देखने के बाद ही इन्वेस्ट करना चाहिए।

आपको मार्केट में कुछ घंटे इंतजार करने के बाद दिखेगा कि मार्केट में अब एक अच्छा खासा वॉल्यूम दिखने को मिल जाएगा। और आप फिर इस चीज का डिसीजन ले सकते हैं, कि आपको ट्रेड करना चाहिए, या फिर नहीं। वॉल्यूम का मतलब होता है, कि इंवेस्टर या फिर ट्रेडर अपने कितने शेयर को खरीद और बेच रहे हैं।

यदि इंवेस्टर अपने शेयर को बहुत ज्यादा खरीद और बेच रहे हैं, और आपको इंट्राडे ट्रेड करना है, तो आप इस स्तिथि में शॉर्ट सेल कर के उससे एक अच्छा रिटर्न्स कमा सकते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दे, कि इंट्राडे में काफी अधिक रिस्क होता है। जिससे आपके पैसे डूबने के चांसेस भी अधिक हो जाता है। इसी लिए यह सलाह दी जाती है, कि आपको हमेशा स्टॉप लॉस को लगा कर ही ट्रेड करना चाहिए।

मेरी सलाह तो आपको यही रहेगी की यदि आपको टेक्निकल एनालिसिस की अच्छी खासी नॉलेज है, तो ही आप यह करें, वरना आप शुरुआत में इन चीजों से दूर ही रहें, तो ही ज्यादा सही रहेगा।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए।

शेयर बाजार में पैसा कब लगाना चाहिए ― आपको बाजार में पैसा लगाने से पहले इस चीज की जानकारी होनी चाहिए, कि आखिर किसी भी शेयर का प्राइस उप्पर या फिर नीचे क्यों जाता है।
यह सवाल जानने की जरूरत आपको इस लिए है, क्युकी जब कभी भी वह शेयर डाउन जाने लगे जिसमे की आपने पैसे लगाएं हैं, तो आप पैनिक में आ कर के उस शेयर को बेचने लगेंगे। और यह अक्सर वे लोग होते हैं, जो अधिकांशत एक्सपर्ट की बातों में यकीन या फिर टीवी चैनल में देख कर के इन्वेस्ट करते हैं।
लेकिन आपको बता दें, की यह समय ही सबसे अच्छा समय होता है, जिस समय आप अपना पैसा मार्केट में लगा सकते हैं। यदि आपने एक फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग कंपनी को चुना है, तो आपको किसी कंपनी के शेयर के घटने या फिर बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता चाहिए, क्योंकि यह कुछ ही समय तक दिखने वाली गिरावट होती है, लॉन्ग टर्म में यह एक अच्छा रिटर्न कमा कर ही देते हैं।

और सबसे मुख्य बात की किसी भी शेयर में हमें पैसे तब लगाना चाहिए, जब वह शेयर अपनी इंट्रांसिक वैल्यू (Intrinsic value) से कम प्राइस पर ट्रेड कर रहा हो। दुनिया के जाने माने निवेशक वारेन बफेट भी इसी तरीके से वैल्यू इन्वेस्टिंग कर के अपने लिए मजबूत शेयर को चुनते हैं।

Short term investment

यदि हमको जीवन में एक अच्छा लाइफस्टाइल व्यतीत करना है, तो इसमें इन्वेस्टमेंट (Investment) अपनी सबसे अहम भूमिका निभाता है। इन्वेस्टमेंट वैसे तो बहुत से प्रकार की होती हैं। लेकिन यह मुख्यत 2 प्रकार के होते हैं। पहला SHORT TERM INVESTMET और दूसरा LONG TERM INVESTMET, बहुत से लोगों को इसके बारे में पता भी होगा।

Short term investment

आज मैं आपको अपनी इस पोस्ट के माध्यम से शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट (Short term investment) के बारे में विस्तार से बताऊंगा और किन जगह हमें Short term investment करना चाहिए, यह सब जानकारी आपको दूंगा। तो चलिए जानते हैं, कि आखिर शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट (Short term investment) क्या होती है।

