
What is Mutual funds – म्यूचुअल फंड क्या है | हिन्दी में |
Mutual funds में आपको बता दें, कि जब हम किसी भी जगह इनवेस्ट करते हैं, तो उसमे सभी समझदार लोग मुख्यत इन चार पॉइंट्स को जरूर देखते हैं।
1– रिस्क,
2– रिटर्न्स,
3– वोलेटिलिटी,
4– लिक्विडिटी,
(ii)– रिटर्न्स – Mutual funds में रिटर्न्स की बात करे तो इसमें कम समय अवधि के लिए निवेश करने पर फिक्स रिटर्न्स। या फिर अधिक रिटर्न्स कभी नहीं मिल सकता है। लेकिन अगर हम किसी Mutual funds में लॉन्ग टाइम के लिए इनवेस्ट करके रखे तो उसमे रिटर्न्स हम तकरीबन 13 से 15 पर्सेंट तक मान सकते हैं।
(iii)– वोलेटिलिटी – Mutual funds में हमको बहुत ज्यादा वोलेटिलिटी देखने को मिलती है। इसलिए हम इससे छोटे समय के लिए ज्यादा रिटर्न्स की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। और हाई वोलेटिलिटी की वजह से हमको हाई रिस्क का सामना भी करना पड़ता है।
उद्धरण के तौर पर समझाया जाए तो यदि आपको किसी इमरजेंसी के समय में पैसों की जरूरत पड़ जाती है, और उस समय मार्केट वोलेटिलिटी की वजह से डाउन चल रहा हो तो उसमे हमको अपनी इन्वेस्टमेंट को घाटे में ही निकालना पड़ सकता है।
(iv)– लिक्विडिटी – Mutual funds में हमको हाई लिक्विडिटी देखने को भी मिलती है। सरल भाषा में कहें, तो हाई लिक्विडिटी से आप यह समझ सकते हैं, की हम अपने इन्वेस्टमेंट को कितनी जल्दी निकाल सकते हैं। याने की हम अपने इन्वेस्टमेंट को कितनी जल्दी केस के अंदर बदल सकते हैं।
Mutual fund के फीचर्स और उसके प्रकार –
Mutual funds असल मे है क्या, म्यूचुअल फंड में बहुत से लोग अपने पैसों को फंड हाउस को देते हैं, और फंड हाउस को फंड मैनेजर के द्वारा अलग अलग सिक्युरिटी, बॉन्ड्स, इक्विटी या फिर अन्य जगह इनवेस्ट करके लोगों को एक अच्छा रिटर्न्स कमा के देती है। और बदले में वह लोगों से एक छोटा सा कमीशन ले लेते हैं। म्यूचुअल फंड हाउस को मैनेज एसेट मैनेजमेंट कंपनी के द्वारा किया जाता है।
उद्धरण देखे तो SBI , hdfc, axis, आदित्य बिरला और भी बहुत सी एसेट मैनेजमेंट कंपनी हमारे भारत में हैं। एक एसेट मैनेजमेंट कंपनी 4 से 5 सौ तक भी मल्टीपल फंड चला सकते हैं,
अब आपको बताता हूं कि मेनली ये मल्टीपल फंड कितने प्रकार के होते हैं। मुख्यत इन मल्टीपल फंड को तीन भागों में बांटा गया है।
1– इक्विटी म्यूचुअल फंड,
2– डेट म्यूचुअल फंड,
3– हाइब्रिड म्यूचुअल फंड,
(i) – इक्विटी म्यूचुअल फंड – Equity Mutual funds में पैसों को इक्विटी या शेयर में इनवेस्ट किया जाता है। Equity Mutual funds में हाई रिस्क होता है। इन म्यूचुअल फंड में वे लोग इनवेस्ट करते हैं जिनको हाई रिस्क लेना होता है। क्योंकि इसमें हाई रिस्क है तो नॉर्मल से बात है की इसमें हाई रिटर्न्स की पॉसिबिल्टी भी उतनी ही अधिक होगी। अर्थात हाई रिस्क के साथ साथ इसमें हाई रिटर्न्स भी हमको मिलते हैं।