शॉर्ट टर्म इंवेस्टमेंट (Short term investment)

Short term investment उस इन्वेस्टमेंट (Investment) को कहते हैं, जिसमें की आपका निवेश 1 साल से कम टाइम के लिए किया जाता है। Short term investment को आप बड़ी आसानी से अपनी जरूरत के हिसाब से कैश में बदल सकते हैं। शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट के अंदर आपका फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit), शेयर में इन्वेस्टमेंट (1 साल के अंदर सेल कर देना) आदि चीजें सम्मिलित होती हैं।

Short term investment को एक उद्धरण से समझते हैं। जैसे की आपके द्वारा बैंक में fixed deposit की गई है। तो आप उस पैसे को अपने जरूरत के हिसाब से कभी भी निकाल सकते हैं। इससे आपको अधिक नुकसान भी नहीं होगा, और उस राशि को अपने लिए प्रयोग में ले सकते हैं। इसको यदि सरल शब्दों में समझें तो वह राशि जिसकी हमें कभी भी जरूरत पड़ सकती है। तो उस स्तिथि में अपनी राशि को इन्वेस्ट करने के लिए Short term investment एक अच्छा विकल्प होता है।

Best Short term investment

शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए बेस्ट ऑप्शन बहुत से हैं। जिनकी मदद से आप एक अच्छा रिटर्न जेनरेट कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं, कि यह कौन से विकल्प हैं।

1. सेविंग बैंक अकाउंट (Saving Bank Account)

यदि आप उन लोगों में आते हैं, जिनको बिना रिस्क के 3 से 6 परसेंट तक का व्याज चाहिए, तो आप अपने पैसे को सेविंग अकाउंट में डाल सकते हैं। यह भी एक Short term investment का बेस्ट ऑप्शन है। जिसमें की लोगों द्वारा सबसे ज्यादा निवेश किया जाता है।

आपको सेविंग अकाउंट (Saving Account) खुलवाने से पहले यह जान लेना चाहिए, कि आपको कौन सा बैंक कितने परसेंट का रिटर्न्स व्याज के तौर में दे रहा है। क्युकी सभी बैंकों का व्याज रेट अलग अलग होता है।

2. RD (Reccuring Deposit)

Rd (Reccuring Deposit) में आपको सालाना 6 परसेंट तक का रिटर्न्स मिलता है। यदि आप प्रत्येक माह रुपयों को इन्वेस्ट करना चाहते हैं, तो यह आपके लिए एक बेस्ट शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट (Short term investment) हो सकता है। यह स्कीम आप बैंकों में या फिर पोस्ट ऑफिस में जाकर खुलवा सकते हैं।

3. फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit)

फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) अभी तक की सबसे अच्छी इन्वेस्टमेंट हैं। जोकि बहुत से लोगों द्वारा की जाती है। इसमें आप बहुत ही कम रिस्क में सालाना 5 से 6 परसेंट तक का रिटर्न जेनरेट कर सकते हैं। इसमें भी आपको अलग अलग बैंकों में अलग अलग रिटर्न्स देखने को मिल सकता है।

4. लिक्विड फंड (Liquid Fund)

लिक्विड फंड में आप अपने पैसों को कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक भी निवेश कर सकते हैं। इस फंड में निवेश करके आप 7 से 8 परसेंट तक का रिटर्न्स कमा सकते हैं। इस फंड की खाश बात यह है, कि इसमें आप अपने पैसों को एक दिन के लिए भी इन्वेस्ट कर सकते हैं। इसके साथ ही यदि आप लिक्विड फंड में निवेश करते हैं, तो इसमें आपके पास कोई भी चार्ज नहीं लगता हैं।

5. Lumpsum investment

Lump sum में आपके पैसे को म्यूचुअल फंड में एक ही बारी में निवेश कर दिया जाता है। और बाद में आपको इसके उप्पर रिटर्न मिलता है। म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) के 2 प्रकार Debt fund और दूसरा इक्विटी फंड होता है।

Debt Mutual fund में यह आपके पैसों को लोन के रूप में आगे भेजते हैं, और इसके बदले में यह व्याज जमा करते हैं। इसमें आपको सालाना लगभग 7 से 11 परसेंट तक का व्याज मिल सकता है।

यदि हम इक्विटी म्यूचुअल फंड की बात करें तो इसमें आपके पैसों को शेयर मार्केट के शेयर में लगाते हैं। और इससे मिलने वाले रिटर्न्स से यह लाभ कमाते हैं। इसमें आपको सालाना 13 से 15 परसेंट तक का रिटर्न्स मिल सकता है।

6. शेयर मार्केट में शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट (Stock market Short term investment)

यदि आप रिस्क अधिक लेने को तैयार रहते हैं, तो आपके लिए स्टॉक मार्केट (Stock market) एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसमें आपको कम से कम 15 से 30 परसेंट तक के सालाना रिटर्न्स देखने को मिल सकते हैं।

स्टॉक मार्केट में निवेश करने के लिए आपको डीमैट अकाउंट (Demat Account) की जरूरत होती है। डीमैट अकाउंट को आप किसी भी ब्रोकर जैसे अपस्टॉक (Upstox), zerodha, Angle one आदि ब्रोकर के साथ खोल सकते हैं।

ध्यान रहे की शेयर मार्केट (Stock market) में निवेश करने के लिए आपको इसका बेसिक नॉलेज होना चाहिए। वरना आपको इसमें एक बड़ा नुकसान भी देखने को मिल सकता है। बेसिक ज्ञान होने के बाद ही आप शेयर मार्केट में निवेश करने की सोचें।

Leverage meaning in hindi

आपने अपने निजी लाइफ या फिर यदि आप शेयर मार्केट (Share market ) के बारे में थोडी बहुत जानकारी रखते होंगे तो आपने Leverage का नाम जरूर सुना होगा। और उस समय आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा की आखिर ये Leverage होता क्या है। और यह किन परिस्थितियों में प्रयोग किया जा सकता है।

तो चलिए आज मैं आपको लेवरेज के बारे में विस्तार से समझाऊंगा। और बताऊंगा यह क्या होता है। और इसका कहां प्रयोग किया जा सकता है।

Leverage

लेवरेज ( Leverage )

लेवरेज ( Leverage ) को हिंदी में लाभ उठाना, प्रभावन क्षमता आदि, इन नामों से जाना जा सकता है। लेवरेज का सही मतलब यहां पर उत्तोलन उधार की पैसों के उस अमाउंट से है, जोकि किसी कंपनी के व्यापार को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल में लाई जाती है।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो लेवरेज एक तरह की ऐसी तकनीक है, जोकि किसी निवेशक के वित्तीय लाभ या फिर हानि को बढ़ा देती है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से वित्तीय लाभ को बढ़ाने के लिए उधार के पैसों का इस्तेमाल किया जाता है।

लेवरेज किसी कंपनी द्वारा शेयरधारकों के लिए लोन का वह उपयोग है, जिससे की वह अधिक से अधिक रिटर्न्स प्राप्त कर सकें।

स्टॉक मार्केट में भी यदि आप एक निवेशक हैं, और आपके पास उतना अमाउंट आपके डीमैट अकाउंट ( Demat Account ) में नहीं पड़ा हुआ है। और आपको किसी स्टॉक या फिर ट्रेड करने के लिए अधिक पैसों की जरूरत है, तो आप उस स्तिथि में अपने ब्रोकर (Broker) से लेवरेज की मांग कर सकते हैं।

प्रत्येक ब्रोकर का लेवरेज देने का अमाउंट अलग अलग हो सकता है। कोई ब्रोकर आपको कम लेवरेज भी दे सकता है। तो कोई ब्रोकर आपको 10 गुना तक भी लेवरेज दे सकता है।

फाइनेंस या फिर बिजनेस में लेवरेज –

स्टॉक मार्केट में निवेशक किन परिस्थितियों में अपने ब्रोकर से लेवरेज की मांग करते हैं, ये तो आपने जान ही लिया होगा। अब आपको बताते हैं, कि कंपनियां लेवरेज का प्रयोग किस तरीके से करते हैं। आम तौर पर देखा जाए तो यह निवेश करने के लिए बड़ा घातक सिद्ध हो सकता है।