(ii)– डेट म्यूचुअल फंड – Debt Mutual funds में पैसों को बॉन्ड्स ( Bond ), डिवेंचर, गवर्मेंट सिक्योरिटी आदि में इनवेस्ट किया जाता है। जिन लोगों को कम रिस्क लेना होता है, उनके लिए यह म्यूचुअल फंड बहुत ही अच्छा ऑप्शन है। क्योंकि इसमें रिस्क कम है तो इसमें रिटर्न्स भी कम ही मिलते हैं।
(iii)– हाइब्रिड म्यूचुअल फंड – हाइब्रिड म्यूचुअल फंड में पैसों को सब जगह थोड़ा थोड़ा इनवेस्ट कर दिया जाता है, इसमें रिटर्न्स न तो कुछ ज्यादा आते हैं, और नाही ज्यादा कम। इसमें रिटर्न्स हमको मॉडरेट से हाई ही देखने को मिलते हैं, साथ ही इसमें मॉडरेट ही रिस्क होता है।
इसके साथ साथ Mutual funds को हम एक और तरीके से क्लासीफाइड कर सकते हैं।
1– लार्ज कैप,
2– मिड कैप,
3– स्माल कैप,
(i)–लार्ज कैप – लार्ज कैप के अंदर वे सभी बड़ी कंपनियां आती है, जो पहले से डेवलप हो गई होती है, क्युकी ये कंपनी पहले ही डेवलप हो गई होती हैं, तो इससे रिटर्न्स भी कुछ ज्यादा नही मिलते हैं। साथ साथ इसमें कम रिस्क के साथ कम रिटर्न्स मिलते हैं।
(ii)– मिड कैप – मिड कैप के अंदर वे कंपनियां आती है, जो न बहुत बड़ी होती है, और नाही बहुत छोटी। इन कंपनियों में रिस्क और रिटर्न्स मॉडरेट ही रहते हैं।
(iii)– स्माल कैप – स्माल कैप के अंदर वे सभी छोटी कंपनियां आती हैं, जो अभी स्ट्रगल कर रही होती हैं। इन कंपनियों में रिस्क भी बहुत ज्यादा होता है, साथ ही रिटर्न्स भी काफी अधिक होते हैं।
इसके अलावा इनको एक और तरीके से क्लासीफाइड कर सकते है। जिसके अंतर्गत इनमे सेक्टर फंड आदि को सम्मिलित किए गए हैं। जैसे –
1– टेक्नालॉजी सेक्टर,
2– बैंकिंग सेक्टर,
3– ऑटोमोबाइल सेक्टर,
4– एग्रीकल्चर सेक्टर,
5– एफएमसीजी सेक्टर,
Mutual funds में कैसे निवेश करें
1– SIP करके।
2– लंपसम करके।
(i)– SIP – SIP का पूरा नाम सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) होता है। इसमें हमको महीने महीने एक फिक्स अमाउंट को इनवेस्ट करना पड़ता है। इसमें हम किसी भी समय पर इनवेस्ट कर सकते हैं।
लेकिन ध्यान रहे की इसमें हमको लॉन्ग टर्म के लिए ही इनेवस्ट करके रखना चाहिए। तभी हमको एक अच्छा रिटर्न्स देखने को मिलेगा। क्योंकि म्यूचुअल फंड ( Mutual fund ) में हमको वोलेटिलिटी देखने को मिलती है, इसलिए इसको लॉन्ग टर्म के लिए ही इनवेस्ट करना चाहिए।
(ii)– लंपसम – लंपसम वह प्लान होता है, जिसमे की कभी भी एक कोई सा भी अमाउंट हम इनवेस्ट कर देते हैं, इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है, कि इसमें हमको तब इनवेस्ट करना चाहिए, जब शेयर बाजार ( Stock market ) में डर का माहौल बना रहता है। या फिर मार्केट क्रैश हुआ रहता है।