कंपनी leverage का प्रयोग नकदी प्रवाह और अपने रिटर्न्स को अच्छे से बढ़ाने के लिए करती हैं। इसका मतलब यह नहीं हुआ की यह आपके रिटर्न्स को बढ़ाती है, तो यह आपको नुकसान नहीं देगी। जितना यह रिटर्न्स देती है। उतना ही यह आपका नुकसान भी कर देती है। इससे कंपनियों में जितना फायदा देखा गया है, उतना ही अधिक नुकसान भी देखा गया है।

Leverage को मुख्य 2 भागों मे बांटा गया है।

1– वित्तीय लेवरेज ( Finance Leverage )

2– परिचालन लेवरेज ( Oprating Leverage )

वित्तीय लेवरेज की बात करें तो यदि आपको वित्तीय लेवरेज को बढ़ाना है, तो आप एक किसी निश्चित आय फर्म के माध्यम से पैसों को उधार ले सकते हैं। या फिर किसी व्यक्ति से सीधे ही पैसे उधार ले सकते हैं। इसमें उच्च ब्याज भुगतान पर रिटर्न को बढ़ावा देने के लिए अधिक पूंजी उपलब्ध कराई जाती है, जो की शुद्ध कमाई को प्रभावित करती है।

जबकि ऑपरेटिंग लेवरेज का प्रयोग नकदी प्रवाह और व्यापार में रिटर्न को बढ़ाने के लिए किया जाता है। और एक निश्चित परिचालन खर्चों को बढ़ाने से प्राप्त कर सकते हैं।

आपको बता दें कि दोनो तरीके जोखिम भरें हैं, इनसे आपको बड़ा नुकसान भी हो सकता है। और आप दिवालिया भी बन सकते हैं। परंतु इसकी मदद से आप अपनी कंपनी या व्यापार को एक अलग लेवल तक भी पहुंचा सकते हो। जोकि आपके लिए बड़ा फायदेमंद रहेगा।

उम्मीद करता हूं, कि आपको Leverage के बारे में, और Leverage किन जगहों में प्रयोग होता है, यह अच्छे से समझ आ गया होगा।

CAGR

आपने कई बार टेलीविजन में या फिर सोशल मीडिया में यह देखा होगा कि यह कंपनी इतने पर्सेंट की CAGR से ग्रो कर रही है, या फिर बड़ रही है।

और नए नए निवेशकों को यह समझ नही आता है, कि आखिर यह CAGR क्या होता है। और यह कैसे बड़ रही है। आज हम सीएजीआर के बारे मे विस्तार से जानेंगे। और बताएंगे यह क्या होता है। और इसका प्रयोग क्यों होता है ?

CAGR

सीएजीआर (CAGR ) की जानकारी –

CAGR का पूरा नाम Compounded Annual Growth Rate होता है। जिसका हिंदी में मतलब होता है – चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर

सीएजीआर में जो Compounding Interest होता है, उसका अर्थ चक्रवृद्धि ब्याज होता है। इसमें आपको व्याज के उप्पर भी ब्याज लग कर मिलता है।

CAGR एक साल से अधिक समय की अवधि में किसी निवेश की औसत वार्षिक वृद्धि दर होती है, जोकि उस समय के दौरान किसी फंड ने आपको रिटर्न दिया होता है।

CAGR को सरल शब्दों में समझें तो यह एक तरह का ब्याज गिनने का तरीका है जो कि निवेश की अवधि खत्म होने के बाद निकाला जाता है। CAGR आपको बताता है, कि इस अवधि के दौरान किसी फंड ने आपको हर साल कितना रिटर्न्स दिया है।

CAGR का प्रयोग क्यों होता है–

जब भी हम किसी निवेश करने के विकल्प को चुनते हैं, तो हम उससे यह उम्मीद कर लेते हैं, कि यह हमको आने वाले समय में इससे कितना रिटर्न्स मिलेगा।

जब भी हम किसी इन्वेस्टमेंट का विकल्प चुनते हैं, तो हम किसी दूसरे निवेश विकल्प की तुलना किसी दूसरे विकल्प से कर के अपने लिए बेहतर विकल्प खोज सकते है। और इन दोनों में से कौन सा विकल्प उचित रहेगा। और किससे हमको ज्यादा रिटर्न मिलेगा, इसका पता कर सकते हैं। और फिर अपनी स्थिति के अनुसार निवेश कर सकते है।

आपको बता दें, निश्चित व्याज देने वाले विकल्प जैसे Fd, या फिर RD की तुलना हम आसानी से कर लेते हैं। लेकिन आपको जहां फिक्स्ड रिटर्न्स नही मिलता है। इनकी तुलना करना फिर थोड़ा कठिन काम हो जाता है। म्यूच्यूअल फंड्स ( Mutual fund ) और शेयर बाजार ( Stock market ) भी ऐसे ही विकल्प है जिसमे बाजार की स्थिति के अनुसार हर साल ज़्यादा या फिर कम रिटर्न मिलता है। और उनकी तुलना किसी अन्य इन्वेस्टमेंट के साथ आसानी से नहीं की जा सकती है।

इन समस्याओं से निपटने के काम आता है CAGR, जोकि हमारे द्वारा अलग अलग साल के रिटर्न्स को एक फिक्स्ड रेश्यो बनाकर के साल भर की रिटर्न्स की गणना करके देता है। और बताता है, कि इसने औसत हमको कितना रिटर्न्स दिया है।

CAGR का फॉर्मूला –

CAGR

CAGR = (EV / BV)1/N–1

जिसमे की EV का मतलब निवेश का अंतिम मूल्य, BV का मतलब निवेश का प्रारंभिक मूल्य, और N का मतलब अवधि की संख्या ( महीना या फिर साल ) होता है।

मुख्य बातें –

  • कभी कभी दो इन्वेस्टमेंट का एक ही तरह का CAGR हो सकता है। जिस वजह से दोनों की तुलना करना कठिन हो सकता है। या फिर आपको दोनो ही आकर्षित कर सकते हैं। इसमें यह भी हो सकता है, कि एक इन्वेसमेंट में ग्रोथ पिछले साल ज्यादा रही हो। और दूसरे के लिए ग्रोथ इसी साल अधिक रही हो। तब जाकर यह CAGR निकला हो।
  • पिछले एक या दो सालों को देखते हुए आप यह डिसाइड नही कर सकते हो की CAGR विक्री के संकेत दे रहा है। यह कोई विक्री का संकेतक नहीं होता है। क्योंकि इन्वेस्टमेंट हमको लॉन्ग टर्म तक करनी होती है। तभी जाकर आपको एक अच्छा रिटर्न मिलता है।
  • CAGR का प्रयोग आम तौर पर 3 साल से 7 साल के रिटर्न्स को देखने के लिए किया जाता है। इसमें आपको किसी साल कम रिटर्न्स भी दिखेंगे, तो किसी साल आपको काफी अधिक रिटर्न्स भी देखने को मिल सकते हैं।

What is ASM and GSM in stock market

स्टॉक मार्केट से यदि आप जुड़े हुए हो, तो आपने यह दो शब्द जरूर सुने होंगे। ASM and GSM। इतना ही नहीं आपने लोगों के मुंह से यह भी सुना होगा की आपको स्टॉक में इनवेस्ट करते समय यह देख लेना चाहिए कि कहीं ये ASM and GSM लिस्ट के अंदर तो नही है।

आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि आखिर यह ASM and GSM होता क्या है। तो चलिए इनके बारे में मैं आज आपको विस्तार से बताऊंगा कि आखिर यह क्या होता है। और इसको जानना क्यों जरूरी है।