यदि हम इसमें तब इनवेस्ट करते हैं, जब मार्केट में चारों तरफ मार्केट के ही बारे में बातें चल रही हैं, तो फिर हमें ज्यादा नुकसान देखने को मिल सकता है। क्योंकि यदि मार्केट में हमने हाई टाइम में इनवेस्ट किया हुआ है, तो मार्केट के गिरने में हमको बहुत नुकसान देखने को मिलेगा और साथ ही हमको उस रिकवरी को कवर करने में बहुत टाइम भी लग जायेगा।
* SIP और LUMPSUM को विस्तार से जाने।
हमें Mutual funds में इनवेस्ट करते समय क्या देख लेना चाहिए –
1- रिटर्न्स – यदि हम किसी Mutual funds में निवेश करते हैं, तो हमें उसमें सबसे पहले उसके लगभग 5 साल के रिटर्न्स देख लेने चाहिए। क्योंकि म्यूचुअल फंड लॉन्ग टाइम फ्रेम में ही एक अच्छा रिटर्न्स देती है। अगर इतने टाइम फ्रेम में भी म्यूचुअल फंड ने अधिक रिटर्न्स नही दिए हों तो हमें उसमें निवेश नहीं करना चाहिए।
2– एक्सपेंस रेश्यो – किसी भी Mutual funds में निवेश करते समय हम उसका एक्सपेंस रेश्यो भी चेक कर लेना चाहिए। यह रेश्यो जो होता है, वह फंड को मैनेज करने के लिए जितना एक्सपेंस लगता है, उसका यह रेश्यो होता है। यदि म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेश्यो 1 से 2 पर्सेंट तक होता है, तो यह रेश्यो सही है, क्युकी हर कोई म्यूचुअल फंड सामान्यता इतना तो एक्सपेंस रेश्यो रखता ही है। यदि इससे ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो है तो वह म्यूचुअल फंड हमारे लिए उचित नहीं रहेगा।
3– एंट्री लोड और एग्जिट लोड – एंट्री लोड उसे कहते हैं, जिसे हम इन्वेस्टमेंट के दौरान कुछ रुपए फंड को दे देते हैं। और एग्जिट लोड उसे कहा जाता है, जब हम इन्वेस्टमेंट को निकालते हैं, तो उस समय जो पैसा कटता है, उसे हम एग्जिट लोड कहते हैं।
गोल या फिर महीने का टारगेट–
यदि हम म्यूचुअल फंड में एक गोल को लेके चलते हैं, कि हमको इतने समय में इतना पैसा चाहिए। या फिर हम अपने फ्यूचर प्लानिंग के लिए, किसी की शादी या फिर एजुकेशन के लिए गोल बना कर चलते हैं, तो हमें Sip कैलकुलेटर से इसकी भी जानकारी मिल जाती है, कि यदि हम इतने रुपए लगाकर इतने रिटर्न्स कमाते हैं तो हमारा गोल कब तक पूरा होगा। आदि जानकारी हमको यहां से मिल जाती है। जिससे हम महीने महीने उतना अमाउंट इनवेस्ट कर सकते हैं।
फायदा और नुकसान – म्यूचुअल फंड का फायदा यह है, कि हमको मॉडरेट रिस्क के साथ साथ हाई रिटर्न्स मिल जाते हैं। साथ ही म्यूचुअल फंड में हाई लिक्विडिटी होने के वजह से हम इन्वेस्टमेंट को केस में आसानी से कन्वर्ट भी कर लेते हैं।
म्यूचुअल फंड के नुकसान को वैसे हर कोई नही बताता, लेकिन इसका यह नुकसान है, कि इसमें हाई वोलेटिलिटी होती है, अगर हमें कभी पैसों की जरूरत हुई और मार्केट गिरा हुआ है, तो हमको इमरजेंसी में लॉस में ही अपने पैसों को निकालना पड़ सकता है।