ASM and GSM

ASM and GSM की सामान्य जानकारी –

ASM and GSM दोनो को बनाने का मुख्य कारण रिटेल इन्वेस्टरों की सुरक्षा करना है, जिसे की SEBI और स्टॉक एक्सचेंज BSE और NSE द्वारा बनाया गया। इन दोनों में ही ASM and GSM में उन शेयरों को रखा जाता है, जिसमें की बिना वजह ही भारी रिटर्न्स देखने को मिलते हैं। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ की इन स्टॉक्स में ऑपरेटर घुस गया है, जिसमे की बहुत सा पैसा होता है। और इनके द्वारा इनमें इनवेस्ट किया गया है, जिस वजह से इसमें बिना वजह ही भारी वृद्धि देखने को मिली है।

और इस स्पीड से चल रहे स्टॉक्स को देख कर रिटेल इन्वेस्टर के मन में इन स्टॉक्स को लेने का विचार बनता है, और वह जेसे ही स्टॉक्स में इनवेस्ट करते रहते हैं। वैसे ही ऑपरेटर द्वारा इन शेयर को बेच दिया जाता है। और ASM and GSM Stocks में रिटेल इन्वेस्टर फंस जाता है। और एक भारी नुकसान उसे झेलना पड़ता है।

Additional surveillance Measure ( ASM ) क्या है–

एक्सचेंज और सेबी के द्वारा यह नियम बनाया गया। इसमें उन स्टॉक्स में अतरिक्त निगरानी रखी जाती है, जिनमें की बिना वजह बड़त हुई है। इसके साथ ही एएसएम लिस्ट में रखने के लिए स्टॉक्स की शॉर्टलिस्टिंग एक उद्देश्य मानदंड पर आधारित है। जैसा कि सेबी और एक्सचेंज के द्वारा संयुक्त रूप से निम्नलिखित पैरामीटर को कवर करने के लिए किया जाता है।

ASM लिस्ट में किन स्टॉक्स को रखा जाए–

  • किसी स्टॉक में प्राइस मूवमेंट बहुत अधिक हो जाने पर, इसे high low veriation भी कहा जाता है।
  • यदि किसी स्टॉक में अचानक से ही कुछ ही इन्वेस्टर बहुत सा निवेश कर रहे हो, इसे client concentration कहा जाता है।
  • यदि किसी स्टॉक में आज का जो क्लोजिंग प्राइस है, उसमे अगले दिन के क्लोजिंग प्राइस में ज्यादा का अंतर आ गया हो, तो उसे close to close price variation कहते हैं।
  • किसी स्टॉक में जब अचानक से ज्यादा ट्रेड होता है, और उसमें वॉल्यूम अधिक दिखने लगता है। Volume variation कहते हैं।

यदि इन सब पैरामीटर को कोई भी स्टॉक पूरा नहीं करता और यही चीजें उस स्टॉक्स में दिखने लगती हैं, तो उनको ASM LIST के अंदर रख दिया जाता है। इस लिस्ट को भी दो भागों में बांटा गया है। एक शॉर्ट टर्म ASM LIST और दूसरा लॉन्ग टर्म ASM LIST। यदि कोई स्टॉक शॉर्ट टर्म के अंदर आता है, तो उसे 2 Stage के अनुसार से सूचीबद्ध किया जाता है। और यदि स्टॉक्स लॉन्ग टर्म में आता है, तो फिर उसे 4 Stage के अनुसार सूचीबद्ध किया जाता है।

Graded surveillance Measure (GSM) क्या है–

स्टॉक एक्सचेंज और सेबी के द्वारा GSM में भी उन स्टॉक्स को रखा गया है, जिसमें की रिटेल इन्वेस्टर फंस न जाए। मतलब की इसमें इसके बारे में चर्चा और यह निर्णय लिया है, कि उपरोक्त उपायों के साथ साथ प्रतिभूतियों पर और अधिक निगरानी उपाय को लागू किया जाए। GSM में डाले जाने वाले शेयरों की पहचान समय समय पर बाजार में कर रहे ट्रेडर या इन्वेस्टर को NSE की ऑफिशियल वेबसाइट पर से दिया जाता है।

GSM लगने पर क्या होता है–

  • जो स्टॉक इसके अंदर आ जाते हैं, उन स्टॉक्स में इंट्राडे ट्रेडिंग (intraday trading) में प्रतिबंध लग जाता है। इसके साथ ही पूरे दिन में 5% ही सर्किट लगती है। अब वह ऊपर की हो या फिर नीचे की।
  • इनमें मार्जिन 100% या फिर उससे भी अधिक की राशि जमा करनी पडती है। जिसे की एक विस्तारित अवधि के लिए ही रखा जाता है।
  • एक सप्ताह में केवल एक ही बार ट्रेड किया जा सकेगा।
  • शेयर में अपर सर्किट लगने पर उनको ऊपरी प्राइस पर ही फ्रीज कर दिया जाता है।

GSM में आने वाले शेयर की एंट्री –

  • एक्सचेंज और सेबी की साल में एक बार बैठक होने पर उन स्टॉक्स में ध्यान ध्यान दिया जाएगा, जिनको की अब GSM में से बाहर निकाला जाएगा। और दूसरे शेयर को अंदर किया जाएगा।
  • यदि किसी कंपनी का मार्केट कैप 25 करोड़ हो।
  • निफ्टी 500 का (प्राइस टू बुक) का वैल्यूएशन का दो गुना से ज्यादा स्क्रिप प्राइस टू बुक वैल्यूएशन हो।

GSM में आने वाले शेयर की एंट्री–

  • इसमें आए हुए स्टॉक के बारे में हर तिमाही में बातचीत चलती है। याने की तिमाही के आधार पर इन स्टॉक की समीक्षा की जाती है।
  • एक्सचेंज और सेबी के द्वारा समय समय पर अपडेट किया जाएगा। और अन्य सभी प्रचलित निगरानी उपायों के संयोजन में ही किया जाता है।
  • इसके अंदर आए हुए स्टॉक यदि GSM मापदंड को पूरा करता है, तो वह इस सूची से बाहर निकाल दिया जाता है।

ASM and GSM बनाने का मुख्य उद्देश्य –

  • इन्वेस्टरों को ASM and GSM शेयर के प्रति सचेत करना की जब भी आप इन शेयर में इनवेस्ट करें तो लेन देन करते समय अतरिक्त सावधानी जरूर बरतें।
  • ASM and GSM में उन स्टॉक्स को डाला जाता है, जिनकी की मार्केट कैप बहुत ही कम होती है, और मार्केट कैप कम होगी तो यह पैनी स्टॉक्स कहलाएंगे। और इन स्टॉक्स में खतरा उतना ही अधिक होता है। इसलिए ही इन स्टॉक्स में एक्सचेंज और सेबी के द्वारा कड़े प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं। ताकि रिटेल इन्वेस्टर को ज्यादा नुकसान न सहना पड़े। और वह पहले ही सचेत हो जाएं।

ASM and GSM से क्या निष्कर्ष निकला–

उम्मीद करता हूं, आपने इस पोस्ट के माध्यम से समझ ही लिया होगा की ASM and GSM क्या होता है। अब आपको इन्वेस्टर होने के नाते इसमें क्या करना चाहिए। इसमें यदि हम GSM स्टॉक्स की बात करें तो इसमें अधिकतर पैनी स्टॉक्स को रखा जाता है। याने की वह स्टॉक जिनका प्राइस बहुत कम होता है, जिसे की हर किसी के द्वारा लिया जा सकता है। इसमें हमने देखा की GSM कैटेगरी के अंदर हमारा इन्वेस्टमेंट ब्लॉक ही रहता है। इसलिए इन शेयरों से हमें दूर ही रहना चाहिए।

यदि हम ASM लिस्ट की बात करें तो इसमें आए स्टॉक्स में वह स्टॉक आते हैं। जोकि फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग होते हैं। यह स्टॉक्स बहुत बार भी ASM LIST में आ सकते हैं। इसमें हमको एक बात का यह ध्यान रखना होता है, कि यदि आपका स्टॉक्स लॉन्ग टर्म ASM LIST की ओर जा रहा हो तो फिर हमको इसको अवॉइड करना चाहिए।